फिफ्थ जनरेशन वार फेयर का खतरा

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कल्पना कीजिए कि न एक गोली चले, न मिसाइलें दागी जाएं और न ही फाइटर प्लेन बमवर्षा करें और कोई देश अपने दुश्मन मुल्क से युद्ध जीत जाए तथा उस पर आधिपत्य जमा लें। पढऩे में यह असंभव सा लग सकता है, लेकिन विगत कुछ वर्षों से भारत को ऐसे ही युद्ध से दो चार होना पड़ रहा है। विदेशी शक्तियों द्वारा छेड़े गए इस युद्ध का मकसद भारत की एकता, अखंडता और प्रभुता को प्रभावित करना है। मनोवैज्ञानिक तरीके से लड़े जाने वाले इस युद्ध को फिथ जनरेशन वार फेयर कहते हैं। जिसमें अपनी ही व्यवस्था के खिलाफ लोगों को लोगों से लड़ाया जाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य दुश्मन मुल्क में गृह युद्ध के हालात पैदा करना, स्थापित लोकतंत्र को कमजोर या फिर समाप्त कर देना है। वर्ष 1989 में संयुक्त राज्य अमेरिका के विश्लेषकों की टीम के सदस्य विलियम एस. लिंड ने दुनिया को युद्ध की चार पीढिय़ों से परिचित कराया। उन्होंने बताया कि फस्र्ट जनरेशन का वार फेयर द्वंद युद्ध, शारीरिक सहनशीलता और संख्या पर आधारित था। सेकेंड जनरेशन वार फेयर में युद्ध में इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों की मारक क्षमता की महत्ता थी। थर्ड जनरेशन वार फेयर में स्मूथबोर मस्कट, मशीन-संचालित तोपखाने और तूफानी हमलों (द्वितीय विश्व युद्ध) को देखा गया। वहीं फोर्थ जनरेशन वॉरफेयर आम तौर पर विद्रोहियों से जुड़ा रहा।

इस दौरान विद्रोहियों और आतंकवाद को बढ़ावा देकर छदम युद्ध लड़ा गया। फिथ जनरेशन वारफेयर युद्ध के प्रचलित स्वरूपों जैसे भारी बमबारी, सैनिकों को बंधक बनाना या फिर प्रत्यक्ष तौर पर किसी देश की भूमि पर कब्जा करने से आगे बढ़ का है। लेकिन युद्ध की सभी पीढिय़ों की तरह ही इसका भी लक्ष्य जीत ही है। सीधे तौर पर कहा जाए तो इसके तहत दुश्मन मुल्क के सैनिकों की जगह वहां के नागरिकों को निशाना बनाया जाता है। मनोवैज्ञानिक साधनों का उपयोग करके उनके मस्तिष्क को प्रभावित किया जाता है। इस हमले के दो रूप हैं। पहला आत्मघाती सैनिकों के जरिए बड़ी आबादी को आतंकित करना। दूसरा अधिक गुप्त और सूक्ष्म दृष्टिकोण है, जिसका उद्देश्य प्रतिद्वंदी देश के नेता एवं नागरिकों की अपने सांस्कृतिक मूल्यों, विश्वास और स्थापित व्यवस्था क्या सरकार को लेकर सोच को बदलना। इसके लिए टारगेट देश के नागरिकों पर मनोवैज्ञानिक हमला करने से पहले प्रोपेगेंडा का निर्माण किया जाता है, फिर वहां के लोगों के मस्तिष्क में अपने एजेंडे को स्थापित किया जाता है। इसके सबसे पहले शिकार लोकतांत्रिक देश में मौजूद दबाव समूह होते हैं या फिर सुनियोजित तरीके से वे एजेंडे का हिस्सा बन जाते हैं। इसके लिए ऐसे लोगों, समूहों एवं संगठनों को खोजा जाता है जो प्रोपेगेंडा को आगे बढ़ाने में उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।

