देशहित में नहीं रेलवे का निजीकरण !

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केन्द्र सरकार ने रेलवे के निजीकरण की तरफ अपना कदम बढ़ा लिया है परन्तु यह निजीकरण अन्य क्षेत्रों से अलग होगा। रेल पटरियों व बिजली का उपयोग निजी क्षेत्र के आपरेटर करेंगे और इसका भुगतान करेंगे। आजादी से पहले अनेक कपनियां निजी क्षेत्र में ट्रेनों का संचालन करती थीं। रेलवे का अपना अलग महत्व है। इसके चलते सभी निजी क्षेत्र के संचालक कंपनियों से संचालन अधिकार सरकार ने अपने हाथों में ले लिया। निजीकरण के जरिए या निजी निवेश के जरिये पूंजी जुटाकर सुविधायें देना अच्छी बात हो सकती है परन्तु सेवा क्षेत्र में निजीकरण का अच्छा अनुभव नहीं है। सबसे पहले हम दूरसंचार क्षेत्र की बात करते हैं तो पाते हैं कि वैश्वीकरण के दौर तक बीएसएनएल ने अच्छा कार्य किया। संचार के साधन बढ़ गये, परन्तु इस क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया। दूरसंचार विभाग को भारत संचार निगम में बदल दिया गया। फायदे में चलने वाला विभाग आज निगम के रूप में सरकार के लिए सफेद हाथी बन गया है। यहां के कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़े हैं। वीआरएस स्कीम लागू की गयी है। पूंजी की कमी के चलते सर्विस में कमी आने के कारण उपभोक्ता भी दूसरी कपनियों के साथ चले गये।

निजी क्षेत्र की कपनियों का आलम यह है कि घाटा देखकर अनेक कपनियां अपना कारोबार समेट कर इस क्षेत्र से बाहर हो गयीं। इसमें रिलायंस व उषा जैसी कपनियां हैं। अनेक कपनियों ने अपना परिक्षेत्र छोड़ दिया। अभी भी इस सेटर की स्थिति ठीक नहीं है। अगर निजी कपनियों ने घाटे के कारण अपना कारोबार समेट लिया तो दूरसंचार के क्षेत्र में या होगा, यह कहना मुश्किल होगा। अब दूसरे क्षेत्र की तरफ नजर डालते हैं तो हमारे सामने उड्डयन क्षेत्र आता है। इस क्षेत्र में भी निजी कपनियां थी परंतु केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीयकरण करके इंडियन एयरलाइंस व एयर इंडिया का गठन किया। बाद में इस क्षेत्र को भी निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया। इस क्षेत्र से भी घाटे व अन्य कारणों से कई कपनियां अपना व्यवसाय बंद कर चुकी हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का काफी पैसा उड्डयन सेटर में फंसा हुआ है। पहले भी रेलवे ने कई कार्य निजी क्षेत्र को सौंप चुके हैं। पहले स्टेशनों पर पानी पिलाने वाले हुआ करते थे, उन्हें हटा दिया गया। अब आम यात्री को बोतलबंद पानी खरीदकर पीना पड़ता है। सफाई व अन्य व्यवस्थाएं पहले से ही निजी क्षेत्र को सौंपी जा चुकी हैं। कुछ समय पहले तेजस के नाम से निजी क्षेत्र की ट्रेन चलायी गयी। अब 109 मार्गों पर 151 ट्रेनों के संचालन के लिए रेलवे ने निविदा प्रक्रिया शुरू कर दी है।

सरकार को आशा है कि इससे 30 हजार करोड़ का निवेश आ सकता है। रेलमंत्री पियूष गोयल का माना है कि रेलवे के इस कदम से यात्रियों को विश्व स्तर की सुविधाएं व लोगों को रोजगार मिलेगा। रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष विनोद कुमार यादव ने निजी क्षेत्र की ट्रेनों के संचालन पर सफाई देते हुए कहा कि ट्रेन परिचालन में निजी भागीदारी केवल पांच प्रतिशत होगी। रेलवे मौजूदा समय में 2800 मेल व एसप्रेस ट्रेनों का संचालन करता है। ऐसी ही शुरुआत के क्षेत्र में भी की गयी थी। जब मोबाइल व पेजर के संचलन के लिए निजी क्षेत्र के ऑपरेटरों को अनुमति प्रदान की थी। वह दौर था जब बीरएसएनएल ने मोबाइल सेवा शुरू की थी तो लोग घंटों पंक्ति में खड़े होकर सिम लेते थे। बाद में स्थिति बदली और निजी कपनियों ने आफर देकर उपभोक्ताओं को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया। रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष व मंत्री या इस बात का आश्वासन दे पाएंगे कि निजी क्षेत्र का परिचालन पांच फीसदी से आगे नहीं बढ़ेगा। निजी क्षेत्र के परिचालक केवल फायदे के लिए काम करते हैं। जब तक मुनाफा तब तक जनसेवा। मुनाफा कम होते ही सुविधाओं में कमी करते देर नहीं लगेगी। जबकि सरकार जनहित में कार्य करती है। लाभ-हानि से कोई मतलब नहीं रहता। रेलवे की सेवा आम जनता के लिए जरूरी है। इसका नियंत्रण सरकार के ही हाथ में रहना चाहिए। भारतीय जनता सर्वसुलभ व आवागमन का सस्ता साधन है। निवेश प्राप्त करने के नाम पर इसका स्वरूप नहीं बदला जाना चाहिए।

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