सुधार की मांग जायज

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संयुक्त राष्ट्र में सुधार मौजूदा समय की मांग है। भारत लंबे समय से यूएन रिफॉर्म की जरूरत पर बल देता रहा है, लेकिन संयुत राष्ट्र अपने सुधार के लिए कोई प्रयास करता दिख नहीं रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से उसकी संरचना में सुधार की बात रखकर दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है। पीएम ने विश्व व्यवस्था, कानुन और मूल्यों को बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सशतीकरण की आवश्यकता को रेखांकित किया। मौजूदा वत में अगर वैधिक संगठन प्रासंगिक बने रहना चाहता है तो उसे अपना प्रभाव और विश्वसनीयता बढ़ानी होगी। भारत के महान कूटनीतिज्ञ चाणय के शद जब सही समय पर सही कार्य नहीं किया जाता तो स्वयं समय ही उस कार्य की सफलता को समाप्त कर देता है) से सीखते हुए यूएन को तत्काल सुधार करना चाहिए। जलवायु संकट, कोविड-19 की निष्पक्ष जांच, अफगानिस्तान संकट, दुनिया के कई हिस्सों में छय युद्ध, दो देशों के बीच विवाद, समुद्र में निर्बाध आवाजाही, आतंकवाद के खिलाफ जंग, वैश्विक ताकतों द्वारा कमजोर देशों की संप्रभुता का अतिक्रमण आदि ऐसे अनेक मुद्दे हैं, जिन पर संयुक्त राष्ट्र मूकदर्शक साबित हुआ है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में जब इसकी स्थापना हुई थी, उस वत विश्व की जो स्थिति थी, आज पूरी तरह बदल चुकी है। ऐसे में यूएन को भी आज की वैश्विक जरूरत के अनुरूप बनाया जाना जरूरी है। सबसे बड़ा बदलाव यूएन के वीटो नियमों में जरूरी है। 193 सदस्यों वाले यूएन में केवल पांच स्थाई सदस्य होना न्याय नहीं है। यूएन को प्रतिनिधि लोकतंत्र के मुताबिक चलना चाहिए और बहुमत के हिसाब से फैसला करना चाहिए। चीन ने अपने वीटो पावर का सबसे अधिक दुरुपयोग भारत के संदर्भ में किया है। इसलिए जरूरी है कि क्या तो वीटो पावर का विस्तार किया जाना चाहिए और भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील को वोटो पावर दिया जाना चाहिए। या वीटो सिस्टम को खत्म कर देना चाहिए व बहुमत के आधार पर वैश्विक फैसला होना चाहिए। बीटो पावर में मुस्लिम मुल्कों और अफ्रीकन देशों को भी शामिल किया जाना चाहिए। अब जबकि संयुत राष्ट्र ने अपना 75 वर्ष का सफर पूरा कर लिया है, ऐसे में उसके चार्टर का रिस्ट्रचर होना जरूरी है। आज दुनिया बहुधवीय है, शति संतुलन बदल गया है, नए देश महाशति बन कर उभर रहे हैं, जिसके चलते हितों का टकराव बढ़ रहा है, जिससे विश्व में तनाव का माहौल बना है।

वैश्विक शांति पर खतरा मंडराता दिख रहा है। अफगानिस्तान में वैश्विक आतंकियों से लैस तालिबान के सत्ता में आने पर संयुत राष्ट्र की चुप्पी इस संस्था के औचित्य को कटघरे में खड़ा करती है। विश्व आतंकवाद से परेशान है और यूएन ने अभी तक इसकी परिभाषा तक तय नहीं किया है। आतंकवाद, हथियारों की होड़ को रोकने के लिए यूएन ने कुछ नहीं किया। विश्व की आधी से अधिक आबादी भूख, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य आदि समस्याओं से ग्रसित है, लेकिन विश्व के ताकतवर देश हथियारों के निर्माण, बिक्री और भंडारण में संलग्न है, संयुत राष्ट्र अंतराष्ट्रीय कानूनों की मदद से इसे रोक सकता है और डर, आतंक व हथियार का व्यापार करने वाले देशों पर लगाम लगा कर विश्व की दिशा को गरीबी उन्मूलन की ओर मोड़ सकता है। अगर जिम्मेदार देश यूएन के रोस्ट्रक्चर के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए तो वह दिन दूर नहीं जव संयुक्त राष्ट्र अपनी प्रासंगिकता खो देगा। अब भारत, जापान, जर्मनी, ब्राजील को भी तत्काल संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल किया जाना चाहिए।

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