कीवी परिवर्तनवादियों ने फिर कर दिखाया। न्यूजीलैंड के केंद्रीय बैंक ने 1989 में सबसे पहले उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के लिए विशिष्ट लक्ष्य रखा था, जब यह वैश्विक खतरा थी। संघों और व्यापारों ने इसे वृद्धि और नौकरियों के लिए खतरनाक बताया था। एक प्रॉपर्टी डेवलपर ने तो यहां तक कहा था कि सेंट्रल बैंक के प्रमुख डोनाल्ड ब्रैश को रस्सी से लटका दो। ब्रैश अड़े रहे। 2 साल में महंगाई 8 से 2 फीसदी पर आ गई। यह अलोकप्रिय विचार चर्चित हो गया।
जल्द, ज्यादातर केंद्रीय बैंकों ने ऐसे लक्ष्य रखे और इससे भोजन, ईंधन और अन्य उपभोक्ता सामग्रियों की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगी। आज संपत्ति मूल्य मुद्रास्फीति की मुसीबत मंडरा रही है। न्यूजीलैंड ने एक और जवाबी हमला शुरू किया है। जहां वैश्वीकरण और ऑटोमेशन के कारण उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्य नियंत्रण में हैं, वहीं केंद्रीय बैंकों से सुलभ मुद्रा (सरकारी योजनाओं, नीतियों व कम ऋण पर उपलब्ध कर्ज से लोगों को पैसा मिलना) के कारण स्टॉक्स से लेकर बॉन्ड्स और हाउसिंग तक के मूल्य बढ़ रहे हैं।
चूंकि घरों को आमतौर पर उपभोक्ता सामग्री नहीं मानते, इसलिए इनकी कीमत में तेज बढ़ोतरी पर भी केंद्रीय बैंक का ज्यादा ध्यान नहीं जाता। न्यूजीलैंड में महामारी के दौरान घरों की कीमतें जनवरी-2020 से 12 महीनों में 19% बढ़ी हैं। ऑकलैंड में एक सामान्य घर की कीमत 7.2 लाख डॉलर तक पहुंच गई है। इससे प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न शर्मिंदा हैं। उदारवादी जेसिंडा अफोर्डेबल हाउसिंग के वादे पर सत्ता में आई थीं।
परेशान सरकार ने केंद्रीय बैंक को 1 मार्च से घरों की कीमतें स्थिर करने की जिम्मेदारी लेने का आदेश दिया है। यह अच्छी बात है कि एक राजनेता ने सुलभ मुद्रा के अनभिप्रेत नतीजों को पहचाना। अगर यह आइडिया चल पड़ता है तो यह दुनियाभर में बड़ी वित्तीय और सामाजिक स्थिरता ला सकता है। दशकों से केंद्रीय बैंक की ढीली नीति ने वित्तीय बाजार की तुलना में वास्तविक अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए कुछ खास नहीं किया। इससे संपत्ति असमानता बढ़ी है, घर मिडिल क्लास की पहुंच से दूर हो रहे हैं।
रिसर्च फर्म नंबिओ के मुताबिक 502 अंतरराष्ट्रीय शहरों में से 90% में घर की कीमतें ‘पहुंच से बाहर’ (परिवार की औसत आय से तीन गुना) है। लॉकडाउन की वजह से 2020 की असामान्य मंदी से पहले, पिछले कुछ दशकों में हर बड़े आर्थिक संकट से पहले हाउसिंग या स्टॉक्स या दोनों की कीमतों में तेजी देखी गई। मेरे शोध के मुताबिक, जो वित्तीय बाजार कभी वैश्विक अर्थव्यवस्था के आकार के बराबर था, वह 1980 के बाद से उससे 4 गुना बड़ा हो गया है।
बाजार जितने बढ़ते हैं, उनके गिरने पर अर्थव्यवस्था पर उतना ही ज्यादा असर होता है। 17 बड़े राष्ट्रों के पिछले 140 साल को देखने पर पता चलता है कि दूसरे विश्व युद्ध से पहले, हर 4 में से 1 मंदी के बाद हाउसिंग और स्टॉक्स में बबल (छद्म उछाल) आता था। लेकिन आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में बैंकिंग का महत्व बढ़ने से परिस्थितियां बदलीं और युद्ध के बाद से हर 3 में से 2 मंदियों के बाद स्टॉक बबल देखा गया।
हाउसिंग बबल तो और बुरे हैं। करीब 220 ट्रिलियन डॉलर का हाउसिंग मार्केट, वैश्विक स्टॉक मार्केट से दोगुना है और इसमें कर्ज (डेट) की जटिलता है। जब कीमतें गिरती हैं तो गिरवी रखी संपत्तियों के निपटान में कई साल लगते हैं। इससे मंदी लंबी चलती है। आमतौर पर कर्ज के कारण हाउसिंग में आई तेजी के बाद आने वाली मंदियां सबसे लंबी और गहरी होती हैं।
जेसिंडा के कदम से शायद हाउसिंग में आई तेजी तुरंत धीमी न हो, क्योंकि मांग और आपूर्ति का मजबूत पहलू भी है। लेकिन केंद्रीय बैंक को घरों की कीमत में स्थिरता लाने का आदेश अच्छी शुरुआत है। बबल्स को खतरनाक होने से पहले खत्म करने की चुनौती उतनी भी कठिन नहीं है। शोध बताते हैं कि कीमतों और कर्ज की गति में बढ़ोतरी इसकी चेतावनी के संकेत देते हैं।
नीतियों को वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में बदलावों के मुताबिक बदलना होगा। दुनिया ने सामाजिक कार्यक्रमों को वित्त देने के लिए सुलभ मुद्रा का तरीका अपनाया है, लेकिन वित्तीय स्थिरता, संपत्ति असमानता और हाउसिंग एफोर्डेबिलिटी पर इसके नकारात्मक असर को समझना भी जरूरी है। न्यूजीलैंड जो रास्ता दिखा रहा है, उसे अपनाना समझदारी भरा कदम होगा।
रुचिर शर्मा
(लेखक ग्लोबल इंवेस्टर और बेस्ट सेलिंग राइटर हैं ये उनके निजी विचार हैं)