झांसी के पास देवगढ़ में बेतवा नदी के किनारे एक विष्णु मंदिर है। जो भारत के पुराने मंदिरों में एक है। यहां भगवान विष्णु के अवतारों को चित्रित किया गया है इसलिए इसे दशावतार मंदिर भी कहा जाता है। ये करीब 1500 साल पुराना है। माना जाता है कि ये गुप्त शासनकाल में बनवाया गया था। हालांकि ये मंदिर अब जर्जर हालात में है। यहां हुई खुदाई के दौरान मंदिर के चारों कोनो पर छोटे और चौकोर देवालयों के अस्तित्व का पता लगा। इस कारण कहा जा सकता है कि ये मंदिर उार भारत में पंचायतन शैली का शुरुआती उदाहरण है। कहानी: पत्थर और चिनाई वाली ईंटों से बना ये मंदिर सन 500 का है। इस मंदिर में सुंदर नक्काशी के जरिये भगवान विष्णु के दस अवतारों की कहानी बताई गई है। इसलिए इसे दशावतार मंदिर कहा जाता है।
उस काल में ये मंदिर कितना खास रहा होगा इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि गुप्त काल में देवगढ़ ऐसी जगह बना था जो रास्ता सांची, उज्जैन, झांसी, इलाहबाद, पटना और बनारस को जोड़ता था। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद ये मंदिर उजाड़ हो गया, लेकिन सन् 1875 में सर एलेक्जेंडर कनिंघम को यहां गुप्तकाल के अभिलेख मिले थे। उस समय मंदिर का कोई नाम नहीं पता चल पाया था, इसलिये कनिंघम ने इसका नाम गुप्त मंदिर रख दिया था। अदभुत नक्काशी: यहां की खुदाई में भगवान कृष्ण, श्रीराम, नरसिंह और वामन के रुप में भगवान विष्णु के अवतारों की मूर्तियां मिली । मंदिर के अंदर और बाहर के आलों में मूर्तियां रखी हैं जो भगवान विष्णु से जुड़ी कहानियां बताती हैं। जैसे गजेंद्र (हाथी) का मोक्ष, नर और नारायण का प्रायश्चित, राम, लक्ष्मण और सीता का वनवास, लक्ष्मण द्वारा सूर्पणखा की नाक काटना, अशोक वाटिका में सीता को धमकाता रावण।
इनके साथ ही महाभारत से जुड़ी कृष्ण जन्म, कृष्ण और कंस की लड़ाई और पांच पांडवों की मूर्तियां भी बनी हैं। मंदिर के गर्भगृह छत और दीवारों पर सुंदर नक्काशी से भगवान विष्णु और लक्ष्मी की मूर्तियां बनी हुई हैं। उनके पास ही शिव, पार्वती, इंद्र, कार्तिकेय, गणेश, ब्रह्मा और अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियां हैं। इनके अलावा मंदिर के दरवाजे पर गंगा और यमुना (नदियों) देवियों की मूर्तियां बनी हुई हैं। इस तरह पूरे मंदिर में भगवान के दशावतारों के साथ ही अन्य देवी-देवता और उस समय की लोक कलाओं को दिखाती सौ से ज्यादा अन्य मूर्तियां भी हैं। कुछ मूर्तियां तो अभी भी मंदिर की दीवारों पर देखी जा सकती हैं जबकि बाकी मूर्तियां दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय और अहमदाबाद के लालभाई दलपतराय संग्रहालय में रखी हुई हैं।