दूर करनी होगी कार्यप्रणाली की खामियां

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आपदा प्रबंधन में चाहे जितनी योजनागत विधियों से राहत पहुंचाई जाए, कोई न कोई कमी रह ही जाती है। आपदा में अपेक्षा होती है कि राहत त्वरित एवं सुविधाजनक ढंग से पहुंचाई जाय। इसके लिए समंवय, समय प्रबंधन, चरणबद्ध कार्यक्रम, बहुस्तरीय निरीक्षण व भविष्य के आंकलन की आवश्यकता होती है। कोरोना महामारी आपदा में राहत कार्य में उपरोत कई घटकों की उपेक्षा की जा रही है, जिससे राहत कार्य को लेकर अलोचना सरकार को झेलनी पड़ रही है। रेलवे व राज्य सरकारों में समंवय न होने से महाराष्ट्र व पंजाब में विशेष श्रमिक ट्रेन चलाने में कठिनाई हुई। प्रवासी श्रमिकों को असुविधा का सामना करना पड़ा। पंजाब में तो श्रमिक जब स्टेशन पर पहुंचे तो पता चला कि विशेष टे्रन निरस्त हो गई है। श्रमिक चिकित्सकीय जांच कराकर अपने केंद्र से स्टेशन गए थे। श्रमिकों को खुले में छोड़ दिया गया, जिसको लेकर श्रमिकों ने प्रदर्शन किया। उचित निरीक्षण के अभाव में वारंटाइन सेन्टरों से अव्यवस्था की शिकायतें आ रही हैं।

कहीं खाने का प्रबंध ठीक नहीं है तो कहीं रहने की उचित व्यवस्था नहीं है। कहीं तो वारंटाइन किए गए लोग बाजार घूमने चले जा रहे हैं। विशेष श्रमिक टे्रनों में खाने-पीने की किल्लत हो रही है। टे्रनों में कभी-कभी स्तरीय खाना नहीं मिलता। स्तरीय खाना न मिलने से श्रमिक खाना फेंकने पर भी मजबूर हुए। भीषण गर्मी में रेलवे पर्याप्त पीने का पानी नहीं उपलध करा पा रहा है। भीषण गर्मी में कई लोगों की ट्रेन व स्टेशनों पर मृत्यु हो चुकी है। मजदूरों की काफी शिकायत के बाद रेलवे ने प्रत्येक यात्री को दो बोतल पानी उपलब्ध कराने का निर्णय लिया। पहले रेलवे एक बोतल पानी उपलब्ध कराता था। टे्रनों की यात्रा 24 घंटे से लेकर 48 घंटे से भी अधिक का है ऐसे में एक बोतल पानी से कैसे काम चल सकता है इसका जवाब केवल रेलवे ही दे सकता है। टे्रनें गन्तव्य स्थान से भटक कर दूसरे जगह चली जा रही हैं। यात्रा में इतना विलंब होता है कि घंटों का सफर दिनों में टे्रनों ने तय किया।

सरकारों के दावों के बावजूद श्रमिकों को सैकड़ों किलोमीटर दूरी पैदल, साइकिल व मोटरसाइकिल से तय करना पड़ा। कइयों ने यात्रा के दौरान अपने प्राण तक गवां दिए। अस्पतालों में बिना कोविड19 जांच के सामान्य मरीजों के साथ कोरोना संक्रमित मरीज को भर्ती कर लिया गया। वर्तमान आपदा प्रबंधन में समयबद्धता पर ध्यान नहीं दिया गया। श्रमिक जब लॉकडाउन के प्रारंभ में पैदल आ रहे थे तो प्रदेश सरकार बसों में किराया ले रही थी। जिसे आलोचना के बाद लेना बंद कर दिया गया तब तक काफी श्रमिकों को किराया चुका कर आना पड़ा और दिकत हुई। अगर यह निर्णय पहले ही ले लिया जाता तो काफी उचित होता। भविष्य के आंकलन में भी त्रुटियां हुई। जब लॉकडाउन-1 शुरू हुआ तभी स्थानीय श्रमिकों का पलायन शुरू हो गया था। अगर भविष्य का आंकलन कर लिया गया होता तो प्रवासी मजदूरों को सुगमता व योजनाबद्ध ढंग से गन्तव्य तक पहुंचाया जा सकता था।

इसी तरह शुरू में विदेश से आने वाले लोगों को सरकारी देखरेख में वारंटाइन सेन्टरों में वारंटाइन कराया गया होता तो यह स्थिति शायद नहीं होती। यहां भी भविष्य के आंकलन में त्रुटि मानी जा सकती है। अगर टेस्टिंग की बात करें तो अब तक देश मे स्क्रीनिंग के लिए टेस्टिंग शुरू हो जानी चाहिए। परन्तु देश कई राज्यों में अभी भी कांट्रेट ट्रेसिंग के आधार पर जांच की जा रही है। इसमें उप्र भी शामिल है। अब तक तो देश में हर जगह रेंडम जांच शुरू हो जानी चाहिए थी। उप्र की स्थिति पर बात करें तो यहां अभी लगभग 5000 जांच ही रोजाना हो पा रही हैं। यह आबादी के हिसाब से काफी कम हैं। आबादी और टेस्ट के अनुपात में उप्र का स्थान देश में नौंवा है।

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