बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो रूप हमारे सामने आते रहे हैं। जब वह चुनावी सभा में होते हैं तो विरोधी नेताओं की धज्जियां उड़ा देते हैं। इसके विपरीत ऐसे कार्यक्रमों में, जिनका दलीय राजनीति से सीधा संबंध नहीं होता, वे विपक्षी नेताओं की सार्वजनिक प्रशंसा करने में पूरी उदारता का परिचय देते हैं। राज्यसभा में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की विदाई का भावुक करने वाला दृश्य भुलाया नहीं जा सकता। मोदी ने सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता के रूप में आजाद के कार्य व्यवहार, ज्ञान आदि की जितनी प्रशंसा की, सामान्यतः उसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। किंतु जवाब में मोदी के लिए इसी तरह के उद्गार गुलाम नबी आजाद की तरफ से नहीं आए। उन्होंने प्रधानमंत्री का धन्यवाद जरूर किया लेकिन उनके व्यक्तित्व, व्यवहार, सोच, कार्यशैली आदि को लेकर एक भी शब्द आजाद के मुंह से नहीं निकला।
इस तरह का यह पहला मौका नहीं है। अनेक अवसरों पर नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री दूसरे दलों के नेताओं की खुले दिल से तारीफ की, लेकिन दूसरी ओर से इस प्रकार की बातें कभी सुनने को नहीं मिलीं। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के विदाई समारोह का दृश्य याद कीजिए। अपने भाषण में मोदी ने मुखर्जी का कद इतना इतना ऊंचा उठा दिया जितना उनकी अपनी पार्टी के लोगों ने भी नहीं उठाया। मोदी ने कई घटनाओं का जिक्र कर साबित किया कि देश के लिए उनका योगदान अतुलनीय है। लेकिन प्रणब मुखर्जी के भाषण में एक शब्द भी मोदी की प्रशंसा में नहीं था। उन्होंने इतना तक कहने से परहेज किया कि मोदी देश की ठीक प्रकार से सेवा कर रहे हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनसे साफ हो जाता है कि मोदी जिस तरह विपक्ष या दूसरे दलों के नेताओं का सम्मान करते हैं, उसका पासंग भी उनको वापसी में नहीं मिलता।
आप नरेंद्र मोदी की चाहे जितनी आलोचना करिए लेकिन विपक्षी नेताओं के साथ उनके व्यवहार के इन पहलुओं की प्रशंसा करनी ही होगी। जरा सोचिए, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते तो क्या प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न मिलता? क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि कल कोई बीजेपी विरोधी पार्टी की सरकार नरेंद्र मोदी को भारत रत्न देने पर विचार भी करेगी? मोदी इस मायने में सबसे दुर्भाग्यशाली नेता माने जाएंगे। गैर बीजेपी दलों के नेताओं को उनके मुंह से अपनी प्रशंसा सुनने, उनके द्वारा महिमामंडित किए जाने में कोई समस्या नहीं है। वे सब उनसे व्यक्तिगत रिश्ते रखते हैं। अपना काम करवाते हैं। व्यक्तिगत मुलाकात में उनको उदार चरित्र का, ईमानदार, देश के लिए बेहतर काम करने वाला भी बता देते हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से ऐसी बात कोई नहीं बोलता।
कई बार तो इसके उलट व्यवहार होता है। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बारे में मोदी ने एक साक्षात्कार में कहा कि ‘हमारे व्यक्तिगत रिश्ते बहुत अच्छे हैं। वह भी बहुत अच्छी हैं। मेरे लिए बंगाली कुर्ता और रसगुल्ले भेजती हैं।’ ममता को यह सामान्य खुलासा इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने कह दिया कि रसगुल्ले की जगह अब ईंट-पत्थर भेजूंगी। आखिर ऐसी तिलमिलाहट भरी प्रतिक्रिया का क्या कारण हो सकता है? शरद पवार को ऐसा नेता माना जाता है जो दलीय सीमाओं से बाहर जाकर भी अपनी बात रखते हैं। पवार के 75 वें जन्म दिवस पर उन पर प्रकाशित पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में मंच पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी आदि उपस्थित थे। सबने सामान्य सा भाषण दिया लेकिन मोदी ने एक-एक कर ऐसी कितनी ही सकारात्मक बातें कहीं जो पहली बार सामने आई थीं और सुनने वाले भी जिन्हें सुनकर अवाक थे।
अंत में पवार का भाषण हुआ, लेकिन क्या मजाल कि वे भी मोदी के व्यक्तित्व और कार्य की प्रशंसा कर दें। पवार के सामने एक अवसर वह था जब वे महाराष्ट्र में सरकार गठन की राजनीति के बीच मोदी से मिलकर आ रहे थे। उन्होंने कह दिया कि मोदी जी ने साथ मिलकर काम करने का प्रस्ताव दिया था, वह सुप्रिया सुले (उनकी पुत्री) के लिए मंत्री पद भी दे रहे थे। हमने स्वीकार नहीं किया। यह कैसा व्यवहार है? बहुत बातें पवार और दूसरे नेताओं ने भी उनके समक्ष समय-समय पर रखी होगी पर मोदी ने कभी सार्वजनिक तौर पर जाहिर नहीं किया।
आप इस दिशा में सरसरी नजर भी डालेंगे तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा से लेकर नवीन पटनायक, के चंद्रशेखर राव, स्व. एम करुणानिधि, चन्द्रबाबू नायडू और एक समय अपने लिए तीखे शब्द प्रयोग करने वाले नीतीश कुमार तक की सार्वजनिक प्रशंसा करने में मोदी को गुरेज नहीं हुआ। इसके समानांतर आप मोदी के व्यक्तित्व की प्रशंसा या उनकी निर्मित छवि का खंडन करने वाला एक भी शब्द इन नेताओं के मुंह से निकला हुआ नहीं बता सकते। संघ और बीजेपी हमारे देश के ज्यादातर दलों और बौद्धिक वर्ग के लिए सार्वजनिक तौर पर अछूत रहे हैं। गुजरात के भीषण दंगों के समय से मोदी की ऐसे सांप्रदायिक खलनायक की छवि बनाई गई जो मुसलमानों से नफरत करता है। अनेक बार यह धारणा गलत साबित हुई, लेकिन विपक्षी नेताओं ने अपनी राजनीति साधने के लिए सत्य-असत्य का ध्यान रखे बिना उन पर तीखे हमले करने में सारी सीमाएं लांघ दीं।
पाखंडी चरित्र का शिकार
इन नेताओंके लिए मोदी आज भी ऐसे अछूत हैं जिनके साथ अकेले में सारे संबंध रखे जा सकते हैं पर सार्वजनिक रुप से इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। मोदी भारतीय राजनीति के इसी पाखंडी चरित्र का शिकार हैं। कुछ नेताओं को लगता है कि मोदी की सार्वजनिक प्रशंसा करने का अर्थ मुस्लिम वोट कट जाना होगा। कुछ की समस्या अपने ही द्वारा मोदी के बारे में बोले गए झूठों का खंडन होने से बचाए रखने की है। हालांकि इन नेताओं का दायित्व है कि ये मोदी के बारे में देश के सामने अपने अनुभव का सच रखें, किंतु ये ऐसा करेंगे नहीं। समय आ गया है जब भारतीय राजनीति की इस कृतघ्नता पर चोट की जाए।
अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)