पढऩे से मिलने वाला सुख स्थायी है। यह बाहरी भी है और आंतरिक भी। पढ़ा कुछ भी जा सकता है। अब तो समाचारपत्र, पत्रिकाएं न जाने क्या-क्या हमारी हथेली पर, हमारी उंगलियों की छुअन पर, हमारे मोबाइल में ही मिल जाते हैं। इस सब कुछ में किताब की बात एकदम अलग है। किताब हाथ में लेने का सुख, उसे देखने का सुख, उसकी गंध और न जाने क्या-क्या सब एक साथ हमें मिलता है। पढ़ते-पढ़ते छाती पर किताब रखकर सो जाने का आनंद तो अलग ही है, जैसे कोई किसी शिशु के साथ खेलते-खेलते आनंद विभोर होकर सो गया हो। यह अकेला समय है। हम परिवार के साथ अकेले हैं। कस्बा, शहर, जिला, राज्य भी अकेला है। यहां तक कि देश भी अकेला है इस समय। सबको अपनी लड़ाई अकेले लडऩी है।
लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के इस समय में किताब के बदलते रूपों ने समाज को बचाया है और समाज ने इन्हें अपनाया है। ई-बुक की मांग बढ़ी है। आंखें मोबाइल और कंप्यूटर-लैपटॉप पर पढऩे की अभ्यस्त हुई हैं। हम कंप्यूटर टेबल पर सिर रखकर पढ़ते-पढ़ते सोने लगे हैं। ऑडियो बुक का चलन भी इधर बहुत बढ़ा है। घर में खाना बनाते, बर्तन साफ करते, पोछा-सफाई करते हम किताबें सुनने लगे हैं। एक नई तरह की किताब का जन्म भी इस समय में हुआ है-वाट्सऐप बुक। वाट्सऐप पर पढ़ी जाने वाली किताब। ये किताबें वाट्सऐप के लिए बनी हैं और उसी पर उपलब्ध हैं। ऐसे लोग बहुत ज्यादा हैं जो कंप्यूटर का इस्तेमाल नहीं करते। मोबाइल सभी के पास होता है। वाट्सऐप का इस्तेमाल भी सभी करते हैं। इनके लिए वाट्सऐप बुक विशेष रूप से बनाई गई।
कह सकते हैं कि कोरोना काल की यह नई खोज है। ई-बुक और ऑडियो बुक जहां छपी किताब की ही प्रतिकृति हैं, वहीं वाट्सऐप बुक एकदम नई किताब है। यह पढऩे का भरपूर आनंद देती है। कई किताब, कई लेखक, कई विधाएं एक साथ। वह भी निशुल्क। इसे बेचा तो जा ही नहीं सकता। कोई बंधन इस पर लगना संभव नहीं। सबको सुलभ हो इसीलिए इसे बनाया गया। किताब के लिए कोई वर्ग भेद नहीं है, अमीर-गरीब, अगड़ा-पिछड़ा, छोटा-बड़ा, स्त्री-पुरुष सब बराबर हैं। शिशु तेजी से अपना विकास करता है, शारीरिक भी और मानसिक भी। किताब उससे भी ज्यादा तेजी से पढऩे वाले को चौतरफा आगे बढ़ाती है। किताब सबकी है, सबके लिए। किसी के भी पास जा सकती है, कहीं से भी आ सकती है। बिना किसी भेदभाव के, शिशुओं की तरह।
अशोक महेश्वरी
(लेखक राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक हैं।)