मेरठ। शहर के विकास पर प्रतिवर्ष 800 से एक हजार करोड़ रुपये खर्च होते हैं। जिनमें सड़क, नाली व नाले आदि निर्माण कार्य हैं। तीन साल बाद भी विकास कार्य गड्ढों में तब्दील होने शुरु हो गए हैं। हालांकि यह धनराशि शहर को स्मार्ट बनाने के लिए काफी है, बावजूद इसके सही रख रखाव न होने के कारण व्यवस्था चौपट होती जा रही है। शहर में विकास कार्य कराने वाले किसी भी विभाग ने एक साथ बैठकर शहर के विकास पर मंथन करने की पहल नहीं की। इसका परिणाम यह है कि सरकारी खजाने से शहर के विकास पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। अब राज्य स्मार्ट सिटी योजना के तहत सरकार ने प्रतिवर्ष 50 करोड़ रुपये अतिरिक्त धन देने की घोषणा की है। यदि विभागों का सामंजस्य नहीं बना तो सरकार की यह धनराशि भी बेकार चली जाएगी।
बता दें कि शहर की आबादी 15 लाख पहुंच रही है। विकास पर भी करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। केंद्र सरकार ने देश के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए प्रतियोगिता आयोजित कराई थी। इसमें मेरठ भी शामिल था, लेकिन प्रतियोगिता में मेरठ स्मार्ट सिटी के मानकों पर खरा नहीं उतरा। इसका कारण मेरठ को सूची से बाहर कर दिया गया था। अब फिर से राज्य सरकार ने अपने स्तर से स्मार्ट सिटी में मेरठ को शामिल किया। जिसके लिए प्रतिवर्ष 50 करोड़ रुपये अतिरिक्त देने की घोषणा की। स्मार्ट अधिकारी ही बना सकते हैं शहर को स्मार्ट सिटी: राज्य सरकार की मंशा के अनुरुप शहर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए अधिकारियों को भी स्मार्ट बनना होगा।
यानी शहर में किसी भी योजना जैसे सड़क, ड्रेनेज, पेयजल, नालों के अंडरग्राउंड, कूड़ा निस्तारण आदि सभी पर नगर निगम ही नहीं बल्कि एमडीए, आवास विकास, डूडा, जल निगम, गैस कंपनी, दूरसंचार, जिला प्रशासन सभी को एक मंच पर बैठकर स्मार्ट सिटी की शर्तों पर मंथन करना होगा। तभी शहर को स्मार्ट सिटी बनाया जा सकता है। सवाल यह भी है कि अगर सभी विभागों ने एक साथ बैठकर स्मार्ट सिटी की कार्य योजना नहीं बनायी तो एक विभाग सड़क व नाले बनाएगा तो दूसरा विभाग पीछे पीछे खुदाई करने का काम करेगा। इससे जहां सरकारी खजाने को नुकसान होगा, वहीं सरकार की स्मार्ट सिटी योजना को पलीता लग जाएगा।