कहां चीन और कहां भारत ?

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आज चीन की प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े देखकर मेरे दिमाग में कई सवाल एक साथ उठते रहे। चीन में प्रति व्यक्ति आय 10 हजार डालर से ज्यादा है जबकि भारत की प्रति व्यक्ति आय 2000 डालर के आस-पास है। याने चीन हमसे पांच गुना आगे है। हम चीन के पहले आजाद हुए और चीन प्रारंभिक कई वर्षों तक कम्युनिस्ट बेड़ियों में जकड़ा रहा, फिर भी उसने इतनी जल्दी इतनी उन्नति कैसे कर ली? आज चीन और भारत की जनसंख्या में मुश्किल से 10-12 करोड़ का अंतर है। फिर भी चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। मैं पिछले 25 वर्षों में कई बार चीन गया हूं और वहां के लगभग सभी प्रांतों का दौरा मैंने किया है। वहां के नेता, विद्वान, पत्रकारों और जन-साधारण से मुक्त संवाद के कई अवसर मुझे मिले हैं।

वहां की अर्थ-व्यवस्था इतनी मजबूत कैसे हुई, इस पर विशेषज्ञों की अपनी-अपनी गहरी और तकनीकी राय हैं लेकिन मोटे तौर पर मुझे जो कारण समझ में आए, वे इस प्रकार हैं। पहला, चीन के शहरों और गांवों में मैंने देखा कि सूर्योदय के पहले ही हजारों लोग सड़कों पर प्रातः भ्रमण और कसरत करते रहते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य पर वे हमसे ज्यादा ध्यान देते हैं। दूसरा, स्वास्थ्य-सेवाएं भारत के मुकाबले वहां ज्यादा हैं और सस्ती हैं। पारंपरिक औषधियों का चलन हमसे बेहतर है। तीसरा, चीनियों के खान-पान में मांसाहार के साथ-साथ शाकाहार की मात्रा और विविधता बहुत ज्यादा है। जितनी साग-सब्जियां आज तक मैंने भारत में देखी हैं, उससे कहीं ज्यादा चीन में हैं।

चीनियों के उचित खान-पान और स्वास्थ्य-रक्षा के कारण वे खेतों और कारखानों में उत्पादन औसत से ज्यादा कर पाते हैं। चौथा, भारत में साक्षरों की संख्या 70 प्रतिशत है जबकि चीन में 95 प्रतिशत है। चीन में ज्ञान-विज्ञान की सारी पढ़ाई चीनी भाषा में होती है जबकि हमारी शिक्षा की टांगें अंग्रेजी की बेड़ियों में कसी हुई हैं। पांचवां, आर्थिक विषमता और भ्रष्टाचार चीन में भी काफी है, लेकिन वहां बड़े-बड़े नेताओं और अफसरों को भी फांसी पर लटका दिया जाता है। छठा, वहां मजदूरों को उतनी ही मजदूरी मिलती है, वे जितना काम रोज़ाना करके देते हैं। वहां आलस, कामचोरी, ढील-पोल का काम नहीं है। सातवां, सबसे बड़ी बात यह है कि चीन के लोग प्रचंड राष्ट्रवादी हैं। उन्हंम अपनी संस्कृति और सभ्यता पर गर्व है। उनके पास विश्व-दृष्टि है। वे विश्व-शक्ति बनने के लिए कृत-संकल्प हैं।

डा. वेदप्रताप वैदिक
( लेखक वरिष्ट पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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