वायरस को हल्के में लेना भारी पड़ेगा

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कोरोना वायरस की भारत में वैसी ही अनदेखी हो रही है, जैसी कुछ दिन पहले अमेरिका ने की थी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जिद में अमेरिका ने देखा कि कैसे वायरस के रहते ही सारी गतिविधियां शुरू कराई गईं। यहां तक नवंबर में होने वाले चुनाव के लिए राष्ट्रपति ट्रंप ने अपनी रैलियां भी शुरू कर दीं। इसी बीच अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लायड की एक पुलिसकर्मी के हाथों हत्या हो गई, जिसके विरोध में पूरे देश में आंदोलन छिड़ गया। आंदोलनकारियों ने भी वायरस के खतरे की अनदेखी की। इसका खामियाजा आज अमेरिका भुगत रहा है। जहां कोरोना वायरस का मामला खत्म होता दिख रहा था वहां अब हर दिन नए केसेज का रिकार्ड बन रहा है। शुक्रवार को 45 हजार नए मामले आए। यह वायरस का प्रकोप शुरू होने के बाद का सबसे बड़ा रिकार्ड है। पहले कोरोना का कहर मोटे तौर पर न्यूयॉक, न्यूजर्सी या कैलिफोर्निया तक था। लेकिन अब एरिजोना, फ्लोरिडा, टेक्सास जैसे नए राज्यों में इसके मामले बड़ी संख्या में आने लगे हैं। यानी जरा सी लापरवाही ने अमेरिका को फिर से खतरे में डाल दिया। इसके उलट भारत में तो कोरोना का वायरस कभी काबू ही नहीं हुआ था। यहां तक अभी धीरे धीरे संक्रमण अपने पीक की ओर बढ़ रहा है और वह भी अलग अलग राज्यों में अलग अलग अंदाज और रफ्तार के साथ और उससे पहले ही सब कुछ खोल दिया गया है।

सरकार इस बात पर ध्यान नहीं दे रही है कि कोरोना वायरस का ग्राफ लगातार ऊंचा होता जा रहा है वह इस बात का प्रचार कर रही है कि लोग जल्दी ठीक हो रहे हैं। सोचें, सरकार ने अप्रैल में वायरस के ग्राफ का कर्व फ्लैट होने यानी समतल होने का दावा किया था और आज स्थिति यह है कि संक्रमितों की संख्या का टावर हर दिन ऊंचा होता जा रहा है और इसमें सरकार यह दावा करने पर ज्यादा ध्यान दे रही है कि 58 फीसदी लोग ठीक हो रहे हैं। इसका क्या मतलब है? रिकवरी रेट 58 फीसदी होने का क्या अर्थ निकाला जाए? क्या इस आधार पर सरकार वायरस की अनदेखी कर सकती है? भारत को हकीकत से आंख नहीं मूंदनी चाहिए। हकीकत यह है कि दो लाख के करीब टेस्टिंग में 20 हजार नए मामले आ रहे हैं। इसका सीधा मतलब है कि जिनके टेस्ट हो रहे हैं उनमें से 10 फीसदी लोग संक्रमित निकल रहे हैं। कुछ समय पहले खुद इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, आईसीएमआर ने कहा था कि 20 टेस्ट में एक संक्रमित मिल रहा है। यानी जो दर पांच फीसदी थी वह दस फीसदी पहुंच गई है। सोचें, अगर भारत में चीन या अमेरिका की तरह टेस्ट हो जाएं तो क्या होगा? चीन ने अपने यहां नौ करोड़ टेस्ट किए हैं और अमेरिका में साढ़े तीन करोड़ टेस्ट हो चुके हैं। भारत में अभी 82 लाख टेस्ट हुए हैं।

अगर अगले दस दिन में एक करोड़ टेस्ट कर दिए जाएं तो कम से कम दस लाख नए केसेज आ जाएंगे। अगर 58 फीसदी लोगों के ठीक होने की बात मान भी लें तो बाकी चार-छह लाख लोगों को सरकार कहां रखेगी, कहां इलाज करेगी और अगर उसमें से तीन फीसदी लोग मर गए तो उतने लोगों का अंतिम संस्कार कहां होगा? भारत सरकार कह रही है कि देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या दोगुनी होने में 19 दिन लग रहे हैं। अगर इस बात को भी माना जाए तो इस रफ्तार से टेस्टिंग में भी 19 दिन में यानी जुलाई के मध्य में देश में दस लाख से ज्यादा संक्रमित हो जाएंगे और जुलाई खत्म होते होते यह संख्या 20 लाख पहुंच जाएगी। तो क्या यह चिंता की बात नहीं है? भारत में जून के 25 दिन में तीन लाख केसेज आए। यहीं हाल दुनिया का है। दुनिया भर में 140 दिन में 50 लाख केसेज आए थे लेकिन 50 लाख से एक करोड़ पहुंचने में सिर्फ 38 दिन लगे। सोचें, अगले एक महीने में दुनिया की क्या स्थिति होने वाली है। भारत के लिए खास चिंता की बात यह है कि दक्षिण अमेरिका के बाद अब दक्षिण एशिया कोरोना वायरस के नए इपीसेंटर के तौर पर उभर रहा है। इसमें भी भारत सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति में है। कुछ समय पहले तक भारत की जो स्थिति थी, वह बदल गई है।

पिछले 15 दिन में भारत में संक्रमितों की संख्या और मरने वालों की संख्या में भी भारत का औसत बढ़ गया है, खास कर दक्षिण एशिया में। दुनिया के ऐसे 20 देश, जो संक्रमितों और मरने वालों की संख्या के लिहाज से शीर्ष पर हैं उनमें संक्रमण बढ़ने और मृत्यु दर दोनों में रोजाना बढ़ोतरी की दर के लिहाज से भारत दूसरे स्थान पर है। भारत में 3.6 फीसदी की रफ्तार से संक्रमण बढ़ रहा है और 4.2 फीसदी दर से मरने वालों की संख्या बढ़ रही है। रोजाना की मृत्यु दर के मामले में भारत से ज्यादा रफ्तार सिर्फ चिली की है। रोजाना औसत बढ़ोतरी के लिहाज से दक्षिण एशिया में भारत एक नंबर पर है और मृत्यु दर के लिहाज से दूसरे स्थान पर है। प्रति दस लाख आबादी पर मरने वालों के मामले में भारत से ऊपर सिर्फ पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं। भारत में ज्यादातर संक्रमित जून में जुड़े हैं और मरने वालों की संख्या भी उसके बाद ही बढ़ी है। इसका साफ मतलब है कि जान की चिंता छोड़ कर जब से जहान बचाने का प्रयास शुरू हुआ है तब से जान और जहान दोनों खतरे में आए हैं। भारत में अनलॉक के नाम पर सब कुछ खोला जा रहा है। धार्मिक गतिविधियों की मंजूरी हो गई है और होटल्स व मॉल्स भी खुल रहे हैं। पर यह अनलॉक ऐसा ट्रैप है, जिसमें संक्रमण और मौत दोनों का अंतहीन सिलसिला चलता रहेगा।

शशांक राय
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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