उत्तर प्रदेश आबादी के लिहाज़ से देश का सबसे बड़ा सूबा है, इसलिए कोरोना को लेकर शुरुआती दिनों से प्रदेश को लेकर सभी चिन्तित थे, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की कुशल नेतृत्व की वजह से प्रदेश सरकार हर मोर्चे पर वायरस को फैलने से रोकने में बेहतर साबित हो रही है। जब 2017 में योगी जी ने उपर्युक्त परिस्थितियों में मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की बागडोर संभाली थी, तो उनके चयन के फैसले पर आम लोग ही नहीं, पार्टी में भी कुछ लोगों को संशय था। लेकिन, आज योगी जी की तारीफ न केवल देश में रहने वाले उनके विरोधी करने पर मजबूर हो रहे हैं, बल्कि पड़ोसी देश पाकिस्तान के भी लोग उनके करोना काल में किए गए कामों के मुरीद हो गए हैं। पिछले कुछ सालों में योगी जी ने एक संन्यासी को लेकर परंपरागत धारणाओं के विपरीत एक योगी की ऐसी छवि उकेरी जिसके एक हाथ में पूजा की थाली तो दूसरे में आईपैड है। उनकी लोकप्रियता का अन्दाज उनके सोशल मीडिया पर राजनीतिक गतिविधियों में इजाफा होने के साथ ही उनके बढ़ते प्रशंसकों से लगाया जा सकता है, आज ट्विटर पर उनके फॉलोअर एक करोड़ से भी अधिक हो गए है, अब उनसे आगे केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस नेता राहुत गांधी सरीखे राष्ट्रीय नेता ही हैं।
वैसे तो योगी जी ने अपने कुशल नेतृत्व की झलक पिछेले तीन सालों में कई बार दिखाई है, उनमें मुख्य रूप से गत वर्ष कुम्भ मेले का सफल आयोजन करके उन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। यह प्रशासनिक सफलता का एक श्रेष्ठ उदाहरण था। यही नहीं, बहुत पुरानी बात नहीं है जब परीक्षा में नकल कराने के लिए उत्तर प्रदेश में पूरा माफिया सक्रिय था, लेकिन इन पर योगी जी द्वारा नकेल कसते ही नकल कर परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या कम होती गई। किसी समय अपराधों के मामले में देश में अव्वल रहने वाला राज्य जो अपराधियों के लिए सबसे सुरक्षित पनाह माना जाता था, आज उस राज्य के अपराधी योगी जी के फरमान से स्वयं पुलिस के आगे आत्मसमर्पण करने पर मजबूर हो रहे है, कोरोना काल से पहले भी जब दिल्ली समेत देश भर में सीएए के विरोध प्रदर्शन ने दंगों का रूप लिया और अराजकता फैलाने की कोशिशें हुईं तो योगी जी के सरकार ही देश के इतिहास की वह पहली सरकार बनी जिसने दंगों के दौरान हुए नुकसान की भरपाई दंगाइयों से ही की। इतना ही नहीं योगी जी ने यह भी सुनिश्चित किया कि उत्तर प्रदेश में कोई शाहीन बाग ना खड़ा हो पाए। लेकिन मुख्यमंत्री के वर्तमान कोरोना के समय में जिस प्रकार से चुनौती को अवसर में बदलने का कार्य किया है, वह अभूतपूर्व और अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल साबित हुआ है।
जब देश में लॉकडाउन शुरू हुआ तो सीएम योगी जी ने दैनिक निगरानी के लिए एक टीम गठित की और बिना कोई देर किए दिहाड़ी मजदूरों के भरण-पोषण के लिए निश्चित धनराशि मुहैया कराने के उद्देश्य से वित्तमंत्री की अध्यक्षता में समिति गठित की। सीएम ने श्रम विभाग के 20.37 लाख पंजीकृत श्रमिकों को ‘लेबर सेस फण्ड’ से प्रत्येक श्रमिक को 1000 रुपए प्रति माह डीबीटी के माध्यम से उपलब्ध कराने की व्यवस्था की। वहीं नगर विकास विभाग को स्ट्रीट वेंडर, ऑटो चालक, रिक्शा चालक, ई-रिक्शा चालक, मंडी में काम करने वाले पल्लेदार समेत करीब 15 लाख श्रमिकों का डेटाबेस सहित विवरण 15 दिन में तैयार करने के निर्देश दिए। इसके बाद ऐसे सभी श्रमिकों के खाते में प्रतिमाह 1000 रुपये ट्रांसफर किए गए। इसके अलावा लॉकडाउन के कारण कोटा में फंसे यूपी के दस हज़ार छात्रों की आवाज को सुनने वाले वह देश के पहले मुख्यमंत्री बने और उनके आदेश पर करीब 8,000 छात्रों को वापस लाया गया। सीएम योगी ने प्रदेश में रह रहे लोगों का तो ध्यान रखा ही, साथ ही गैर प्रदेशों में काम कर रहे न केवल यूपी के निवासियों बल्कि दूसरे प्रदेशों के मजदूरों की भी चिंता की। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश-तेलंगाना, कर्नाटक, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा, बिहार, गुजरात, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और दिल्ली में रह रहे अपने निवासियों तक सभी सुविधाओं को पहुंचाने के लिए एक-एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया।
