दुष्प्रचार को मुंहतोड़ जवाब

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देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे विरोध में राजनीतिक दलों की संलिप्तता पर मुयमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में बीते गुरुवार को जमकर प्रहार किया। वह राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के तहत चल रही चर्चा में हिस्सा ले रहे थे। विरोध को औचित्यहीन बताते हुए उन्होंने कांग्रेस और समाजवादी विचारधारा से जुड़े दलों के नेताओं को उनका इतिहास भी याद दिलाया। प्रधानमंत्री पूरी रौ में थे। वापटुता वाकई उनकी मारक पूंजी है और इसका प्रभाव संसद में साफ महसूस किया गया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर तमाम नेता अवाक थे। दोनों सदनों में एक बार फिर उन्होंने देश को भरोसा दिलाया कि नागरिकता कानून से देश के अल्पसंख्यकों-बहुसंख्यकों का कोई लेना-देना नहीं है।

हालांकि इससे पूर्व कई बार इस तथ्य को रेखांकित कर चुके हैं कि संसद से पारित कानून का वह आशय नहीं है, जिसको लेकर विरोधी पार्टियां लोगों को भ्रम फैला रही हैं। प्रधानमंत्री के लिए मौका भी था और निहायत जरूरी भी। वाकई यह अत्यंत हास्यास्यद भी है कि जो कांग्रेस पार्टी अब तक नागरिकता कानून के नए प्रारूप पर सवाल उठाते हुए मोदी सरकार को घेरने का एक भी अवसर चूकना नहीं चाहती, उसे ही प्रधानमंत्री के तर्कों से निरुत्तर होते हुए कहने के लिए आखिर यह कहना पड़ा कि नेपाल और श्रीलंका के अल्पसंख्यकों को क्यों छोड़ दिया गया। हालांकि इस बारे में खुद देश के गृहमंत्री अमित शाह ने बिल पर चर्चा के दौरान ही स्पष्ट कर दिया था कि संशोधन के लिए सीमित अर्थों में कारण सम्मत परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया है, इसीलिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान का जिक्र है।

विभाजन के बाद से ही अल्पसंख्यकों का धार्मिक आधार पर उत्पीडऩ शुरू हो गया था। इसी रोशनी में नेहरू- लियाकत समझौता हुआ था। उन्होंने यह भी सदन को याद दिलाया था कि पहले भी कुछ खास विषयों को ध्यान में रखते हुए नागरिकता संबंधी फैसले हुए थे। इसमें श्रीलंका तमिल संघर्षों के बाद ही परिस्थितियों के बाद शरणार्थी के तौर पर भारत आये लोगों को नागरिकता दी गयी थी। इसी तरह यूगांडा से भागकर आए लोगों के बारे में नागरिकता संबंधी फैसला हुआ था तो स्पष्ट है, सरकार ने तिब्बत के कानून की शल में आने से पहले ही सारी बातें सिलसिलेवार साफ कर दी थीं। इसके बावजूद देश के मुसलमानों के बीच नए कानून को लेकर भय भरा गया वो वाकई चिंताजनक था। विरोधी राजनीतिक दलों की अगुवाई का ही नतीजा रहा कि यह मान लिया गया कि नागरिकता कानून उनकी नागरिकता छीन लेगा।

इसीलिए उन देश विरोधी ताकतों को भी अपने मंसूबे कामयाब करने की राह दिखाई दी। देश के कई हिस्सों में शाहीन बाग की तर्ज पर मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को आगे करके अराजकता फैलाने की कोशिश हुई। हालांकि राहत की बात है कि प्रधानमंत्री के सदन भाजपा के बाद मुसलमानों के धार्मिक उलेमाओं के भी सुर बदलने लगे हैं। धरने के खात्मे की उम्मीद जगी है। देर से सही बड़ी धार्मिक जमात अब जगी है, पहले ही इस तरह की पेशकश सामने आयी होती तो स्थिति इतनी जटिल ना हुई होती। देश के भीतर इस तरह के विरोध का दुनिया में कितना विपरीत असर पड़ता है, यह विरोधी नेताओं को भी सोचना चाहिए था। मोदी सरकार का विरोध तो समझ में आता है और होना भी चाहिए लेकिन विरोध के नाम पर अराजकता बढ़ाने वाली चीजें नहीं होनी चाहिए। जिन राज्यों की विधानसभाओं से नागरिकता विरोधी प्रस्ताव पिछले दिनों पारित हुआ, उन्हें भी सोचना चाहिए।

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