अमेरिका में एक नई सुबह का आगाज

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दुनिया के सुपरपावर कहे जाने वाले अमेरिका में एक अहंकारी शासन पर विराम लग गया। जो बाइडेन के शपथ लेने के बाद अमेरिकी जनता को एक नई सुबह का आभास होने लगा है। डोनाल्ड ट्रंप के पिछले चार वर्षों में अमेरिका के जनता विशेषकर अश्वेत लोगों ने या कुछ नहीं सहन किया। गत 6 जनवरी की वह घटना जो अमेरिका को शर्मसार करने वाली थी उसके बाद ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही थी कि ट्रंप बाइडेन के शपथ समारोह में विध्न डाल सकते हैं। शपथ ग्रहण समारोह में इसके मददेनजर सुरक्षा को अधिक मजबूत किया गया। अमेरिकी राष्ट्रपति के इतिहास में झूठ के लिए प्रसिद्ध हुए ट्रंप ने जहां औसतन एक दिन में 12 झूठे दावे कर जनता को मूर्ख बनाया, वहीं उनके चार सालों में सुपरपावर की आर्थिक व्यवस्था को बेहद प्रभावित किया। इससे इस बात का आभास हो गया है कि झूठ रूपी कागज की नाव को एक न एक दिन हमेशा के लिए डूबना पड़ता है। ट्रंप को उनकी इस हरकत के चलते ट्वीटर व फेसबुक ने बाहर कर दिया। दुनिया की सुपर पावर आर्थिक व्यवस्था उनके शासनकाल में बेहद प्रभावित रही। परिणामस्वरूप आज अमेरिकां डूबा हुआ है।

आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि चाहकर भी अमेरिका अपना कर्ज नहीं उतार सकता। यानी यदि वह अपनी तमाम अर्थ व्यवस्था को भी बेच दे तो उस पर लगभग 6 ट्रिलियन डॉलर का कर्जा बना रहेगा। कोरोना महामारी के दौरान बड़े-बड़े आर्थिक पैकेज दिए जाने के बाद भी वहां की विकास दर लगातार कमजोर हुई है। महमारी के प्रकोप से बाजारों में मंदी छाई हुई है। आज के समय में हर अमेरिकी पर 23500 डालर का कर्ज है। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका की नई सरकार के लिए कर्ज उतारना एक बड़ी चुनौती होगी। अमेरिका की प्रभावित अर्थ व्यवस्था को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो बाइडेन के सिर पर कांटों भरा ताज होगा। इसके बावजूद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कोरोना महामारी से लडऩे के लिए दो ट्रिलियन डॉलर के आर्थिक पैकेज का ऐलान कर दिया है, जो निश्चित तौर पर अमेरिका के राष्ट्रीय कर्ज में और इजाफा करेगा। आर्थिक विशेषज्ञों का यह कहना कि अमेरिकी आर्थिक व्यवस्था के लिए जिम्मेदार ट्रंप व बराक ओबामा की सरकारें रही हैं। वर्ष 2016 के चुनाव में ट्रंप कर्ज कम करने के वादे पर सत्ता में आए थे लेकिन उनके कार्यकाल में भी कर्ज बढ़ा ही है घटा नहीं, और न ही उन्होंने इसकी कभी चिंता की।

अब भले ही ट्रंप सत्ता से बाहर हो गए हों, लेकिन उनकी हरकतों से ऐसा लग रहा है कि वह चैन से बैठने वाले नहीं हैं। वह बाइडेन सरकार के मार्ग में रोढ़ा डालने का प्रयास करते रहेंगे, क्योंकि ट्रंप ने रिपब्लिकन पार्टी को छोड़ते हुए अपने समर्थकों के साथ देशभक्त पार्टी का निर्माण कर लिया है। वह आगे भी राजनीतिक गतिविधियों को चलाने का प्रयास करते रहेंगे। ट्रंप ने गोरे लोगों को अपना ऐसा मूर्ख, ठूंठ, अंधा भक्त बनाया है कि वे इस सीमा तक सोचते हैं कि प्राण जाए पर ट्रंप न जाएं! वे ये मानते हैं कि काले-वामपंथी, मुसलमान, उदारवादी सब मिलकर महान अमेरिका को खा जाएंगे, उसे बरबाद कर देंगे! बरहाल ट्रंप के जाने के बाद नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए एक चुनौती ट्रंप के अंधभक्त समर्थकों से निपटने की होगी, क्योंकि ट्रंप के अंधभत कानूनी व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं। दूसरी चुनौती अमेरिका की अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ करने और महामारी से जनता को बचाने की होगी। इसके लिए बाइडेन को बहुत ही कूटनीति से काम लेना होगा। तीसरी चुनौती बाइडेन के लिए उन उम्मीदों पर खरा उतरना होगा जो अमेरिका की जनता ने उनसे लगा रखी है।

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