कैशलैस होती जिन्दगी में बढ़ रही हैं कुछ नई तरह की मुश्किलें भी

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कैशलैस
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समस्याओं को समझने का प्रयास राजनीतिक डिजिटल ईमानदारी से हो रहा है। हम सब साक्षर हो चुके हैं इस पुष्टि के बावजूद लोग खोज में लगे हैं कि वास्तव में कितने मानुस निरक्षर हैं और डिजिटल जिन्दगी के तकनीकी पहलुओं से अनजान हैं। बाजार में सरकारी बैंक का एटीएम है जिसे बैंक ने आउटसोर्स कर रखा है। जिसमें से कभी सिर्फ सौ के नोट निकलते हैं तो कभी सिर्फ दो हजार के। रिजर्व बैंक वैसे ही इसमें डालते हैं। एटीएम न चले तो इस बारे में कोई फोन घुमाकर राजी नहीं। राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान के अंतर्गत यहां सफाई हो या न हो, सुबह की सैर के समय एटीएम कार्ड साथ ले गया सोचा सुबह रश नहीं होता, पैसे निकाल लेता हूं मगर एटीएम में कैश नहीं था। मुझे लगा एटीएम में कैश न डालकर ज्यादा डिजिटल होने में सहयोग करना चाहिए। अब तो एक केले की कीमत का भी डिजिटल भुगतान कर सकते हैं। सब कुछ डिजिटल हो रहा है प्यार, मुहब्बत, भावनाएं और हां रिश्ते भी। गर्व की बात हैं कि देश इंटरनेट प्रयोग के हिसाब से दुनियां में दूसरे नंबर पर है अगर मगर गुणवत्ता व स्पीड के मामले में थोड़ा टांय-टांय फिस्स हो भी गया तो क्या फर्क पड़ गया। अब हाथी खड़ा होकर हिलने लगे छोटे मोटे वृक्ष हो जाएं तो बुरा नहीं मानना चाहिए।।

कैशलैस
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जिन्दगी की मूल सुविधाओं की ओर ध्यान दिया जा रहा है उदाहरण के लिए डिजिटल पुष्टि हो चुकी है कि खुले में शौच से सबको मुक्ति मिल गई, पर वस्तुतः कितने रह गए यह जानने की सबको क्या जरूरत है। देशवासी कैश लैस व जिन्दी डिजिटल हो रही है यह हमारी असली उपलब्धि है। सुनने में आया है कि डिजिटल लेनदेन में अपराध भी बढ़ रहे हैं। कुछ गलत लोग कह रहे हैं कि हमारे देश में विशाल अधारभूत नेटवर्क नहीं है जिससे डिजिटल अपराधों को पकड़ने में मदद मिल सके। स्वीडन कैशलैस लेनदेन में आगे रहा है और इसी देश ने जैसे सोना, हुंडी व हवाला वगैरा ढूंढने में लगे रहते हैं। अमेरिका वहां नकद डॉलर रखने का प्रचलन कम नहीं कर पाया है। पत्नी से उधार उधार लिए पैसे लौटाने थे इसलिए कुछ देर बाद पैसे निकालने बैंक ही जाना पड़ा। वापसी में एक दुकान दार ने कह बैठा स्वाइप मशीन नहीं लगवाई। बोला, क्या करनी है, हमे तो मोबाइल का सिस्टम भी ज्यादा नहीं आता। ठेला लगाने व हम जैसे छोटे फुटकर व्यापारी अपना सामान बेचेंगे या मोबाइल से उलझे रहेंगे किस-किस को समझाते रहेंगे और समझते रहेंगे। भगवान न करे हमारी स्वाइप मशीन खराब हो गई तो ग्राहक तो वहीं दौड़ेगा जहां मशीन ठीक चल रही होगी। इसमें बिजली का रोल भी होगा, यहां शहर में लाइट का बुरा हाल है गांव में तो महा बुरा है, लाइट जाती ह तो लौट कर कब आएगी बताती नहीं। गांव से सामान बेचने आए किसान की मशीन जब चलेगी नहीं तो बेचारा खाली बैठा रहेगा या उदास वापिस घर को लौटेगा। तकनीकी खराबी हो गई तो और पंगा। छुट्टे के अभाव में लोग वहां जाएंगे जहां भुगतान की सुविधा होगी और इस भी वही कमाई करेंगे जिनकी मशीन चल रही होगी। बंद मशीन वाले मायूस बैठे रहेंगे और दूसरे मनमाना कमाएंगे। समझ में आ गया कि ‘कैश लैस’ नहीं ‘कैश से लैस’ होना भी जरूरी है। मैने उनकी बात को ज्यादा संजीदगी से नहीं लिया हमारी जिन्दगी को डिजिटल होना है तो छोटी बातें अनदेखी करनी पड़ेगी।

लेखक
संतोष उत्सुक

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