पहली भारतीय महिला रोबोट

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सीएए और एनआरसी पर मचे सियासी बवाल के बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरो ने बुधवार को एक अच्छी खबर दी। संगठन प्रमुख ने बताया कि महिला रोबोट व्योम मित्र अंतरिक्ष में होने वाली हर गतिविधि और यान की कार्यप्रणाली पर पैनी नजर रखेगी। यह सही है कि अंतरिक्ष में जाने वाला व्योम मित्र पहला रोबोट नहीं है। इससे पहले अमेरिका, जापान और रूस अपने रोबोट अंतरिक्ष में भेज चुके हैं। सो, भारतीय दृष्टि से यह अत्यंत उत्साहवर्धक उपलब्धि है। वैश्विक वैज्ञानिक खोज और उसको लेकर चल रही प्रतिस्पर्धा से विलग नहीं रहा जा सकता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी गगनयान परियोजना के तहत 2022 के शुरूआती महीने का लक्ष्य तय है। उसी दिशा में परीक्षण के तौर पर इसरो अंतरिक्ष में व्योम मित्र से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर अंतरिक्ष भेजे जाने वाले प्रतिभागियों को तैयार और सक्षम किया जाएगा। इस मानवकृत रोबोट की खास बात यह है कि यह इंसानों की तरह चल-फिर सकती है तथा मानवीय हाव-भाव को समझ को समझ सकती है। जब रोबोट तकनीक का आविष्कार नहीं हुआ था तब जानवरों को अंतरिक्ष में भेजा जाता था। इस तरह निरीह जानवरों की जान जोखिम में डाली जाती थी।

पर अब सेंसर्स है, तकनीकी व्यवस्था है, इसलिए अंतरिक्ष को जानने-समझने के प्रारभिक दौर में रोबोट बड़े उपयोगी हैं। ये व्योम मित्र मनुष्यों की तहर प्रारभिक दौर में रोबोट बड़े उपयोगी है। ये व्योम मित्र मनुष्यों की तरह व्यवहार करेंगे। आर्टिफीशियल इंटलीजेंस का यह बेहतर नमूना है। गगनयान परियोजना के लिए चुने गये चार अंतरिक्ष यात्रियों को इस महीने के अंत तक प्रशिक्षण के लिए रूस भेजा जाएगा। पहले भी यानि 1984 में राकेश शर्मा रूसी माड्यूल से उड़ान से भरकर अंतरिक्ष गये थे। लेकिन यह पहला अवसर 2022 में आएगा, जब भारतीय अंतरिक्ष यात्री भारतीय माड्यूल में उड़ान भरेंगे। इसी लक्ष्य को साधने के लिए इसरो ने व्योम मित्र रोबोट का निर्माण किया है। यूं तो विश्व में पहले से सोफिया, कोडोमोराइड और जिया-जिया काफी ख्याति प्राप्त ह्यूमनॉयड है। हालांकि इनका इस्तेमाल पहले केवल शोध के लिए किया जाता था, लेकिन कुछ समय से इसका उपयोग मनुष्य के सहायक के रूप में भी किया जाने लगा है। अंतरिक्ष विज्ञान को भारत की यह पहली पहल है। इसरो ने निश्चित रूप से भारत की अंतरिक्ष विज्ञान में बढ़ी पहचान बनाई है। मिशन मंगलयान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण भला कौन भूल सकता है, जहां दूसरे देशों ने इसी मिशन को लेकर भारी-भरकम पैसे खर्च किये, वहीं इसरो ने किफायती तरीके से मिशन को अंजाम दिया।

2019 में ही इसरो ने मिशन चंद्रयान 2 के तहत चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर यान के प्रक्षेपण का उल्लेखनरीय प्रयास किया था। यह बात और कि चंद्रमा की सतह पर उतरने से पहले लैंडढर विक्रम चोटिल हो गया। लेकिन इसरो केस प्रयास पर नासा की भी खास नजर थी। क्योंकि अब तक चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव दुनिया से अपरिचित है। समझा जाता है, उस स्थान से दुनिया को अकूत प्राकृतिक संपदा की बड़ी जानकारी मिल सकती है लेकिन वो हिस्सा अजाना और जोखिम भरा समझा जाता रहा है। इसरो ने चंद्रमा के अजाने हिस्से को जानने का सत्साहस दिखाया। वैसे इस दिशा में इसरो के प्रयास जारी हैं। पिछले मिशन में हुई चूक से सबक लेते हुए चंद्रयान-3 की तैयारी चल रही है। एक और बात की प्रक्षेपण दक्षता का लोहा अंतरिक्षा विज्ञान में कई मुकाम हासिल कर चुके देश रूस और अमेरिका भी मानते हैं। शत-प्रतिशत सफलता और तिस पर प्रक्षेपण दर सस्ता, दूसरे देशों को भी आकर्षित कर रहा है। स्वामी विवेकानन्द की एक उक्ति बहुत स्मरणीय है वो यह कि जो कुछ अजाना है, उसे जानने की निरंतर अभिलाषा एवं अपेक्षित सद्कर्म ही मनुष्य को सार्थकता प्रदान करता है। यही कारण है कि उनके जीवन दर्शन में भौतिक और आध्यात्मिक आख्याय के बीच द्वन्द्व नहीं, सामंजस्य की प्रतीति होती है।

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