सुईं-डोरा

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“सो तो आपका बड़प्पन है। पर मेरी इच्छा है कि आप भी मेरे साथ उनका सत्कार करें व भोजन परोसें। इससे पुण्य व आशीर्वाद मिलेगा।”

“मुजे स्वामियों का आशीर्वाद या पुण्य नहीं चाहिये।”

“छोड़िये आशीर्वाद, पुण्य को…पर आपने कहा था कि जो कहोगी मान लूंगा….”

“तो ऐसे कहो न । तुम्हारी बात मानने के लिए मान लेता हूं।”

स्वामी जी को न्योता भेजा गया। स्वामी जी को पूरी स्थिति का ज्ञान तो हो ही गया था। उन्होंने सेठ जी के प्रतिनिधि से कहा, “देखो हम भोजन तो नहीं करेंगे पर सेठ जी व सेठानी जी से मिलने अवश्य आएंगे।”

सेठ जी को पता चल तो वे चकित रह गए। कैसे स्वामी हैं! खाने को तो क्षेत्र में कुछ है नहीं। सुना है उन्होंने तीन दिन से अन्न ग्रहण नहीं किया है केवल पानी पी रहे हैं। ऐसे में सेठ के भोज को भी मना कर दिया। कैसा मूर्ख हैं!

“आयुष्मान भव……! यशस्वी मव…..!”

स्वामी जी आगे बोले, “सेठ! क्या यह सब तुम्हारा है?”

“बहुत आलीशान मकान है!”

“अरे यह तो कुछ नहीं। ऐसे-ऐसे तो कई महल मैंने विदेशों में बनवाए हैं।”

“अच्छा ! और क्या-क्या जोड़ा है?”

“क्या नहीं जोड़ा। हजारों एकड़ भूमि है, हीरे-जवाहरात, सोना, चांदी….कोई गिनती नहीं है…”

स्वामी जो टोकते हुए कहा, “बहुत खूब। मुधे विश्वास हो गया कि मुझे जिसकी तलाश थी वो तुम ही हो।”

“आपको मेरी तलाश थी?”

“हां, मुझे तुमसे एक काम है।”

“देखिये, दान-दक्षिणा तो मैं देता नहीं।”

“नहीं-नहीं, मुझे दान-दक्षिणा नहीं चाहिये।”

“तो काम बताइये।”

“देखो सेठ! मेरे पास अपनी सम्पत्ति के रूप में यह सुईं-डोरा है। मुझे यह बहुत प्यारा है। यह मेरी सबसे प्यारी चीज है। जानते हो क्यों ?”

“बताइये।”

“मेरा वस्त्र जहां से भी फट जाता है, मैं इससे सी लेता हूं। मैं यह तुम्हें देना चाहता हूं।”

सेठ जी बहुत हंसे और बोले, “अपनी सबसे प्यारी चीज मुझे क्यों देना चाहते हो स्वामी जी?”

“देखो सेठ, तुम्हारे क्षेत्र में अकाल पड़ा है। खाने को अन्न नहीं है। मैने सोचा है कि जब तक कोई भूखा है, मैं भी अन्न ग्रहण नहीं करूंगा। इसका परिणाम तो मेरी मृत्यु ही होगी। मेरे गुरु ने कहा था कि मरते समय सब कुछ यही छूट जाएगा। तुम कुछ साथ नहीं ले जा सकोंगे।”

“मुझे चिन्ता है कि परलोक में यदि मुझे वस्त्र सीना पड़ा तो कैसे सीऊंगा, सुईं तो यहीं छूट जाएगी।”

“मैं देश भर में घूम-घूम कर यही खोज रहा था कि कोई ऐसा व्यक्ति मिले जो अपने सामान के साथ मेरी सुईं भी ले जाए और परलोक में मुझे दे दें।”

साभार
उन्नति के पथ पर (कहानी संग्रह)

लेखक
डॉ. अतुल कृष्ण
(अभी जारी है… आगे कल पढ़े)

2 COMMENTS

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