बीते तीन चार महीनों से कोरोना वायरस लोगों की सेहत के लिए बड़ा खतरा साबित हो रहा हैए साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी खोखला कर रहा है। चीन और अमेरिका जैसे ताकतवर देशों के लिए चौतरफा चुनौती बढ़ती जा रही है तब भारतीय परिदृश्य में लॉक डाउन से उपजे आर्थिक संकट को लेकर उद्योग जगत की चिन्ता जायज है। एक तो पहले ही आर्थिक मंदी से देश जूझ रहा है, जिस पर यह नया वायरस संकट बची-खुची संभावनाओं पर विराम लगाने को आतुर है, तब जरूरी हो जाता है कि कुछ ऐसे उपायो की तरफ सरकार और उद्योग जगत मिलकर आगे बढ़े, जिसमें आर्थिक गतिविधियों के लिए गुंजाइश भी बनी रहे। जाहिर है, इसके लिए उद्योग जगत को राहत पैकेज चाहिए तो आम लोगों के लिए कुछ ऐसे पैकेज सामने आने चाहिए जिससे हाथों में जीवन यापन के लायक मौद्रिक तरलता की पहुंच बढ़े। यह अच्छी बात है कि यूपी समेत कई राज्य सरकारों ने इस दिशा में पहल की है। हालांकि घोषणाओं के क्रियान्वयन पर ही असल मंशा फ लीभूत होगी। लॉक डाउन की स्थिति में उस तबके के लिए बड़ी समस्या पैदा हो जाती है, जो रोज कुआं खोदता है और पानी पीता है। इस वर्ग के लिए राहत पहुंचाने का मैकेनिज्म इसलिए भी सवालों के घेरे में है कि एक बड़ी आबादी ऐसे लोगों की यायावरी जैसी होती है।
आज यहां, कल कहीं और, इस तरह जिन्दगी का सफर चलता रहता है। ऐसे तबके के दिहाड़ी मजदूर की श्रेणी में पंजीकरण की व्यवस्था टेढ़ी खीर साबित होती है। मसलन, यूपी में श्रम विभाग की माने तो 20-22 लाख के आसपास लोग पंजीकृत है, उन्हें तो डीबीटी के जरिए आर्थिक मदद पहुंचाई जा सकती है लेकिन जो इस श्रेणी में नहीं है, उन्हें राहत पहुंचाना किसी भी सरकारी एजेंसी के लिए आसान नहीं है। वैसे भी ऐसी स्थिति में पैसे के बंदरबांट की संभावना प्रबल हो जाती है, अनुभव तो यही संकेत करता है। रही बात प्राइवेट संस्थानों की तो, यह जरूर सरकार की तरफ से कहा गया कि लॉक डाउन की अवधि में उनकी सैलरी ना काटी जाए। आपात स्थितियों में मानवीय दृष्टिकोण जरूरी हो जाता है। पर कही जगह ऐसा देखा गया है, जहां छुट्टी तो दे दी गई लेकिन वेतन भी काट लिया गया। नोएडा की एक कंपनी का मामला चर्चा रहा। सबसे बड़ी मार असंगठित क्षेत्र के लोगों पर पड़ी हैए जिनका कोई पुरसाहाल नहीं है। आर्थिक मंदी की मार से पहले ही इस बड़े फुटकरिया वर्ग का वजूद खतरे में था। अब सिर पर आ पड़ी यह नहीं जंग, जो जरूरी भी है, से थोड़ी-बहुत चल रही गतिविधियों के जरिए जिन लोगों का पेट पल रहा था। उनके लिए वजूद बचाने का खतरा पैदा हो गया है। खुद प्रधानमंत्री ने उद्योगपतियों से इस संकट पर चर्चा की, जिसमें कर्ज से राहत की मांग की गई। जरूरी भी है, संगठित क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। असंगिठत क्षेत्र की तरफ ध्यान देना भी जरूरी है। उमीद की जानी चाहिए कि केन्द्र सरकार की तरफ से कोई रास्ता जरूर निकलेगा, जो इस लड़ाई में संजीवनी साबित होगा।