कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच किसानों की बात गौण हो गई। ये भी एक आंकड़ा है कि चार महीने से भी ज्यादा समय से आंदोलनरत 300 से अधिक किसान जान गवां बैठे हैं। 28 किसानों ने आत्महत्या की है। किसानों की आय में सुधार व उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए केंद्र व राज्य सरकारों की सब्सिडी, कर्ज माफी समेत और भी कई कल्याणकारी योजनाएं हैं। कृषि लागत का कुछ भार वहन करने के लिए सब्सिडी सीमांत व छोटे किसानों की समस्या हल करने का सतत उपाय नहीं है।
सब्सिडी से कम लागत पर किसानों को अधिक पैदावार से अधिक कमाई का फार्मुला टिकाऊ नहीं है क्योंकि पोस्ट हार्वेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में असक्षम बाजार भी किसानों की आय के लिए घातक है। तकरीबन हर दूसरे साल किसान आलू-टमाटर की फसलें सड़कों पर फेंकने मजबूर होते हैं। सब्सिडी का लाभ सुनिश्चित करने के लिए नीति निर्धारकों को किसान की परिभाषा तक स्पष्ट नहीं है।
काश्तकार असल किसान है या भूमिधारी, जिसके पास आय के और भी साधन हैं पर वह काश्तकार नहीं है, फिर भी तमाम सरकारी सब्सिडी का लाभार्थी है। भ्रष्टाचार व चोरी के चलते सब्सिडी का असल किसान तक प्रभाव कम पड़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक जनवितरण के लिए देश में खाद्यान्न की 40% चोरी होती है।
यदि सब्सिडी से ही किसानों को उपज लागत कम करने में मदद मिलती तो फिर कम आय के चलते किसान की स्थिति निराशाजनक क्यों होती? कम आय के चलते कर्ज का बोझ किसानों की आत्महत्या का बड़ा कारण है। 2013 से लगातार सालाना औसतन 12 हजार किसान मौत को गले लगा रहे हैं।
कृषि क्षेत्र को सब्सिडी का दुर्भाग्य यह है कि इसका बड़ा हिस्सा सही हाथों में नहीं पहुंचता और दुरुपयोग गैर-कृषि कार्यों में होता है। जैसे पंजाब के किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली से सरकारी खजाने पर सालाना 7200 करोड़ रुपए का भार पड़ता है, जिसमें पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन बिजली चोरी भी जोड़ता है क्योंकि मुफ्त बिजली से चलने वाले 14.50 लाख टयूबवैलों पर मीटर ही नहीं लगे हैं, इसलिए पता लगाना मुश्किल है कि मुफ्त बिजली की कितनी खपत हुई। विडंबना है कि अमीर नेता, सरकारी अफसर व एनआरआई जिनके पास आय के कई संसाधन हैं, वे भी सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली के लाभार्थियों में हैं। तो समाधान क्या है?
सबसे पहले असल किसान की परिभाषा स्पष्ट करनी होगी। केवल काश्तकार ही असल किसान की श्रेणी में हो और वही सब्सिडी का भी लाभार्थी हो। वे लोग भी पीएम किसान निधि योजना में छह हजार रु. सालाना का लाभ ले रहे हैं जिनकी मासिक आय लाखों में है। भूमिधारक जो काश्तकार नहीं हैं और वे लाभार्थियों की सूची से बाहर हों।
जिन फसलों की एमएसपी पर सरकारी खरीद सुनिश्चित हो उनके बारे में सरकार किसानों का समय-समय पर जागरूक करे।
फसल लागत सब्सिडी युक्तिसंगत की जाए। यूरिया पर सब्सिडी से नाइट्रोजन खाद जरूरत से अधिक डाली जाती है, जिसकी वजह से खेत की उर्वरा शक्ति खतरे में है। सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली से भूमिगत जलस्तर तेजी से गिर रहा है, रोकने के लिए मीटरिंग और मॉनिटरिंग हो।
सब्सिडी जमीन के आकार व आय से जुड़े और भुगतान सीधे किसान के खाते में हो।
देश में 86.2% किसानों की जोत दो हैक्टेयर से कम है। इसे ध्यान में रखते हुए सीमांत व छोटे किसान सामूहिक रूप से एकजुट होकर फसल लागत घटा सकते हैं।
सब्सिडी का निवेश पूंजीगत खर्च के जरिए हो जिससे किसानों में उद्यमशीलता बढ़ सके। किसान उत्पादक संगठनों के ग्रामीण इलाकों में फूड प्रोसेसिंग, ग्रेडिंग व पैकेजिंग सेंटर स्थापित हों उनके उत्पादों की मार्केटिंग के लिए ई-नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट मंच मिले।
किसानों को चार फीसदी ब्याज दर पर फसली कर्ज का दुरुपयोग रुके।
अमृत सागर मित्तल
(लेखक पंजाब राज्य योजना बोर्ड के वाइस चेयरमैन, सोनालीका ग्रुप के वाइस चेयरमैन हैं ये उनके निजी विचार हैं)