किसानों का हुड़दंग निंदनीय

0
795

गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में जो घटा वह अति निंदनीय है। यह घटना किसानों द्वारा लगभग दो माह से चलाए जा रहे शांतिपूर्ण आंदोलन को कलंकित कर रही है। किसानों के हुड़दंग ने आम जनता के द्वारा आंदोलन को मिलने वाली सहानुभूति को भी कम करने का प्रयास किया है। दिल्ली पुलिस प्रशासन से किसान संगठनों ने शांतिपूर्ण परेड की आज्ञा मांगी थी जिसको पुलिस ने एक भरोसा करके आज्ञा देकर उनका मान रखना चाहा था, लेकिन हुड़दंगियों ने अपनी महत्वकांशा के चलते आंदोलन पर एक दाग लगा दिया। इस घटना से ऐसा लग रहा है कि इस घटना को अंजाम देने वाले किसान नहीं बल्कि उनके भेष में असामाजिक तत्व थे जिनका काम हिंसा फैलाना है। अगर देखा जाए तो इस घटना के बाद सरकार के वे आरोप दावों में बदलते दिख रहे हैं जिसमें उन्होंने आंदोलित किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी, नसलवादी आदि बताया था। मीडिया के द्वारा जो सहानुभूति किसानों को मिल रही थी वह अब सरकार के पाले में जाती दिख रही है। सवाल यह कि जो किसान नेता परेड को शांतिपूर्ण निकालना चाहते थे। क्या उन्होंने बाहर से आने वाले लोगों को शांति बनाए रखने की हिदायत नहीं की थी।

यदि उन्होंने हिदायत की थी तो इन उग्र किसानों ने उनका कहना क्यों नहीं माना? क्या इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर वह अपने उद्देश्य में सफल हो जाएंगे? क्या वह इन कर्मों से की बदौलत सरकार पर कानून वापसी के लिए दबाव बना पाएंगे? यह भी गौर करने की बात है कि हुड़दंगियों ने एक धर्म विशेष का प्रतीक रूपी झंडा लाल किले के द्वार लगाकर गणतंत्र व राष्ट्रध्वज का अपमान किया है। सार्वजनिक संपात्ति को इस तरह का नुकसान पहुंचाना न केवल अस्वीकार्य, बल्कि निंदनीय है। इसके अलावा, बवाल में 86 पुलिसकर्मियों का घायल होना और भी पीड़ादायक है। इनमें से कम से कम 26 लाल किले के बाहर घायल हुए। कैमरे में पता चला कि उन पर लोहे की रॉड से हमला किया गया था। हुड़दंगियों का यह राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है। उग्र किसानों की इस अभद्र घटना के बाद सरकार को बल मिलेगा कि राष्ट्रशांति के लिए किसानों के खिलाफ कार्रवाई करे। दिल्ली पुलिस का ये बयान किसानों से ज्यादा भरोसेमंद नजर आता है। इस बात में कोई शक नहीं है कि सुबह से ही किसान नेता प्रदर्शनकारियों से अपील कर रहे थे, किसी को हमारी खामी ढूंढने का मौका मत देना।

लेकिन, इसके बावजूद, कुछ ही घंटों के भीतर हिंसा की घटना ने सबकुछ बदल दिया। यह सब कुछ गणतंत्र दिवस पर हुआ, जब दुनियाभर के मीडिया की निगाहें राष्ट्रीय राजधानी पर थीं। परेड में जो हिदायत किसान नेताओं ने आंदोलित किसानों को दी थी उसका असर कुछ ही घंटों में कैसे खत्म हो गया। परेड से पहले उग्र भीड़ के मन या चल रहा था। इसका अंदाजा किसान नेता क्यों नहीं लगा पाए? इस भीड़ ने अपने स्वार्थ के लिए जो कुछ किया उसका असर किसान आंदोलन पर नकारात्मक पड़ेगा। जो किसान पिछले दो माह से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे, सर्दी के मौसम में उनकी तपस्या पल भर में खत्म करना एक सोची-समझी साजिश का नतीजा है। इस आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसानों की शाहदत पर भी हड़दंगियों ने कालिख पोत दी। अपने आपको पाक-साफ करने के लिए किसान नेताओं को चाहिए कि वह ऐसे हड़दंगियों से नाता खत्म करके इनके खिलाफ कार्रवाई कराने में प्रशासन का सहयोग दें। किसान संगठनों के द्वारा भविष्य में इस तरह का आह्वान न किया जाए जिससे देश की शांति खत्म होने का खतरा बन जाए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here