कुछ हफ्ते पहले सोशल मीडिया पर एक खबर आई कि विदेशों मे रह रहे एनआरआई इस चुनावों में वोट डाल सकते हैं। इसके लिए सभी को चुनाव आयोग में पंजीकरण कराना होगा। इसके बाद गूगल के सीईओ सुंदर पिचई की वोट देती फोटो आई, जिसके साथ स्टोरी थी कि वह सिर्फ वोट डालने के लिए अमेरिका से आए हैं। हालांकि दोनों ही खबरें बाद में गलत साबित हुईं। यह अमेरिका में बसे भारतीय लोकतंत्र के कुछ उत्साही भक्तों का काम था। वास्तव में अधिकांश एनआरआई जो भारत की नागरिकता छोड़ चुके हैं, उन्हें भारत के चुनाव में वोट डालना अच्छा लगेगा। एक छोटा कदम जो इस दिशा में हो सकता है, वह है कि भारतीय नागरिकता रखने वाले एनआरआई को विदेश में भारतीय दूतावास में वोट डालने की सुविधा दी जाए। लेकिन सिलिकॉन वैली में दो लाख भारतीयों के लिए दूतावास में कैसे व्यवस्था होगी? कितनी ईवीएम, कितने लोगों की जरूरत पड़ेगी? क्या चुनाव आयोग ऐसा कर सकेगा? चुनाव आयोग के पास भारत में ही 90 करोड़ वोटरों के लिए व्यवस्थाएं करना कड़ा सिपदर्द है। बावजूद इसके दुनाय भारत की चुनावी एक्सरसाइज से प्रभावित है।
अमेरिकी अखबार, रेडियो और टेलीविजन पर इसे लेकर विस्मयभरी खबरों और फोटो की भरमार है। इनमें कहा जा रहा है कि भारतीय चुनाव कानून के तहत हर वोटर के लिए दो किमी के भीतर वोटिंग सुविधा होनी चाहिए। पोलिंग बूथ बनाने के लिए मतदान कर्मी ऊंची पहाडिय़ों पर चढ़ रहे हैं, जंगलों और रेगिस्तान में जा रहे हैं। एक वोटर के लिए भी ऐसी ही सुविधा जुटाई जा रही है। इन स्टोरीज को पढक़र भारतीयों को मिले इस अधिकार से एनआरआई और पीआईओ (पीपुल ऑफ इंडियन ओरिजिन) को जलन हो रही है। भारत हर एनआरआई के दिमाग में बसा हुआ है। कई लोग तो के वल वोट देने भारत जाने की तैयारी कर रहे हैं। अमेरिका में बसने के अपने सपने को छोडक़र कई लोग राजनीति में भाग लेने के लिए भारत लौट गए। इनमें भाजपा के जयंत सिन्हा और कांग्रेस के राजीव गौड़ा भी हैं, जो सालों अमेपिरा में रहे। भारत और अमेरिका आज जितने करीब हैं वे पहले कभी इतना करीब नहीं रहे।
यूपी चुनाव में जीते बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी को बधाई दी थी। चुनावों में एनआरआई की रुचि भाजपा में बढ़ी है। यही वजह है कि वेदेशों में रहे अधिकांश हिन्दू भाजपा समर्थक हैं। यहां पर एक छोटा किन्तु मुखर वर्ग लेफ्ट समर्थकों का भी है। मोदी को एनआरआई के समर्थन की 3 वजहें हैं। पहली- गुजराती समाज सबसे बड़ा है। दूसरा, आरएसएस प्रचारक के तौर पर 1990 में मोदी समर्थन जुटाने के लिए कई बार अमेरिका आए। अब 2000 से यह कार्य राममाधव कर रहे हैं। तीसरा, मोदी ने खुद को भारतीय हितों के राष्ट्रवादी अभिभावक और व्यापार समर्थक प्रधानमंत्री के तौर पर पेश किया। मैं इसे एक व्यक्ति गत किस्से के साथ पूरा कर रहा हूं। जब 2015 में मोदी बतौर पीएम अमेरिका आने वाले थे तो मैं उनकी पूर्व की यात्राओं का रिकॉड चेक रहा था।
उस समय न्यूजर्सी में रहने वाले मोदी के बचपन के दोस्त सुरेश जानी ने बताया कि उन्होंने ही पहली बार अमेरिका में मोदी का स्वागत कि या था और अपनी बात को साबित करने के लिए उन्होंने कुछ पुराने फोटो भी दिखाए। मोदी ने 1990 में अमेरिका के 30 राज्यों का दौरा किया था। मुझे यह जानने की उत्सुक ता थी कि उन्होंने यह कैसे किया अमेरिका बहुत बड़ा है और इसमें चार भारत समा सकते हैं। मैं यहां 25 साल से हूं और मैंने सभी 50 राज्य नहीं देखे हैं। इसलिए जब मैं मोदी से न्यूयार्क में मिला तो उनसे इस बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि 30 नहीं मैं 29 राज्यों में गया था। तब उन्होंने वह रहस्य बताया, जिसका इस्तेमाल मैं भी अमेरिका घूमने में र चुका था। 1980-90 में डेल्टा एयरलाइंस 400 डॉलर में एक महीने का अनलिमिटेड टिकट देती थी। इससे आप अमेरिका के एक शहर से दूसरे शहर तक जा सक ते थे।
चिदानंद राजघट्टा
25 साल से अमेरिका में रह रेह पत्रकार के विचार