एक तरफ महामारी दूसरी तरफ कालाबाजारी से जनता त्राहिमाम कर रही है। जगह-जगह, शहरशहर से अवयवस्था की खबरें आ रही हैं। जिला प्रशासन और पुलिस ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी कर रहा है, लेकिन इस कार्रवाई की सार्थकता पर विपक्ष-मीडिया और तमाम स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग प्रश्नचिह्न भी लगा रहे हैं। यहां तक की अदालतें भी केन्द्र और राज्य सरकारों की कोरोना से निपटने की नाकामी के खिलाफ गुस्से में हैं, लेकिन इस सबके बीच एक सवाल दब गया है कि जब स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े अस्पताल, नर्सिग होम, पैथोलॉजी वाले, ऑक्सीजन सप्लायर्स, दवा विक्रेता ही नहीं चिकित्सक तक कालाबाजारी और लूटखसोट में लगे हैं तब हमारी आर्थिक अपराधों के मामलों की जांच करने वाली एजेंसियां कहां गायब हैं ? या फिर आर्थिक अपराध के मामलों में इनका दायरा कुछ खास मामलों तक ही सीमित रहता है। यह एजेंसियां उन निजी अस्पताल वालों या चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करती हैं जो महामारी काल में मरीजों को लूटने का घिनौना काम करके करोड़ों की कमाई और बेनामी संपत्ति जुटा रहे हैं। यों नहीं ऑक्सीजन की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है ? या यह एजेंसियां उन्हीं मामलों में कार्रवाई करती है जिसके बारे में इनसे कहा जाता है।
कालाबाजारियों और निजी अस्पताल चलाने वालों के खिलाफ जो थोड़ी बहुत कार्रवाई हो रही है वह जिला प्रशासन और पुलिस द्वारा की जा रही है, लेकिन इन लोगों के पास आर्थिक मामलों की जांच का इतना अनुभव नहीं होता है कि वह इस तरह के अपराधों की गहराइयों में जाकर बारीकी से इसकी जांच पड़ताल कर सकें। इसीलिए आर्थिक अपराध करने वाले कई लोग अदालतों से बच निकलते हैं। लाख टके का सवाल यही है कि जब बड़े पैमाने पर आर्थिक अपराध हो रहे हैं तो आर्थिक भ्रष्टाचार की जांच करने वाली एजेंसियां मूक क्यों हैं? जब देश विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है तब जनता के लुटेरों को अनदेखा करने वाली जांच एजेंसियों के खिलाफ क्यों नहीं कार्रवाई होनी चाहिए। हालात यह है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी सहित तमाम जनपदों में एक तरफ कालाबाजारी और निजी अस्पतालों में लूटपाट का दौर चल रहा है। वहीं जिला प्रसाशन के कुछ भ्रष्ट अधिकारी निजी लाभ के लिए ईमानदार व्यापारियों को न केवल प्रताडि़त कर रहे हैं। वरन उनका उत्पीडऩ भी कर रहे हैं। लखनऊ के चिनहट इलाके में ऑक्सीजन निर्माण करने वाला एक बड़ा कारखाना ‘आर के ऑक्सीजन’ के नाम से है। यह फैट्री लखनऊ के तमाम अस्पतालों को नियमित रूप से ऑक्सीजन की आपूर्ति के साथ-साथ आम जरूरतमंद लोगों को भी नियमानुसार ऑक्सीजन की रिफिलिंग कर रही थी।
हाल ही में भाजपा के एक एमएलसी ने अपने कुछ चहेतों को नियम विरुद्ध तरीके से न केवल ऑक्सीजन की डिलीवरी करानी चाही वरन फैटरी मालिक राजेश कुमार और उनके परिजनों से मारपीट भी की। फैट्री मालिक और उनके परिजन उस समय कोरोना पीडि़त होने के बावजूद फैट्री में मौजूद रहकर ऑक्सीजन की आपूर्ति करा रहे थे। भाजपा विधायक इतना नाराज हो गए कि उन्होंने क्षेत्र के एसडीएम से सांठगांठ कर फैट्री को सप्लाई हो रहे गैस निर्माण करने वाली लिक्विड को ही जबरन दूसरी जगह स्थानांतरित करा दिया। इससे दुखी होकर आरके ऑसीजन ने फैटरी पर ताला ही डाल दिया। एक