आवश्यकता से अधिक अनावश्यक वस्तुओं को खरीदने का जुनून होता है, जो कभी सतह के नीचे, कभी सतह के ऊपर प्रवाहित होता रहता है। अर्थशास्त्र के जानकारों का मानना है कि हर 90 वर्ष में आर्थिक मंदी के दौर आते हैं। क्या अनावश्यक वस्तुओं की खरीदी भी आर्थिक मंदी का एक कारण हो सकती है? भीतर की बेचैनी तरह-तरह से अभिव्यक्त होती है।
यह जुनून भी उसी का हिस्सा है। एक कॉरपोरेट में आला अफसर महिला को खरीदारी का जुनून था। उसे कपड़े खरीदने का शौक था। घर में एक सिरे से दूसरे सिरे तक कपड़े रखने की अलमारी थी। वह प्राय: खरीदे हुए पैकेट को बिना खोले ही एक ओर फेंक देती थी। घर में सामान की अधिकता के कारण चलने-फिरने की जगह भी नहीं बची।
कुछ साधन संपन्न लोग बड़ी दुकान से कोई छोटा सामान चुरा लेते हैं, जैसे रेस्त्रां में चम्मच। रेस्त्रां मालिक खाने-पीने की वस्तुओं में इस चोरी से हुई हानि की रकम की भरपाई, बिल में बढ़त करके पा जाते हैं। वेटर को भी हिदायत दी जाती है कि आंख फेर लेना। मॉल में क्लोज सर्किट कैमरे लगे होते हैं। आदतन शॉप लिफ्टर कैमरे की आंख से बचकर अपना काम कर लेता है।
साहित्य और सिनेमा में कथा, विचार और गीत चुरा लिए जाते हैं। अचरज उस गीतकार पर होता है, जिसके पास अपना भी बहुत कुछ है, परंतु हाथ साफ करने का अवसर पर छोड़ता नहीं है। यह अलग किस्म की चोरी है, अलग किस्म की खुजली है।
एक फिल्मकार ने पड़ोसी देश के माधुर्य संरक्षण विभाग में एक आदमी को धन देकर माधुर्य की चोरी करवाई है। इतना ही नहीं गीत के मुखड़े, बुल्लेशाह, अमीर खुसरो और कबीर के खजाने से उड़ाए गए हैं। ये खुजली एक प्यासी नदी की तरह है। ठगने वाला भी खुश रहता और ठगे जाने वाले को भी कोई शिकायत नहीं। हीरे से लेकर जूते तक चुराए जाते हैं। शादी के स्वागत समारोह में वर-वधू को भेंट में कैश लिफाफे दिए जाते हैं। नजदीक खड़ा रिश्तेदार कुछ रुपए निकाल लेता है।
क्लोज सर्किट कैमरे में दर्ज चीज को अनदेखा किया जाता है। खून और वंश के रिश्ते को बनाए रखना जरूरी है। जीवन कोई अदालत नहीं है, जहां कोई दंड दिया जाए। कुर्सी पर बैठे कुछ लोग भी कभी चोरी करते थे। जो व्यक्ति पकड़ा नहीं जाता, उसे निर्दोष ही माना जाता है। सब अपने हैं, किसको मुजरिम समझें, किसको दोष लगाएं।
मॉल की सज्जा करने वाला जानता है कि द्वार के निकट किस वस्तु की दुकान कौन से मनभावन रंग में रंगी जाए कि ग्राहक बंधा चला आए। खाकसार के घर चोरी हुई रपट लिखाने थाने गया तो पहले से परिचित दारोगा ने कहा कि अपने आने की सूचना पहले दे देते तो चोरी नहीं होती। कुछ समय बीतते ही सारा चोरी गया माल वापस मिल गया। हमने कैसा निजाम रचा है कि दारोगा और चोरों में गहरी सांस-गांठ है। बंटवारे की शर्तें पहले से तय होती हैं। दरअसल चोर को कमीशन मात्र मिलता है। कुछ नगरों में चोर बाजार में वस्तुएं कम दाम पर मिलती हैं।
नशे के पदार्थ जब्त किए जाते हैं। थाने में शराब निकाल ली जाती है और जब्त बोतलों में पानी भर दिया जाता है। इसी तरह अन्य प्रकार का माल भी जब्त होता है। यह सब चोर बाजार में बेचे जाते हैं। कभी-कभी हमें अपना ही माल मिल जाता है।
शादी स्वागत समारोह में महंगी शराब की बोतल भी भेंट में दी जाती है। किसी बोतल पर अपना कोई निशान बना दें। साल दो साल में वही बोतल वापस आ जाती है। कोई महंगी तो कोई मनपसंद शराब पीता है। खाड़ी देश के लोग मानते हैं कि एक विशेष लेवल की शराब पीने से लीवर को हानि नहीं पहुंचती। सबने अपने-अपने मोह जाल रचे हैं, ठगने-ठगाने, खाने-पीने का खेल जारी है।
जयप्रकाश चौकसे
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)