सरकार कितने भी दावे करे कि देश में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी नहीं है, लेकिन ऑक्सीजन की कमी से हो रही मौतें सरकारी दावों का साथ नहीं दे रही हैं। जब से कोरोना संक्रमितों के नए मामलों में तेजी आई है, कहीं अस्पताल में बेड नहीं है, कहीं एंबुलेंस की सुविधा नहीं है, कहीं लाइफ सेविंग दवा की कमी है, कहीं वेंटिलेटर नहीं है तो कहीं मेडिकल ऑक्सीजन की कमी है। नासिक के सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन टैंक लीक होने से 22 मरीजों की मौत हमारे समूचे स्वास्थ्य रक्षा सिस्टम पर सवाल खड़े करती है। आखिर जिस अस्पताल में 238 मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर हो, उस अस्पताल का प्रबंधन इतनी बड़ी लापरवाही कैसे कर सकता है कि ऑक्सीजन का टैंक लीक करने लगे और वह 30 मिनट तक लीक करता रहे। कोरोना महामारी के दौर में सरकारी अस्पताल की कार्यप्रणाली में इस तरह की खामियां कैसे हो सकती हैं? देश में अगर देखें तो पिछले एक सप्ताह में अलग-अलग अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से कई मौतें हो चुकी हैं।
नासिक में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होने से एक साथ 22 की मौत, 35 की हालत नाजुक होना अस्पताल के प्रबंधन की कमी को दर्शाता है। यह निश्चित रूप से मानवीय गलती की श्रेणी में है, इसे हादसा नहीं माना जा सकता। अस्पताल में जिस वक्त ऑक्सीजन सप्लाई रोकी गई, उस वक्त 171 मरीज ऑक्सीजन पर और 67 मरीज वेंटिलेटर पर थे। अस्पताल के पास अल्टरनेटिव उपाय होना चाहिए था। जब तक आम लोगों की जिंदगी की कीमत नहीं समझेंगे, तब तक प्रशासनिक स्तर पर संजीदा नहीं होंगे। नागरिकों के जीवन को उनके अमीर होने या गरीब होने के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। देश में इसकी कमी से मौतें आत्मनिर्भर भारत, पिछले बजट में हेल्थ पर फोकस, पिछले साल के 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज आदि सब पर सवाल तो हैं ही। स्वास्थ्य मंत्रालय, देश के तीन दिग्गज चिकित्सक बेशक कहें कि कोरोना से घबराएं नहीं, दवा की कमी नहीं, लेकिन 24 घंटे में दो हजार से अधिक मौतें, करीब तीन लाख नए संक्रमित केस और ऑक्सीजन की कमी से हो रही मौतें जब तक नहीं रुकेंगे, तब तक लोगों में कोरोना को लेकर डर तो बना ही रहेगा। सरकार को चाहिए कि देश में सरकारी स्वास्थ्य सिस्टम को ऐसा बनाएं, जहां लोग खुद को सुरक्षित महसूस करें, सरकारी अस्पताल पर लोगों का भरोसा जगे।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऑक्सिजन की समस्या के मद्देनजर राज्य में दस नए ऑक्सिजन प्लांट जल्द से जल्द लगवाने का आदेश दिया है। जाहिर है, इससे फौरी तौर पर ऑक्सिजन की कमी दूर करने में कोई मदद शायद ही मिले, लेकिन कोरोना का जो रूप दिख रहा है, उसमें यह चुनौती इतनी जल्दी नहीं दूर होने वाली। अफसोस की बात यह है कि इस कठिन समय में जमाखोर भी सक्रिय हो गए हैं। कई जगहों से रेमडेसिविर ब्लैक में कई गुना ज्यादा कीमत पर बेचे जाने की खबरें मिल रही हैं। इन पर रोक लगाने की कोशिशें फलित नहीं हुई हैं। आईसीयू बेड की कमी से निपटने के भी प्रयास हुए हैं, लेकिन वे काफी नहीं। ऐसे संकटपूर्ण हालात में जहां आवश्यक कदमों में असामान्य तेजी लाने की जरूरत होती है, वहीं शांति, समझदारी और संयम बरतने की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। सबसे ज्यादा जरूरी है यह याद रखना कि सरकार की ताकत का इस्तेमाल कहां होना चाहिए और कहां नहीं। आवश्यक दवाओं की जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले तत्वों पर सख्ती से रोक पहली जरूरत है।