मैंने बाल कटाए !

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जब से मेरी उम्र बढ़नी शुरु हुई है तब से मेरे बालों के बढ़ने की गति धीमी पड़ गई है। इसके बावजूद मैं आम तौर पर महीने में एक बार बाल जरुर कटवा लेता हूं। इसके साथ ही उन्हें डाई भी करवाता हूं क्योंकि करीब डेढ़ दशक पहले मेरे भतीजे की शादी में मेरे बाल डाई करवा दिए गए थे क्योंकि तब सफेद बाल तेजी से आने शुरु हो गए थे। ऐसा करवाने में मेरी पत्नी, भाभी व एक पारिवारिक डॉ. महिला का विशेष हाथ था। जब दिसंबर 2018 में बेटे के पास कनाडा गया तो करीब चार माह तक वहां रहने के दौरान बाल नहीं कटवा पाया। इसकी कई वजह थी। सबसे बड़ी वजह तो यह थी कि मुझे डर लग रहा था कि पता नहीं विदेशी नाई मेरे बाल कैसे काट दें। अतः भारत लौटते ही बाल कटवाए जो कि काफी बड़े हो गए थे। इस बार कोरोना महामारी के कारण लाकडाउन होने से सैलून बंद हो जाने के कारण बाल नहीं कटवा पाया था जबकि इस लाकडाउन की अवधि समाप्त होने के पहले प्रधानमंत्री का भाषण सुनता तो इस बात पर ध्यान देता कि सैलून खुलने की वह इजाजत दे रहे हैं या नहीं। फरवरी से जून तक की लंबी अवधि में मेरे बाल काफी बढ़ गए व समय पर डाई न होने के कारण मेरे बाल देसी नुस्खों से काले सफेद व लाल परो जैसे लग रहे थे।

सोसायटी के एकाध लोगों ने स्थानीय नाईयों को बुलाकर बाल कटवाए मगर मैं गंदगी व कोरोना फैलने के डर से ऐसा नहीं करना चाहता था। मुझे पता था कि बाल काटे जाने पर सैलून में कितनी गंदगी फैलती है।अतः जब सैलून खोले जाने की सरकार ने इजाजत दे दी तो मुझे बड़ी राहत मिली। बढ़ती गर्मी में बाल और भी ज्यादा परेशान कर रहे थे। मैं अपने वसुंधरा एनक्लेव की डीडीए मार्केट के एक सैलून पर गया जहां महिलाओं व पुरुषों दोनों के बाल काटने का काम किया जाता है। हालांकि वहां जाने तक संक्रमण की आशंका को लेकर डरा हुआ था। मैंने अपना मास्क लगा रखा था व सैलफोन ड्राइवर के पास गाड़ी में ही छोड़ दिया था। सैलून के बाहर खड़ी एक महिला ने मुस्करा कर मेरा स्वागत करते हुए साथ वाले दरवाजे से अंदर जाने को कहा। जब मैं अंदर जाने लगा तो वहां खड़े कर्मचारी ने मुझसे मेरा चश्मा व चप्पले उतारने को कहा व मेरी चप्पलों को एक प्लास्टिक के थैले में डालकर मुझे सफेद रंग की नई प्लास्टिक की चप्पले पहनने को दे दी। मेरा हाथ सेनेटाइजर से धोने को कहा गया। उसके बाद मुझे एक विशेष कुर्सी पर बैठाकर मुझे अपना सिर पीछे रहने को कहा गया। मेरे गले में काले व प्लास्टिक के किट डाली व मुझे विशेष कपड़े पहनाए। कटिंग करने लगे।