पहले किसी प्रोपेगेंडा को समाज में फैलाने के माध्यम सीमित थे, लेकिन आज हर हाथ में मोबाइल होने की वजह से वीडियो, फोटो क्या टेस्ट फार्म में तथ्यहीन और जहरीले विचारों को समाज में घोलना आसान हो गया है। चीन और पाकिस्तान जैसे देश फिथ जनरेशन वारफेयर के शातिर खिलाड़ी हैं, जो असर भारत को अस्थिर करने की कोशिश में रहते हैं। इसके बारे में ताइवान के युद्ध विशेषज्ञ प्रोफेसर केरी गेर्शनेक ने अपनी पुस्तक पॉलिटिकल वॉरफेयर: स्ट्रैटजिस फॉर कम्बैटिंग चाइना प्लान टू विन विदाउट फाइटिंग में चीन द्वारा भारत को कमजोर करने को लेकर अपनाई जा रही रणनीतियों और संदेश के बारे में बताया है। उनका मानना है कि चीन, भारत को कमजोर करने के लिए एनजीओ फंडिंग से लेकर कई अन्य हथकंडे अपना रहा है। उन्होंने पिछले वर्ष कर्नाटक की राजधानी बंगलुरू में आईफोन बनाने वाली ताइवान की टेक्नोलॉजी कंपनी विस्ट्रान के कारखाने में हुई हिंसा को भी चीन द्वारा प्रायोजित होने के संकेत दिए हैं। इसके लिए चीन ने 3,00,000 ‘सैनिकों’ के साथ-साथ 20 लाख लोगों का एक समूह बनाया है, जो सोशल मीडिया पर पोस्ट और टिप्पणी के माध्यम से चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी का प्रचार करते रहते हैं। अपने जन्म से युद्ध में शामिल पाकिस्तान भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के अलावा अन्य हिंसक गतिविधियों को भी लगातार बढ़ावा दे रहा है।

जिसको भीमा कोरेगांव हिंसा, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रोटेस्ट के दौरान दिल्ली दंगा और अब किसान आंदोलन में हुई हिंसा से समझा जा सकता है। दो साल पहले यानी 2018 में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई जातिगत हिंसा की जांच में यह बात सामने आ चुकी है कि इसमें पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ था। इस हिंसा की साजिश में गिरफ्तार तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा न्यायालय में दाखिल पूरक आरोप पत्र में आईएसआई और कश्मीरी अलगाववादियों से कनेक्शन का जिक्र है। वहीं सीएए प्रोटेस्ट और दिल्ली दंगा को लेकर पुलिस और आईबी ने जो खुलासे किए हैं उससे साफ होता है कि इसमें पाकिस्तान की बड़ी भूमिका थी। दिल्ली पुलिस के दावों के मुताबिक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक- ए- इंसाफ की स्टूडेंट विंग ने भारत की छवि को विश्व में खराब करने के लिए सोशल मीडिया पर दंगा कराने की बड़ी साजिश रची थी। 16 दिनों में ही इंसाफ स्टूडेंट विंग ने 3582 नए ट्विटर अकाउंट बनाए और अलग- अलग फर्जी हैशटैग के जरिये दुनियाभर में भड़काऊ पोस्ट करने शुरू कर दिए। इसके अलावा 372 भड़काऊ वीडियो भी बनाये गए थे। जिसमें ये संदेश देने की कोशिश की गई कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं।

तीन कृषि बिलों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों के आंदोलन को देखें तो पाकिस्तान समर्थित खालिस्तानी विचारधारा के लोग इसको हथियाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। जिनका उद्देश्य आंदोलन को हिंसक बनाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को बदनाम करना है। लाल किले पर हुई हिंसा इसका प्रमाण है कि कैसे देश के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के समानांतर धार्मिक झंडे को फहराया गया। ऐसा नहीं है कि भारत इन साजिशों से अनजान है। अपने सामर्थ्य के अनुरूप वह इन षड्यंत्रों का पटाक्षेप कर रहा है। भारत सरकार द्वारा चीन के एप्स पर प्रतिबंध लगाने का फैसला आत्मरक्षा में उठाया गया एक कदम था। यही नहीं विदेशी सेलिब्रिटी द्वारा किसान आंदोलन के लिए किए गए ट्वीट को लेकर भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से बयान जारी करने का उद्देश्य पाकिस्तान और खालिस्तान समर्थकों के मंसूबों पर पानी फेरना था।

इसके जारिए भारत ने जहां एक तरफ अपना पक्ष दुनिया के समक्ष रखा। वहीं दूसरी तरफ देश के लोगों को इस षड्यंत्र के प्रति आगाह करते हुए आपसी एकता बनाए रखने के लिए प्रेरित भी किया। जिसको भारत के क्रिकेट और फिल्मों से जुड़े सितारों ने हाथों हाथ लिया और इस मुहिम को आगे बढ़ाया। यह लड़ाई यही नहीं समाप्त होने वाली। ऐसी पूरी संभावना है कि आगे भी पाकिस्तान और चीन, भारत की प्रभुता को प्रभावित करने की पूरी कोशिश करेंगे। इसके लिए आवश्यक है कि भारत अपने जैसे देशों को साथ में लाए और इस मनोवैज्ञानिक युद्ध से लडऩे के लिए एक व्यापक रणनीति बनाए। जिससे भविष्य में आंदोलनों के नाम पर भारत की एकता और अखंडता को खंडित करने का प्रयास करने वाले लोगों के नापाक मंसूबों को तोड़ा जा सके।

शान्तनु त्रिपाठी
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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