सरकारी प्रोजेक्ट्स में विलंबता

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भारत में सरकारी परियोजनाओं में देरी कोई नई बात नहीं है। विकास मा परियोजनाओं को लटका कर रखने के लिए भारतीय नौकरशाही मशहूर है। अलग-अलग विभागों की मंजूरी से लेकर कोर्ट-कचहरी के चकर के चलते सरकारी प्रोजेट समय पर पूरा नहीं हो पाते हैं। खासकर रेल व सड़क जैसे आधारभूत ढांचे के प्रोजेट्स सरकारी लेट लतीफी के अधिक शिकार होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लेट चल रहे इन्फ्राप्रोजेट्स की समीक्षा करना दर्शाता है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को लेकर गंभीर है। सरकार चूंकि अपनी रेल व सड़क जैसे इन्फ्रासेटर की कई संपत्तियों का मोनेटाइजेशन करने जा रही है, इसलिए जरूरी है कि वे प्रोजेट्स पूरे हों। सरकार ने सरकारी संपत्तियों के मुद्रीकरण से चार साल में 6 लाख करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई है। ऐसे में सरकारी कामों में देरी और उससे होने वाले नुकसान पर पीएम मोदी का नाखुशी जाहिर करना लाजिमी है। पीएम ने सरकारी विभागों को निर्देश दिया है कि ऐसी इंफ्रास्ट्रचर परियोजनाओं की लिस्ट तैयार की जाए जिनमें अवलत या फिर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के फैसलों की वजह से देरी हो रही है।

पीएम 3 रेल, 3 सड़क व 2 बिजली प्रोजेक्ट्स की समीक्षा की है, ये सभी आठ प्रोजेट्स लेट हैं। उन्होंने अटकी पड़ी परियोजनाओं के चलते सरकारी खजाने को होने वाले नुकसान का ब्यौरा तैयार करने का भी निर्देश दिया है। गत 4 अगस्त को लोकसभा में दिए एक लिखित जवाब में सांख्यिकी और योजना क्रियान्वयन मंत्रालय ने बताया था कि देश में कुल 557 ऐसे प्रोजेट हैं जो लेट हैं। इससे सरकारी खजाने पर करीब 2.77 लाख करोड़ रुपये का अतिरित बोझ पड़ेगा। मतलब ये हुआ कि अगर ये सारे प्रोजेट अपने तय समय पर पूरे कर लिए जाते तो देश को 2.77 लाख करोड़ रुपये की बचत होती। मंत्रालय के मुताबिक 1,698 परियोजनाओं में से 557 परियोजनाएं देरी से चल रही है, जबकि 400 परियोजनाओं की लागत बढ़ी है, जो तय अनुमान से चार लाख करोड़ रुपये से अधिक है। लोकसभा में ही दिए एक अन्य लिखित जवाब के मुताबिक परियोजनाओं के समय पर पूरे होने में जे प्रमुख कारण हैं उनमें कानून व्यवस्था, जमीन अधिग्रहण में देरी, वन और पर्यावरण की मंजूरी में देरी और पुनर्वास सम्बन्धी मुद्दे शामिल हैं।

इनमें जमीन अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी को लेकर कई बार मामला अदालत तक पहुंच जाता है और कोर्ट का निर्णय आने तक परियोजना का काम रुक जाता है। पीएम की तरफ से दखल इस बात के संकेत दे रही है कि सरकार परियोजनाओं में बाधाओं को दूर करने के लिए समन्वय के साथ कानूनी रास्तों का सहारा ले सकती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, रेलवे व सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालयों को कानून व न्याय मंत्रालय की सलाह के साथ भूमि अधिग्रहण, वन या अन्य संबंधित मामलों पर कोर्ट, एनजीटी आदि की तरफ से सुनाए गए फैसलों की पहचान करनी चाहिए, जिनकी वजह से इंफ्रास्ट्रचर प्रोजेट्स में देरी हो रही है। देश में कई ऐसी इन्फ्रास्ट्रचर परियोजनाएं हैं जो भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर कोर्ट में दाखिल याचिकाओं को चलते अटकी पड़ी हैं। सरकार के प्रोजेट्स में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों, एजेंसियों व कर्मचारियों की लिस्ट तैयार करने के पीएम के निर्देश से निश्चित रूप से लापरवाह अफसर रायर पर आएंगे। चूंकि प्रोजेट्स में देरी से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता है, इसलिए इसके जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय करनी जरूरी है। सरकारी परियोजनाओं में हो रही देरी को हर हाल में रोका जाना चाहिए। उम्मीद की जा सकती है कि पीएम के हस्तक्षेप के बाद इन्फ्रा प्रोजेट्स समय से पूरा होने लगे।

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