सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश जिसमें सरकार की राय से अलग विचार रखने को राजद्रोह नहीं माना, इस आदेश से उन लोगों को राहत मिलेगी जो अपनी अभिव्यति जाहिर करने में हिचकिचाते कि सरकार उसकी पार्टी के नेता उसे फर्जी मुकदमों में न फंसा दें। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश जहां कुछ लोगों के लिए राहत भरा है तो कुछ के अरमानों पर पानी फेरने वाला है। ऐसे लोग जो सरकार के प्रति कुछ अलग नहीं सुनना चाहते, इस जुगत में रहते हैं कि जो सरकार की नीति से अलग चलने वाले हैं उनपर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कराकर खामोश कर दिया जाए। उनके ऐसा करने से अभिव्यति जाहिर करने वालों में खौफ का माहौल रहता है। शायद कोर्ट का यह आदेश उस भय को दूर करने में सहायक सिद्ध हो और स्वतंत्रता का अधिकार जो व्यति का मौलिक अधिकार होता है, वह बहाल हो सकेगा। एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि सरकार की राय से अलग विचारों को राजद्रोह नहीं कहा जा सकता। इससे उन बातों को बल मिलेगा जिससे लोकतंत्र में जनता को अपनी बात कहने का अधिकार होता है।
जिसकी आज्ञा स्वयं संविधान देता है। जो कुछ समय से भय के कारण प्रभावित हो रही थी। जस्टिस किशन कौल और हेमंत गुप्ता की बेंच ने यह कमेंट जम्मू- कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ दायर जनहित याचिका (पिल)को खारिज करते हुए किया। जस्टिस बैंच का याची के ऊपर लगा पचास हजार का जुर्माना यह बता रहा है कि कोर्ट अपने विवेक से सही और उत्तम फैसले लेता है, जिसमें एक गरीब व्यति को इंसाफ भी मिलने की उम्मीद है। कोर्ट की दृष्टि में याची का कहना कि अब्दुल्ला ने देश के खिलाफ बयान दिया, जिसस जनता में यह मैसेज जाएगा कि भारत में देश-विरोधी गतिविधियों को इजाजत दी जाती है और यह देश की एकता के खिलाफ होगा। याची ने कोर्ट के माध्यम से पूर्व मुख्यमंत्री की संसद सदस्यता को समाप्त करने की भी मांग की थी। कोर्ट के आदेश से जहां याची को उसके प्रश्नों का उत्तर मिला वहीं इससे उन लोगों को भी झटका लगेगा, जो बात-बात पर कोर्ट की शरण लेकर व्यक्ति में भय का भाव पैदा करते हैं।
ये लोग जहां दबे कुचले व शोषित व्यतियों की अभिव्यति जाहिर करने में बाधा उत्पन्न करते हैं वहीं कोर्ट का कीमती समय भी प्रभावित होता है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वह कोर्ट का समय खराब करने की बजाय देश हित में विकास की बात करने उनको सार्थक करने का प्रयास करें। जो लोग केवल राजनीति ही करते हैं उन्हें समझना चाहिए कि कोर्ट वह ताकत है हर ताकत फीकी हो जाती है। कोर्ट के इस फैसले से उन लोगों में नई चेतना पैदा होगी जो भय के कारण अपनी राय जाहिर करते हुए हिचकिचाते हैं। उन लोगों में जहां कोर्ट के प्रति एक सकारात्मक भाव पैदा होगा और अहसास होगा कि यदि उन्हें सरकार के द्वारा इंसाफ मिलने में देरी हो रही है तो कोर्ट ऐसी ताकत है जिसके द्वारा इंसाफ को लेकर सरकार को भी बाध्य होना पड़ता है। आम आदमी को समझना चाहिए कि वह देश हित में कोई ऐसी अभिव्यति जाहिर न करें जिससे राष्ट्र की प्रतिष्ठा, एकता व अखंडता को धका लगे। सभी के लिए देश व उसकी संपत्ति सर्वोपरि है। उसके संरक्षण के लिए नागरिकों का प्रतिबद्ध रहना जरूरी है। सरकार से शिकायत हो सकती है लेकिन देश से नहीं होनी चाहिए, क्योंकि देश सबका है।