कांग्रेस में गहराती खाई

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चिट्ठी कांड के बाद हुई कांग्रेस वर्किंग कमिटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक लंबी-चौड़ी उठापटक के बाद ‘ऑल इज वेल’ के भाव के साथ खत्म हुई। पर इस बैठक के बाद से अब तक पार्टी के अलग-अलग खेमों से जो तेवर सामने आ रहे हैं, उससे साफ है कि कांग्रेस के भीतर ‘ऑल इज वेल’ नहीं है। जिस तरह से चिट्ठी लिखने वाले असंतुष्टों के बयान आ रहे हैं और दूसरी तरफ जिस तरह से पिछले कुछ दिनों में शीर्ष नेतृत्व के कुछ फैसले आए हैं, पार्टी में संगठित रूप से इन असंतुष्टों के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठ रही है, उससे साफ है कि पार्टी के भीतर खाई लगातार गहरी हो रही है। पार्टीजनों के बीच बढ़ती दूरियां किसी भी लिहाज से पार्टी की सेहत के लिए ठीक नहीं मानी जा सकतीं।

इसी महीने संसद का मॉनसून सत्र होने वाला है, जब उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी मजबूती के साथ कोविड-19, भारत-चीन सीमा विवाद व इकॉनमी जैसे अहम मुद्दों पर सरकार को घेरने का काम करेगी लेकिन पालों में बंटे नेताओं और टूटे मनोबल के बीच उससे ऐसी उम्मीद ही बेमानी हो गई है। गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा, राज बब्बर, मनीष तिवारी, शशि थरूर जैसे नेता, जो सदन के अंदर पार्टी के खेवनहार होते रहे हैं, वे पार्टी पर ‘लेटर बम’ गिराने वालों में शामिल हैं। पार्टी के अंदर ही उनकी निष्ठा पर सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में ये नेता सदन के अंदर सरकार को घेरने में कितनी दिलचस्पी दिखाएंगे या उनके प्रयासों पर पार्टी को कितना भरोसा होगा, यह आम सवाल बन चुका है। मुख्य विपक्षी पार्टी होने के नाते संपूर्ण विपक्ष को उससे नेतृत्व की उम्मीद रहती है, लेकिन मुख्य पार्टी खुद नेतृत्व के संकट से जूझ रही है। बीजेपी तो पहले से ही कांग्रेसी कुनबे में आई फूट का मजा ले रही है।

सीडब्ल्यूसी मीटिंग के बाद पार्टी ने विभिन्न अध्यादेशों पर अपना रुख और लोकसभा में नेतृत्व को लेकर दो समितियां बनाई। इन समितियों के गठन में असंतुष्ट नेताओं की अनदेखी साफतौर पर नजर आ रही है। अध्यादेश वाली समिति में राज्यसभा से आजाद और आनंद शर्मा जैसे विपक्ष के नेता-उपनेता को छोड़कर पी चिदंबरम, जयराम रमेश व दिग्विजय सिंह को रखा गया है। वहीं लोकसभा में शशि थरूर और मनीष तिवारी जैसे सीनियर नेताओं के होते हुए गौरव गोगोई व अमर सिंह जैसे सांसदों को रखा गया। इतना ही नहीं, गोगोई को लोकसभा में पार्टी का उपनेता और रवनीत सिंह बिट्टू जैसे युवा को व्हिप बनाना भी बताता है कि हाई कमान खत लिखने वाले नेताओं पर ज्यादा भरोसा करने को तैयार नहीं है।

जिस तरह से कांग्रेस के भीतर चिट्ठी लिखने को सीधे-सीधे शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ बगावत के तौर पर देखा जा रहा है, उससे साफ है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा सीडब्ल्यूसी बैठक में दिए गए संदेश ‘जो हुआ, उसे भूलकर आगे बढ़ें’ का कोई खास मतलब नहीं है। पार्टी के भीतर असंतुष्टों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग से भी खाई गहरा रही है। हालांकि सीडब्ल्यूसी की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष की मदद के लिए जिस सिस्टम को बनाने की बात हो रही थी, उसे लेकर भी पार्टी के भीतर की चुप्पी कहीं न कहीं असंतुष्टों को परेशान कर रही है। दरअसल, चिट्ठी में सामूहिक नेतृत्व की भी मांग की गई थी। कहा जा रहा था कि इस खेमे को शांत करने के लिए ऐसा कोई सिस्टम बनाया जा सकता है। बताया जाता है कि इन असंतुष्टों की अपेक्षा है कि इस सिस्टम में अगर उनके दो से तीन सदस्यों को भी जगह मिल गई, तो रणनीतिक फैसलों में उनका वजन बढ़ जाएगा। सूत्रों के मुताबिक फिलहाल हाईकमान ऐसा कोई कदम उठाने के मूड में नहीं है।

ठंडे नहीं पड़े तेवर दूसरी ओर 23 नेता भी चुप बैठने को तैयार नहीं हैं। सोनिया गांधी द्वारा पार्टी फोरम में बात रखने का निर्देश देने के बावजूद ये नेता लगातार बयान देकर मामले को गरमाए हुए हैं। कपिल सिब्बल का ‘बात यहां पद की नहीं, मेरे देश की है’ वाला बयान हो, या जितिन प्रसाद के खिलाफ यूपी में अनुशासनात्मक कार्रवाई को लेकर हुई सामूहिक मांग पर उनकी तीखी प्रतिक्रिया या फिर आजाद जैसे नेता का ‘कांग्रेस के 50 साल तक विपक्ष में बैठने’ वाला बयान- सब कहीं न कहीं यह दिखाते हैं कि यह खेमा फिलहाल खामोश बैठने वाला नहीं है। जिस तरह से पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने हाल ही में वेदों से लेकर भारतीय मनीषा व विश्व इतिहास में असहमति के महत्व को दर्शाते हुए लेख लिखा है, वह भी कहीं न कहीं यह बताने की कोशिश है कि पार्टी नेतृत्व को लिखी चिठ्ठी भी उसी आईने से देखी जाए। सूत्रों के मुताबिक यह खेमा न सिर्फ हाई कमान के फैसलों और उनकी गतिविधियों पर नजर रखे है, बल्कि कहीं न कहीं अपनी आगे की रणनीति भी बना रहा है।

कहा जाता है कि इनमें से कुछ सीनियर नेताओं ने एक छोटा सा रणनीतिक समूह बनाया है, जो आगे की रणनीति तय करेगा। यह खेमा लगातार आपस में मिल रहा है, आगे की राह और रणनीति पर चर्चा कर रहा है। इतना ही नहीं, यह खेमा भीतर ही भीतर पार्टी में और भी तटस्थ लोगों को टटोल रहा है। उल्लेखनीय है कि इनमें से तमाम नेता ऐसे हैं, जिनके पास अपना राजनीतिक वर्चस्व दिखाने का आखिरी मौका है। उनके सामने सवाल उनके सियासी अस्तित्व का है, इसलिए वे असहमति के अपने इन सुरों को मद्धम करने के लिए तैयार नहीं। बताया जाता है कि इस खेमे में जिस तरह से तमाम विकल्पों पर चर्चा चल रही है, उसे देखते हुए फिलहाल कांग्रेस के भीतर से शांति और सामंजस्य की सिंफनी गूंजती नहीं दिख रही।

मंजरी चतुर्वेदी
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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