देश में जारी किसान आंदोलन पर गतिरोध और इस मुद्दे को सुलझाने में अधिकारियों की अरुचि और अक्षमता के कारण भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को जो नुकसान हुआ, उस पर सरकार का सोचने का समय तो गुजर गया, लेकिन इसको लेकर जैसा रुख अख्तियार किया गया, उसने जरूर लोगों की बेचैनी बढ़ा दी है। रिहाना मामले में सरकार की प्रतिक्रिया ने तीन समानांतर रूख अपनाए। पहला, विदेश मंत्रालय जिसका काम सरकारों, राजनयिकों और वैश्विक लोगों से निपटना है। उसने एक रोष भरा बयान जारी किया। दूसरा, प्रमुख मंत्रियों ने, इनमें दो पूर्व राजनयिक रह चुके हैं ने विदेश मंत्रालय की तर्ज पर ट्वीट किया। तीसरा जैसे ही रिहाना के साथ दूसरे अन्य वैश्विक बड़े नाम जैसे ग्रेटा थनबर्ग आदि जुड़ गए, तब सरकार ने विदेशियों को चुनौती देने के लिए भारतीय हस्तियों मुख्य तौर पर फिल्मी हस्तियां और क्रिकेटर्स का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। यह प्रतिक्रिया कई स्तरों पर शर्मनाक थी। पहली बात तो यह कि विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता का यह काम नहीं है। ‘न सटीक, न जिम्मेदार’ ठहराते हुए रिहाना के एक पंक्ति के ट्वीट की सार्वजनिक रूप से निंदा करना वाकई बुरा था।
इसे गंभीरता से नहीं लेने के लिए उसके अंग्रेजी के छह शब्दों की जिज्ञासा (हमलोग इस बारे में बात क्यों नहीं करते?) का छह पैराग्राफ में दो हैशटेग इंडिया टूगेदर और इंडिया अगेंस्ट प्रोपेगेंडा के साथ जवाब ने इसे और उलझाऊ बना दिया। एक ऐसे मंत्रालय को जिसे दुनिया भर की सरकारों को गंभीरता से लेना चाहिए, उसका हस्तियों को यह कहना कि टिप्पणी करने से पहले मुद्दे पर तथ्य पता कर लेने चाहिए और सनसनीखेज सोशल मीडिया हैशटैग के प्रलोभन में आने से बचना चाहिए, पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम के शब्दों में यह बचकानापन है। दूसरा जैसा चिदंबरम भी इंगित करते हैं कि भारत के घरेलू मामलों की खबरों पर विदेशियों की टिप्पणी में कुछ भी अपमानजनक नहीं है। विदेशों के आंतरिक मामलों में हम खुद ऐसा करते हैं,- म्यांमार में पिछले दिनों साा के कायापलट पर हमने टिप्पणी की थी। यहां तक कि भारत में कृषि सुधारों के समर्थक अमेरिका ने भी किसानों से बातचीत और भारतीय सरकार को शांतिपूर्ण विरोध संपन्न करने और इंटरनेट की सुविधा देने के लिए कहा है। तीसरा, भारतीय हस्तियों को विदेशी हस्तियों के विरोध में खड़ा करना बचकाना काम है, किसी भी गंभीर सरकार के लिए ये महत्वहीन है।
इस तथ्य के अलावा कि सरकार के सम्मान की रक्षा के लिए जुटाई गई भारतीय हस्तियों की कुल फैन फॉलोइंग भी मिलाकर रिहाना और थनबर्ग के समकक्ष नहीं बैठतीं। यहां मूल फर्क है कि भारतीय हस्तियों की बड़ी फैन फॉलोइंग भारत में ही है, जबकि भारत की वैश्विक छवि को विदेशों में जो नुकसान हुआ, सरकार उस नुकसान की भरपाई करना चाहती है। भारत सरकार के इस हठ और अलोकतांत्रिक व्यवहार से देश की वैश्विक छवि को जो नुकसान हुआ, उसे क्रिकेटर्स के ट्वीट्स से ठीक नहीं किया जा सकता। आधिकारिक देशभक्ति से भरे हैशटेग इंडिया टूगेदर को जोड़ते हुए मैं कहता हूं, ‘कृषि कानून वापस लें, किसानों के साथ समाधानों पर चर्चा करें और तब आपको मिलेगा एकजुट भारत, टूगेदर इंडिया। सरकार में सार्वजनिक कूटनीति के साधारण से नियमों को जानने वाले किसी को भी एक सीधी-सी बात समझना चाहिए कि सफल छवि निर्माण पूरी तरह से एक अच्छी कहानी पर निर्भर करता है। दशकों तक भारत सॉफ्ट पावर के तौर पर बढ़ता गया क्योंकि हम ‘बेहतर कहानियों की धरती’ थे। आज हम सबके लिए दुख की बात है कि इसका विपरीत सच है।
विदेश का कोई भी बड़ा अखबार भले ही दक्षिणपंथी (जैसे वॉल स्ट्रीट जर्नल) या वामपंथी (जैसे वॉशिंगटन पोस्ट) उठाएं, तो भारत से या भारत के बारे में आलोचनात्मक लेख या संपादकीय देखेंगे। बीजेपी के कट्टरपंथी चाहे जो भी चाहें, ऐसा करने के लिए कुछ अच्छे कारण भी हैं। दुनिया हमारे बारे में क्या सोचती है यह हमारे लिए अब पहले की तुलना में सबसे ज्यादा मायने रख रहा है, कम से कम इसलिए नहीं क्योंकि बजट ने हमें याद दिलाया कि हम आर्थिक संकट में हैं और भारत पहले से कहीं अधिक बाहरी व्यापार, निवेश और सद्भावना पर निर्भर है। पर विदेशी निवेश भविष्य में विश्वास के कारण ही आता है, विदेश में जिसका तेजी से क्षरण हुआ है। सााधारी पार्टी के संकीर्ण राजनीतिक लक्ष्यों को पाने के लिए सांप्रदायिक, विभाजनकारी कार्यों पर रोक लगनी चाहिए। अगर सरकार अपनी छवि को दुरुस्त करने की उम्मीद रखती है, तो लोकतांत्रिक व्यवहार और समावेशी राजनीति का पुनरुद्धार के साथ सच्चाई बदलनी चाहिए। तब जाकर हम गर्व से ट्वीट कर सकते हैं टूगेदर इंडिया।
शशि थरूर
(लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद हैं ये उनके निजी विचार हैं)