भारतीय स्टार्टअप्स के लिए भी खतरा

0
205

बीस वीं सदी के अंतिम दशक में खड़ी हुई सिलिकॉन वैली ने कई टेक कंपनियां खड़ी कीं। इससे भारत में भी व्यापार में बदलाव हुए, उत्पादन से सर्विस सेक्टर की ओर हमारा झुकाव हुआ। आईटी सेक्टर के कारण उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में 7% से भी ज्यादा की वृद्धि देखी गई। ठीक इसी तरह पिछले छह-सात सालों में हमने स्टार्टअप में तेजी देखी, जो प्रमुख शिक्षण संस्थानों से प्रतिभाशाली युवाओं को अपने साथ जोड़ने में सफल रहे। बाज़ार में जारी उथलपुथल के बीच स्टार्टअप का सफलतापूर्वक बिजनेस करना चुनौतीपूर्ण है। अधिकांश स्टार्टअप युवाओं केे हैं, ऐसे में जब टैक्स सिर पर हैं, तो स्टार्टअप को सही मार्गदर्शन की जरूरत है। 21वीं सदी की शुरुआत में सर्विस सेक्टर की सफलता के पीछे देश के बड़े व्यापारिक घराने जैसे अंबानी, टाटा, बिड़ला और हिंदुजा आदि का विस्तार था। ये समूह वैश्विक कंपनी के रूप में उभरे। उस समय पारिवारिक व्यवसाय को चलाने के किसी का सिर पर हाथ होना जरूरी था। आज के समय में भी स्टार्टअप को बने रहने के लिए अनुभव, उम्र और वित्त के अलावा इसी तरह के साथ की जरूरत है।

80% स्टार्टअप सर्विस सेक्टर में काम कर रहे आंकड़े कहते हैं कि 80% स्टार्टअप सर्विस सेक्टर में काम कर रहे हैं। वे स्मार्टफोन के जरिए ई-सर्विस और एम-सर्विस उपलब्ध करा रहे हैं। अधिकांश युवा मैनेजर्स ऐसे व्यापार को स्थापित करके कम उम्र में अच्छा पैसा कमाने की चाहत रखते हैं। 20वीं सदी की कंपनियों का यह उद्देश्य नहीं था। 21वीं सदी के मैनेजर्स स्टार्टअप के इस बूम से पैसे बना रहे हैं, हालांकि कोविड-19 की इस परिस्थिति और विदेशों के मुद्रा प्रवाह के कारण यह सब एक छद्म बुलबुला साबित हो सकता है। कोविड-19 और भारत-चीन ने बढ़ाई मुश्किलें कोविड-19 और भारत-चीन तनाव के कारण कई चाइनीज वेंचर कैपिटलिस्ट (वीसी) फर्म और भारतीय स्टार्टअप्स के लिए अनिश्चितताएं बढ़ गई हैं। ये चीनी वीसी फर्म पैसे जुटाने में भारी दबाव झेल रही हैं, दोनों देशों के बीच तनाव के कारण अब ये भारत में निवेश से पहले दो बार सोचेंगी। सवाल है कि क्या कोविड-19 के दौर में जहां बाज़ार धीमा है, पड़ोसी मुल्कों से भू-राजनीतिक विवाद हैं, स्टार्टअप सर्वाइव कर पाएंगे? कई स्टार्टअप अब खर्च में कटौती करने लगे हैं। लॉकडाउन से पहले विज्ञापन और प्रचार में पेटीएम ने वित्त वर्ष 2018 में 2224.9 करोड़ रु. और 2019 में 55% ज्यादा 3451.4 करोड़ खर्च किए थे।

फोनपे ने भी इस मद में 100% रकम ज्यादा खर्च की थी। लेकिन अब स्टार्टअप विज्ञापन के साथ-साथ कर्मचारियों की संख्या में भी कटौती कर रहे हैं। पिछले 4 महीनों में ओला, ओयो, स्विगी ने कई कर्मचारियों की छुट्‌टी कर दी। चूंकि इनमें अधिकांश की फंडिंग चाइनीज़ वीसी फर्म कर रही थीं, ऐसे में इनकी माली हालत और खराब हो सकती है। स्टार्टअप का मूल्यांकन मुश्किल होगा दूसरी ओर, बाजार विशेषज्ञों के अनुसार इससे स्टार्टअप का मूल्यांकन मुश्किल होगा, बल्कि उनके कम मूल्यांकन का भी खतरा बना रहेगा। अब कई प्रतिष्ठित वीसी फर्म ने निवेशक बैंकिंग संस्थाओं को उनका पैसा सुरक्षित रखने और जोखिम कम करने के लिए कहा है। इस तरह स्टार्टअप का भविष्य इन वीसी फर्म्स के हाथों में है और पैसा सुरक्षित रखने के लिए ये विलय या अधिग्रहण भी कर सकती हैं। मंदी का बाज़ार कई चुनौतियां पैदा करता है, जैसा 2008-09 में हुआ था, लेकिन यही उबर, फ्लिपकार्ट, वाट्सएप और एयरबीएनबी जैसे कई सफल स्टार्टअप्स के उदय का दौर रहा। सार यही है कि महामारी के दौर में स्टार्टअप को बने रहने के लिए बिज़नेस मॉडल को समय के हिसाब से अपडेट करना व नवाचारों पर ध्यान देना जरूरी है।

एम. चंद्र शेखर
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here