भले ही देर से, लेकिन केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर जो फैसले लिए है। वे स्वागत योग्य हैं। अलगाववादी नेताओं को मिलने वाली शासकीय सुविधाओं को रोकने के अतिरिक्त जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाना, एक बड़ा फैसला है। यह एक अतिवादी संगठन है जो स्वयं आतंकवाद में सम्मिलित नहीं होता, लेकिन अलगाववाद का प्रेरक है। विश्व के अनेक मुस्मिल देशों में इस पर प्रतिबंध लगा हुआ है। वहावी विचारधारा को प्रचारित तथा प्रसारित करने का कार्य यह संगठन करता है। यदि अतीत में जाए तो इस संगठन के संस्थापक मौलाना मदुदी ने कहा था कि विश्व का रंग हरा होना चाहिए। इसी विचारधारा को लेकर लादेन का राक्षसी स्वरूप सामने आया। इसी ध्येय की पूर्ति के लिए आईएस ने दो लाख लोगों का कत्ल कर दिया और अनेक देशों को पूरी तरह से बरबाद कर दिया।
किसी समय सीरिया तेजी के साथ विकसित अर्थव्यवस्था बन गया था। आज पूरी तरह से नष्ट राष्ट्र है। इराक की स्थिति विश्व के सामने हैं, वहां के नागरिकों को अनिवार्य सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। कश्मीर में संगठित अलगाववाद का जन्मदाता यह संगठन ही है। जमात-ए-इस्लामी के नेता शेख अली मोहम्मद के प्रयासों से 9 मार्च 1993 को 26 पृथक-पृथक संगठनों को मिलाकर हुर्रियत कांफ्रेस की स्थापना की गई थी। जिसके अधिकांश सदस्य तथा नीति निर्धारक जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्त्ता ही हैं। इसलिए हुर्रियत पर भी प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। अलगाववाद की विचारधारा ही आतंकवाद को जन्म देती है। पत्थरवाज हो चाहे आतंकवादी अलगाववादियों के उपकरण होते हैं। इसलिए अवगाववादियों को आतंकवादियों से पृथक करके नहीं देखा जा सकता। यह स्पष्ट हो चुका है कि हुर्रियत के नाताओं को पाकिस्तान से धन मिलता है।
आज स्थिति यह है कि सभी हुर्रियत नेता कश्मीर घाटी के बड़े व्यावसायी तथा उद्योगपति हो चुके हैं। उनके होटल हैं और फलों तथा मेबों के बड़े निर्यातक बन गए हैं। उनके बच्चे कश्मीर घाटी में नहीं रहते वे विदेशों में शान की जिन्दगी जी रहे हैं, आम आदमी में ये नेता यह भ्रम पैदा करने में सफल रहे हैं, वे ही उनके वास्तविक हितकर्त्ता हैं। कश्मीर घाटी को इन लोगों ने एक बंद कक्ष बना दिया है, जिसमें बाहर की हवा तक ये आने नहीं देते। केन्द्र सरकार को कश्मीर घाटी के बंद कक्ष को खोलने के लिए अनुच्छेद 35 क को निरस्त करना चाहिए। यह अनुच्छेद भारतीय संविधान के मूल पाठ का अंग भी नहीं है। इसको परिशिष्ट में स्थान दिया गया है। अतः इसको समाप्त करना कठिन नहीं है। पुलवामा कांड के बाद देश में इस अंराष्ट्रीय प्रावधान को समाप्त करने के लिए मांग भी होने लगी है। जम्मू तथा लद्दाख के अनेक सामाजिक संगठनों ने भी इस अनुच्छेद को समाप्त करने की मांग सरकार से की है। सरकार को राज्य के चंद भ्रमित नेताओं के कारण विकास की सम्भावनाओं को नहीं रोकना चाहिए।।