कोरोना महामारी वैसे तो दुर्भाग्यपूर्ण है, परंतु इस महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ मोडऩे का उपयुक्त अवसर प्रदान किया है। अब जरूरत है ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधन उपलब्ध कराकर देश की अर्थव्यवस्था को ग्रामीण क्षेत्रों की ओर उन्मुख करने का। महात्मा गांधी ने आजादी के बाद स्वावलंबी ग्राम का सपना देखा था। उन्होंने कुटीर उद्योग द्वारा गांवों को संपन्न व स्वावलम्बी बनाने की बात कही थी। गांधी जी का सपना ग्रामीण क्षेत्र में संसाधन उपलब्ध कराकर पूरा किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर न होने के कारण यहां के श्रमिकों का पलायन महानगरों व औद्योगिक क्षेत्रों की तरफ होता था। इससे शहरों पर बढ़ती आबादी का दबाव होता था। व्यवस्था के प्राधिकरणों को सुविधा उपलब्ध कराने में भी दिकत होती थी। झोपड़ पट्टी भी शहरों में विकसित हो जाते हैं। यहां जीवन यापन के लिए मूलभूत सुविधा का कल्पना करना ही बेमानी होती है। इन इलाकों में हाइजीन की सुविधायें उपलध न होने के कारण संक्रमण भी आसानी से फैलता है। झोपड़पट्टी की बनावट अवैध होती है।
घनी आबादी व अनियोजित बस्ती के कारण विकास के कार्य करने में कई तरह की दिकतें आती हैं। कोरोना संक्रमण के बाद अब शहरों की उपरोत बस्तियां लगभग खाली हो चुकी हैं। यहां की अधिकतर आबादी अब ग्रामीण क्षेत्र की तरफ पलायन कर चुकी है। जो बचे हैं वे भी संक्रमण व अन्य कारणों से अपने घर अर्थात गांव की ओर पलायन करने के लिए उत्सुक हैं। ऐसे में इस आबादी को गांव में ही काम मिल जाए तो शहरों पर आबादी का दबाव कम होगा। वहीं श्रमिकों को भी आर्थिक रूप से फायदा पहुंचेगा योंकि गांवों में उसे रहने व खाने में व्यय कम करना पड़ेगा। साथ में श्रमिकों को एक स्वच्छ जीवन का माहौल भी मिलेगा। कृषि कार्य के लिए भी श्रमिक उपलब्ध रहेंगे। कृषि कार्य के लिए दिन में समय की बाध्यता नहीं रहती। कृषि कार्य रात व दिन में कभी भी किये जा सकते हैं। अत: ये श्रमिक अपने औद्योगिक क्षेत्र में कार्य करने के बाद कृषि कार्य में भी संलग्न हो सकते हैं। ऐसा हुआ तो न केवल कृषि उत्पाद बढ़ेगा बल्कि परती पड़ी जमीनें भी उपयोग में आ सकेंगी। इसके अतिरित ये श्रमिक पशुधन आदि का स्वव्यवसाय भी खाली समय में कर सकते हैं।
प्रवासी मजदूरों के अपने गांव लौटने से होने वाले परिणामों की आहट उद्योग जगत भी महसूस कर रहा है। श्रमिकों को पलायन से तात्कालिक रूप से कल कारखानों में श्रमिकों की कमी महसूस की जा रही है। सीबीआई के अध्यक्ष उदय कोटक ने भी सरकार से आग्रह किया है कि सरकार उद्योग जगत के साथ मिलकर एक ऐसी नीति बनाए जिससे कल-कारखानों व अन्य आर्थिक गतिविधि महानगरों तक केंद्रित होने के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों की ओर जाने के लिए प्रोत्साहित हों। सीआईआई ने भी महसूस किया है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ अर्थव्यवस्था मोड़कर भारतीय अर्थव्यवस्था के ढांचे को और भी मजबूत बनाया जा सकता है। अब गेंद सरकार के पाले में है कि अवसर को किस तरह समृद्धि की ओर ले जाती है। इसके लिए सिर्फ पैकेज व घोषणाओं से काम नहीं चलेगा। केंद्र राज्य सरकारों को जमीनी स्तर पर कार्य करना होगा। श्रमिकों की सबसे बड़ी समस्या है कि उन्हें अस्सी प्रतिशत रोजगार असंगठित क्षेत्र में मिलता है। यहां कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है। अत: असंगठित क्षेत्र को संगठित क्षेत्र में बदलना होगा। श्रम सुधारों को उपयुत ढंग से लागू करना होगा।