कटिंग करने वाले पीपीई किट पहने हुए थे। उसने पहले मेरे बालों को अच्छी तरह से शैंपू से धोए व फिर उन्हें ब्लोअर से सुखाने के बाद मुझे ठीक से बैठने की सलाह दी व इसके बाद कैंची व कंघी सैनेटाइज करके मेरी कटिंग शुरु कर दी। अनु माथुर बताती है कि जब कोरोना महामारी शुरु हुई तो किट व दूसरी जरुरी सैलून सामान बनाने वाली कंपनियों ने आनलाइन कान्फ्रेंस करके उन्हें बताया कि उन लोगों को अपने साथ में किन चीजों की जरुरत होगी व वे ही उन्हें यह सामान सप्लाई करने लगे। कोरोना के पहले उनके यहां महिलाएं ज्यादा आती थीं व अब महिलाओं व पुरुषों की संख्या बराबर है। विशेष किट के इस्तेमाल के कारण कटिंग के दाम भी बढ़ गए है। वे बताती हैं कि सुरक्षा की दृष्टि से पहले से समय तय करके ही किसी ग्राहक को बुलाती है। महिलाओं का तो पहले ही से विशेष केबिनों में काम किया जा रहा था। उनका मानना था कि कमाई घटने के बाद भी वह अपना धंधा जारी रखेगी क्योंकि यह तो एक राष्ट्रीय कर्तव्य की तरह है। मुझे याद है कि जब कानपुर से अपना इलाज करवाने मेरे जीजाजी दिल्ली आए थे तब उनकी छाती में डायलिसिस के लिए एक उपकरण फिट कर दिए जाने के कारण मैं उनकी कटिंग करवाने यहीं आता था। ताकि उन्हें नहलाने में कोई दिक्कत न हो व उनका सिर आराम से धोया जा सके।

जिस इलाके में पैदल चलने में खतरा लग रहा हो क्योंकि जगह जगह बिखरे थूक के कारण यह डर लग रहा हो कि कहीं संक्रमित न हो जाए तो वही एक सैलून में सुरक्षा के इतने प्रबंध किए जाना देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। चलते समय कर्मचारी से वहां का नंबर ले लिया व शाम को घर आकर उन महिला को फोन कर पता चला कि एक दशक से भी ज्यादा समय से सैलून चलाने वाली उस महिला का नाम अनु माथुर था व उन्होंने अपनी मां के निर्देश पर 10 वीं कक्षा के बाद ही इन सबका प्रशिक्षण ले लिया था। हालांकि वे एम.ए. बीएड हैं व उनके पति भी एमबीए हैं व एक अच्छी कंपनी में उच्च पद पर काम करते हैं। उनके मुताबिक जब उन्होंने यह काम करने व इस माहौल में सैलून पुनः शुरु करने का फैसला लिया तो वे एक द्वंद से गुजर रही थी। परिवार का कहना था कि इस माहौल में बाहर जाकर सैलून का काम शुरु करना सही नहीं होगा।

अनु माथुर के मुताबिक उन्हें लगा कि एक डाक्टर की तरह उनकी भी एक जिम्मेदारी है कि वे भी आम जनता के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए उन्हें अपनी सेवाएं दे सके। इसके अलावा उन्हें अपनी कमाई से ज्यादा अपने यहां काम करने वाले स्टाफ की आर्थिक स्थिति का ध्यान आ रहा था। सैलून लगातार बंद रहने के कारण उनकी कमाई काफी कम हो गई थी व उन्हें इस कारण कुछ स्टाफ को छुट्टी भी करनी पड़ी थी। अतः उन्होंने अपना सैलून पुनः खोलने का फैसला किया। उन्होंने अपनी जिंदगी में जिस व्यवसाय को चुना वे उसकी अनदेखी कैसे कर सकती है। उनका मानना है कि अगर नागरिक थोड़ी थोड़ी अपनी जिम्मेदारी को समझे व सतर्कता बरते तो हम इस महामारी से टक्कर ले सकते हैं। ब्लासम यूनीसैक्स सैलून की इस मालकिन का कहना है कि पहले तो वे सैलून पर आने से डरती थी मगर अब उनके मन से कोविड को लेकर डर निकल चुका है। सबको सतर्कता बरतनी चाहिए डरना नहीं चाहिए।

विवेक सक्सेना
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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