ऐसा स्थान जहां रोज कम से कम 1000 जरूरतमंद लोगों को ऑसीजन सिलेंडर की रिफीलिंग हो रही थी अचानक बंद हो गई। मीडिया में मामला उछला और शासन के संज्ञान में गया तो संबंधित अधिकारी को क्षमा याचना करनी पड़ी। खैर, मुद्दे पर आते हुए बात आर्थिक अपराध से जुड़े मामलों की कि जाए तो आर्थिक मामलों से जुड़े सरकारी क्या निजी संपत्ति का दुरुपयोग आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है। इसमें संपत्ति की चोरी, जालसाजी, धोखाधड़ी आदि शामिल हैं। ऐसे मामलों में आर्थिक अपराध की श्रेणी के हिसाब से केस दर्ज किया जाता है। दूसरे अपराध की तरह आर्थिक अपराध की जांच भी कई एजेंसियां करती हैं।
आर्थिक अपराध की जांच करने वाली एजेंसियों में पुलिस, इकोनॉमिक ऑफेंस विंग, सीबी-सीआईडी, प्रवर्तन निदेशालय और केन्द्रीय अन्वेषण यूरो आदि शामिल हैं। जिस राज्य में आर्थिक अपराध की जांच करने वाली कोई एजेंसी नहीं होती, वहां पुलिस ही ऐसे मामलों की जांच करती है। लेकिन दिल्ली जैसे केंद्र शासित राज्यों में आर्थिक अपराध की जांच के लिए इकोनॉमिक ऑफेंस विंग होती है। इसे हिन्दी में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ भी कहते हैं। एक करोड़ से अधिक की धोखाधड़ी या हेराफेरी के मामले की जांच इकोनॉमिक ऑफेंस विंग करती है। यह किसी भी बड़े आर्थिक अपराध में अपने आप केस दर्ज कर सकती है। दूसरी तरफ जिस आर्थिक अपराध में विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम का उल्लंघन होता है उसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय करता है। यह एक आर्थिक खुफिया एजेंसी है, जो भारत में आर्थिक कानून लागू करने और आर्थिक अपराध पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी निभाती है। प्रवर्तन निदेशालय भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के रेवेन्यू डिपार्टमेंट के अंतर्गत आता है। प्रवर्तन निदेशालय का मुख्य उद्देश्य भारत सरकार के दो प्रमुख अधिनियमों, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम 1999 और धन की रोकथाम अधिनियम 2002 का प्रवर्तन करना है।
वहीं केन्द्रीय अन्वेषण यूरो यानी सेंट्रल यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन भारत की एक प्रमुख जांच एजेंसी है। कई अपराधों की जांच के अलावा आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार की जांच भी सीबीआई करती है। सीबीआई के पास अलग से एंटी करप्शन यूनिट भी है। इसके अलावा सरकार और कोर्ट भी सीबीआई को आर्थिक अपराधों की जांच के आदेश दे सकती है। आमतौर पर बड़ी हस्तियों से जुड़े आर्थिक अपराध, बड़ी रकम की धोखाधड़ी या एक से अधिक राज्यों से जुड़े मामलों की जांच सीबीआई करती है। इसके अलावा आयकर विभाग के ऊपर भी बेनामी संपत्ति और नंबर दो की कमाई करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की जिम्मेदारी होती है। अफसोस की बात यह है कि उक्त सभी एजेंसियां जिन्हें इस समय चौकस दिखना चाहिएं था, हाथ पर हाथ धरे बैठीं हैं। न ही इनसे सरकार कुछ पूछ रही है, न ही अदालतों की नजर इन पर पड़ रही है। केन्द्र सरकार को बार-बार आईना दिखाने वालीं अदालतें यदि इस ओर भी थोड़ा ध्यान देतीं तो हालात काफी बेहतर जाते। केन्द्र की मोदी सरकार को इस और जल्द से जल्द ध्यान देना चाहिए ताकि कोरोना से पीडि़त जनता को राहत मिल सके।
अजय कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)