ऑनलाइन शिक्षा व फीस पर बने गाइडलाइन

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कोरोना महामारी के संकट के दौरान लोग आर्थिक संकट में हैं। कितने ही लोगों की नौकरियां चली गईं और कितनों का काम धंधा बंद होने के कारण रोजी-रोटी का संकट है। खासतौर पर निन वर्ग व मध्यम वर्ग को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसी आर्थिक संकट का प्रभाव छात्रों की पढ़ाई-लिखाई पर भी पड़ा है। स्कूल-कॉलेज बंद है। स्कूलों व कॉलेजों ने ऑनलाइन पढ़ाई शुरू की है जिसके चलते अभिभावकों को लैपटॉप व मोबाइल खरीदना पड़ रहा है। राजधानी में यह स्थिति है कि इलेट्रानिक मार्केट में पुराने मोबाइलों के दाम बढ़ गए हैं। कंप्यूटर मार्केट में पुराने लैपटॉप उपलब्ध नहीं है। यहां तक कि नए लॅपटॉप के मनचाहा मॉडल मार्केट में जल्दी नहीं मिल रहे हैं। काफी देर तक ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों की सेहत पर बुरा असर पडऩे की संभावना बढ़ जाती है। सरकार को चाहिए कि ऑनलाइन पढ़ाई के लिए चिकित्सकों की राय के अनुसार गाइडलाइन जारी करे। देर तक लैपटॉप व मोबाइल देखने से आंखों पर खराब असर पड़ रहा है। खासतौर पर छोटे बच्चों पर। ऑनलाइन लास शुरू होने के कारण अधिकतर अभिभावकों को अतिरित मोबाइल व लॅपटॉप खरीदने पड़ रहे हैं। जिन अभिभावकों के पास पैसा नहीं है या मोबाइल व लॅपटाप खरीदने की सामथ्र्य नहीं है उनके बच्चों की पढ़ाई छूट रही है।

कुल मिलाकर आनलाइन पढ़ाई खर्चीली साबित हो रही है। जबकि अभी नया शैक्षणिक सत्र प्रारभ हुआ है। पढ़ाई अभी एकाध महीने टाली जा सकती है। परंतु निजी सरकारी विद्यालयों में ऑनलाइन पढ़ाई की शुरुआत कर दी गई है। इसके अलावा अभिभावकों पर शुल्क जमा करने का दबाव डाला जा रहा है। निजी विद्यालयों की बात तो समझ में आती है कि उन्हें अपने शिक्षकों व कर्मचारियों को स्वयं के संसाधनों से वेतन देना पड़ता है परन्तु सरकारी विद्यालयों द्वारा भी शुल्क जमा करने को कहा जा रहा है। र्केंद्रीय विद्यालय द्वारा शुल्क की प्रथम किश्त जून में जमा कराया गया था जो कि तीन तीन माह का था। अब जुलाई में दूसरे तिमाही किश्त जमा करने के लिए कहा जा रहा है। राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विविण् ने 20 जुलाई तक पंजीकरण व फीस जमा करने का आदेश दिया है। प्रत्येक वर्ष छात्र 108ए000 रुपये शुल्क जमा करते हैं। इस बार छात्र एकमुश्त जमा कराये जाने का विरोध कर रहे हैं। इस संबंध में छात्रों ने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया है।

छात्रों का कहना है कि कोरोना महामारी के चलते उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। अत: फीस किश्तों में ली जाय। फीस के लिए निजी विद्यालयों द्वारा भी छात्रों पर दबाव डाला जा रहा है। कही कुछ निजी विद्यालयों ने छात्रों की तीन माह की फीस माफ कर सराहनीय कार्य किया है। विद्यालय प्रबंधन इस कदम के लिए बधाई के पात्र हैं। एक बात और भी उभर कर सामने आ रही है कि कमजोर आर्थिक स्थिति वाले अभिभावक फीस मुति या किश्तों में जमा करने की मांग करें तो जायज है परन्तु वे अभिभावक भी शुल्क में रियायत मांग रहे हैं या देने में आनाकानी कर रहे हैं जो कि आर्थिक तौर पर संपन्न हैं। जबकि आर्थिक रूप से सक्षम अभिभावकों को ऐसा नहीं करना चाहिए। निजी विद्यालय तो व्यवस्था प्रबंधन व वेतन के लिए छात्रों की फीस पर ही निर्भर है। सरकारी विद्यालयों में भी अनेक कार्य छात्रों से मिलने वाले शुल्क द्वारा होता है। देशहित में सक्षम अभिभावकों को अपने पाल्य की फीस जमा करनी चाहिए। वही शुल्क न दे पाने वालों के लिए सरकार को रियायत की घोषणा करनी चाहिए। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए।

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