11 अप्रैल को चैत्र महीने की अमावस्या है। ग्रंथों में इसे पितृ कर्म के लिए बहुत ही खास माना जाता है। इस तिथि पर पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध और ब्राह्मण भोज करवाने का भी विधान बताया गया है। इस बार ये पर्व रविवार को होने से और भी खास हो गया है। इस दिन सूर्य के साथ पितृ पूजा करने से पितर पूरी तरह संतुष्ट होते हैं। इस दिन पीपल की पूजा करने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं। श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि पीपल में भगवान का वास होता है। वहीं अन्य पुराणों के मुताबिक यही एक ऐसा पेड़ है जिसमें पितर और देवता दोनों का निवास होता है। इसलिए चैत्र महीने की अमावस्या पर सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद सफेद कपड़े पहनकर लोटे में पानी, कच्चा दूध और तिल मिलाकर पीपल में चढ़ाया जाता है। फिर पीपल की परिक्रमा भी की जाती है और पेड़ के नीचे दीपक भी लगाया जाता है। इससे पितरों को तृप्ति मिलती है।
चैत्र अमावस्या का महत्व: मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन व्रत रखने से भी पितरों को संतुष्टि मिलती है। इस दिन किसी पवित्र नदी में नहाने का विधान है। तर्पण करने के लिए नदी में नहाकर सूर्य को अघ्र्य देकर पितरों का तर्पण करना चाहिए। इसके बाद किसी ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए और जरूरतमंदों को दान करना चाहिए।
दान के लिए शुभ मुहूर्त: अमावस्या 11 अप्रैल, रविवार को सुबह सूर्योदय से शुरू होगी। जो कि अगले दिन यानी 12 अप्रैल, सोमवार को सुबह करीब 8 बजे तक रहेगी। इसलिए रविवार को पूजा-पाठ और अगले दिन स्नानदान का शुभ मुहूर्त रहेगा। सोमवार को अमावस्या का योग होने से स्नान-दान के नजरिये से ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि इस अमावस्या पर पितर अपने वंशजों से मिलने जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर पवित्र नदी में स्नान, दान व पितरों को भोजन अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
स्नान-दान की परंपरा: अमावस्या पर पवित्र नदियों में नहाने की परंपरा है। हो सके तो किसी भी नदी में जरूर नहाएं। स्नान के बाद जरूरतमंद लोगों को दान दिया जाता है। अमावस्या पर दान का विशेष महत्व है। इस तिथि पर किसी जरूरतमंद को भोजन, कपड़े, फल, खाने की सफेद चीजें, पानी के लिए मिट्टी का बर्तन और जूते या चप्पल दान करने से पितर प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही किसी ब्राह्मण को भी भोजन करवाना चाहिए या मंदिर में आटा, घी, नमक और अन्य चीजों का दान करना चाहिए।
फिर दर्श अमावस्या क्यों: ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि ग्रंथों में तीन तरह की अमावस्या बताई गई है। जब सूर्योदय से शुरू होकर पूरी रात अमावस्या तिथि हो तो उसे सिनीवाली अमवस्या कहा जाता है। जिस दिन चतुर्दशी के साथ अमावस्या तिथि हो तो उसे दर्श अमावस्या कहा गया है। इनके अलावा जब अमवस्या के साथ प्रतिपदा तिथि भी हो तो उसे कुहू अमावस्या कहा गया है।
चंद्र देव की मिलती है कृपा: जो लोग दर्श अमावस्या के दिन पूजा करते हैं, उन्हें अपने जीवन में अच्छे भाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान चंद्र देव की पूजा करने से जीवन में जिन कामों में रुकावटें आ रही होती हैं वे दूर हो जाती हैं। पंडितों और ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि भगवान चंद्र देव की पूजा करने से मन को शीतलता और शांति का अहसास होता है।
रास्तों को आसान बनाते हैं: जिन लोगों के जीवन में संघर्ष अधिक होता है, भगवान चंद्र देव उनके रास्तों को आसान बनाते हैं। वहीं जो लोग अपने जीवन में मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं, ऐसे लोग अगर इस दिन उपवास रखकर चंद्र देव की पूजा करते हैं तो उनकी इच्छा पूरी होती है।