उनके निर्देश पर लॉकडाउन के दौरान दूसरे प्रदेशों में फंसे 10 लाख मजदूरों को वापस लाने का फैसला लिया गया इसके साथ उनकी आर्थिक स्थिति और पेट भरने की व्यवस्था भी की गई। सरकार ने प्रत्येक मजदूर को 1-1 हजार रुपए तथा 15 दिन का राशन मुफ्त देने की व्यवस्था भी की गई, इसके बाद समाधान निकाला और उत्तर प्रदेश के बाहर फंसे 31 लाख से अधिक लोगों को घर वापस कराया और उन्होंने एक कुशल सारथी की भूमिका का निर्वाह किया। इसके अलावा जब देश में लॉकडाउन के दौरान दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे राज्यों से लाखों मजदूरों की भीड़ अचानक से उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर एकत्र हो गई, तो राज्य सरकार ने रातों-रात ना सिर्फ इनके लिए भोजन और ठहरने का इंतजाम कराया बल्कि बसों की व्यवस्था करके इनको इनके गंतव्य तक भी पहुंचाया। पर योगी जी ने इतना करके इसे ही अपनी जिम्मेदारी का अंत नहीं माना। यह बात कुछ लोगों को सामान्य लग सकती है कि जो मजदूर कल तक दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे राज्यों के चलते उद्योगों की जरूरत थे, लॉकडाउन के चलते वे चंद दिनों में ही उन पर बोझ बन जाएं और इस प्रकार के हालात उत्पन्न कर दिए जाएं और वे पलायन के लिए मजबूर हो जाएं। लेकिन, योगी जी को यह घटना अमानवीय लगी और वह कर्मयोगी बन कर यहीं नहीं रुके बल्कि आगे बढ़े। उन्होंने अन्य राज्यों की सरकारों से कहा कि वे भविष्य में उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को उत्तर प्रदेश सरकार की अनुमति के बाद ही काम पर रख सकेंगे।
इतना ही नहीं योगी जी ने प्रवासी मजदूरों को राज्य में ही काम देने का वादा किया और उनकी आर्थिक सुरक्षा हेतु प्रवासन आयोग का गठन करने का निर्णय लिया जो उनकी नौकरी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ उनका बीमा करके उनका जीवन भी सुरक्षित करेगा। प्रदेश सरकार दारा वापस आए 34 लाख श्रमिकों की स्किल मैपिंग की गई है और उन्हें उनकी क्षमता व योग्यता के अनुसार रोजगार के अवसर मुहैया कराए जा रहे हैं। इनमें से 7 लाख कुशल कामगार पाए गए हैं, जबकि शेष 25 लाख अकुशल हैं। मनरेगा के तहत 57 लाख से अधिक श्रमिकों को रोजगार दिया गया है। विभिन्न उद्योगों में लगभग 40 लाख लोगों को रोजगार के अवसर दिए जा रहे हैं। विभागों के बीच कन्वर्जंस के जरिए 20 लाख श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। इसी क्रम में योगी जी ने करीब डेढ़ लाख प्रवासी कामगार व श्रमिकों को नौकरी का ऑफर लेटर भी सौंपें हैं। इसी को आगे बढ़ाते हुए कामगारों और श्रमिकों के व्यापक हित और सर्वांगीण विकास के लिए प्रदेश सरकार ने देश में सबसे पहले राज्य कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग गठित किया है।
यह आयोग प्रदेश के कामगारों व श्रमिकों के लिए सेवायोजन और रोजगार सृजन की स्थापित प्रक्रिया का क्रियान्वयन, निगरानी और मूल्यांकन करेगा। इसके अलावा, वर्तमान वैश्विक परिदृश्य, जिसमें कई निवेशक चीन से दूर जा रहे हैं, सीएम योगी जी ने प्रदेश में श्रम कानूनों में ढील देकर उन निवेशको को आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। एक प्रदेश के मुखिया के रूप में अपनी दायित्वों का निर्वहन करने का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष प्रमाण मुख्यमंत्री योगी जी ने तब दिया जब कोरोना काल में उन्हें अपने पिता के निधन की सूचना मिली, लेकिन उन्होंने प्रदेश की जनता के प्रति अपने कर्तव्य को पहले रखा और अंतिम संस्कारमें भाग नहीं ले पाए और पत्र लिखकर अपनी माँ से क्षमा याचना की। ‘अंतिम संस्कार के कार्यक्रम में लॉकडाउन की सफलता और महामारी कोरोना को परास्त करने की रणनीति के कारण भाग नहीं ले पा रहा हूं।’ उनके कार्यों की फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी है और सब कार्यों का विवरण संभव नहीं है। और अंत में केवल इतना ही कहेंगे कि एक कुशल शासक की असली परीक्षा संकटकाल में ही होती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण आज हमारे सामने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी का है।
बलवंत मेहता
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)