बड़े इंतजार के बाद आई बरसात से हमारा कोई बहुत ज्यादा लेना-देना नहीं है। हमारा वास्तां सिर्फ इतना है कि हरेक साल की तरह अब इस साल भी बड़ी तदाद में पौधारोपण किया जाने वाला है। यह सोचकर मन खुशी के मारे पुलकित हो रहा है। एक बार फिर से वही खेल दोहराया जायेगा। ऐसे मारामारी के वक्त पौधे जरूर नये रहेंगे लेकिन गड्ढे वही पुराने…! ‘हरियाली और खुशहाली’ का पैगाम लिये नये-नये नारे रचे जायेंगे। अनेक जगह पौधरोपण कार्यक्रम होंगे। कुल मिलाकर पौधरोपण करने वाले बदल जायेंगे लेकि न जगह वही गड्ढे वही रहेंगे। सो जंगल महकमे में इन दिनों बड़े खुशी का माहौल है। पुराने लगाये गये पौधों का कोई हिसाब नहीं लेकिन फिर से नये लगाने की जोर-शोर से तैयारियां जारी। सूबे की राजधानी से लेकिन जिले, तहसील और ब्लॉक स्तर पर तैयारी..! नर्सरियों में तैयार पौधे प्लास्टिक के खोल से अनावृत्तक होकर गड्ढों में समा जाने को आतुर हैं।
विशिष्ट हाथों में लगने की आशा लिये अनेक कोपलें अपने भाग्य पर इठलाने को तत्पर। इसमें कोई दो मत नहीं कि बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण होना निहायत जरूरी है। लेकिन यह महज रस्में अदायगी की तरह ना हो। इस साल पड़ी भीषण गर्मी ने लोगों को सोचने को बाध्य किया है कि आने वाले वक्त में हालात बद से बदतर हो सक ते हैं। चेन्नई ने भीषण जलसंक ट देखा और झेला, भोपाल की लाइफ लाइन बड़ी झील सिमट गई, महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके समेत देश के क ई भागों में सूखा पड़ा। अभी तक यूरोप घूमने जाने वाले लोग देख रहे हैं कि वहाँ भी भीषण गर्मी है। फिर छुट्टियाँ बिताने जायें तो जायें क हाँ..! हाल की बरसात में मुम्बई महानगरी ने दो दिनों में दशक की सर्वाधिक बरसात से हुई त्रासदी को देखा और भोगा। उड़ीसा में आये तूफान, गुजरात के बलसाड़ और वापी में भारी वर्षा हुई तो देश की राजधानी नई दिल्ली में अभी भी गर्मी पड़ रही है।
कहने का तात्पर्य यह है कि जलवायु परिवर्तन और सम्पूर्ण मौसम चक्र पर असर पड़ रहा है। इसे ही ग्लोबल वार्मिग का दुष्परिणाम कहा जा रहा है। कहीं भारी वर्षा, कहीं सूखा तो कहीं खंड वर्षा के चिंताजनक नजारे…! पीने के पानी का संकट तो कहीं मवेशियों के लिए चारे-पानी की कमी। लेकिन इन सब की फिक्र किसे है..! ऐसे में राहत और सुकून की बात यह है कि अनेक जगह लोग अपने तई स्थिति से निपटने को तत्पर हैं। लोगों में धीरे- धीरे ही सही जागरूकता और सजगता बढ़ रही है। पौधे लगाने के नाम पर अपने को बहुत सारे सरकारी तमाशे देखने को मिले। आखिर नर्मदा किनारे लगाये गये करोड़ों पौधों का क्या हश्र हुआ..? कोई पौधे लगवाता है, कोई जाँच करवाता है। ऐसे में हरा भोपाल-शीतल भोपाल अभियान एक अच्छी पहल कहा जा सकता है। इसके नतीजे तो आने वाले वक्त में पता लगेंगे। सो, अपना मानना है कि भले ही दो-चार पौधे लगायें वे पेड़ बनें, किसी की छाँव बने, फल- फूल और ठंडक दे तभी इसकी सार्थकता है। अन्यथा एक और नाटक -नौटंकी का इंतजार कीजिये..!
आरबी त्रिपाठी
(लेखक टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)