महामारी के असाधारण रूप से भयानक दौर में, एक प्रश्न अनुत्तरित है: कोविड-19 से जंग में कई खामियों के लिए कौन जवाबदेह है? इसलिए अगले हफ्ते शुरू हो रहे महत्वपूर्ण संसद सत्र में, सासंदों को इन 10 सवालों पर जरूर बहस करनी चाहिए।
- कोरोना के असर का अनुमान लगाने और उससे हुए नुकसान को कम करने में असफल रहने के लिए क्या कैबिनेट फेरबदल में हटाए गए स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ही अकेले जिम्मेदार हैं? कोविड पर समय से पहले ‘जीत’ की घोषणा करने, मार्च-अप्रैल में चुनावों का पागलपन और कुंभ मेले की अनुमति देने के पीछे सिर्फ एक कैबिनेट मंत्री नहीं हो सकते। क्या राजनीतिक से लेकर प्रशासनिक दायरे में और लोगों को इसकी जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए?
- क्या जनता को नहीं बताना चाहिए कि केंद्र कैसे दिसंबर अंत तक पूरी वयस्क आबादी को टीके के दोनों डोज लगवाएगा, जैसा कि उसने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है? मई में सरकार का अनुमान था कि वर्ष के अंत तक 216 करोड़ डोज उपलब्ध होंगे, लेकिन जून में सुप्रीम कोर्ट मेंे दिए गए हलफनामे में आंकड़ा 135 करोड़ हो गया। क्या हमें वैक्सीन की उपलब्धता का सही अनुमान मिल सकता है?
- वैक्सीन की कीमत पर भी सवाल हैं। बिहार चुनावों में केंद्र ने सभी को मुफ्त वैक्सीन का दावा किया, फिर भी ‘एक देश, एक कीमत’ के लिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। कई प्राइवेट अस्पताल ज्यादा कीमत वसूलते पाए गए। तो क्या बता सकते हैं कि सरकार ने बजट में टीके के लिए आवंटित 35 हजार करोड़ कैसे खर्च किए?
- केंद्र और कोवैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक के संबंध पर भी सवाल हैं। आईसीएमआर ने कोवैक्सीन बनाने में भारत बायोटेक की मदद की तो कंपनी को शुरुआत में खुद ही कीमत तय करने की अनुमति कैसे मिली? और जहां फेज 3 के क्लिनिकल ट्रायल से पहले ही इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति दे दी गई, फिर फाइजर जैसे विदेशी निर्माताओं को अनुमति देने में अनिच्छा क्यों दिखी? वैक्सीन की कमी के पीछे जल्दी ऑर्डर न देना और दो स्वदेशी निर्माताओं पर अत्यधिक निर्भरता मुख्य कारण माने गए। क्या भारत सरकार को भारत बायोटेक व ब्राजील सरकार के समझौते की जानकारी थी, जिसकी वहां आपराधिक जांच हो रही है?
- कोविड से मरने वालों की संख्या पर भ्रम बना हुआ है। क्या यह जरूरी नहीं कि मौत की संख्या का अदालत की निगरानी में पारदर्शी ऑडिट हो, खासतौर पर तब जब अपेक्स कोर्ट ने कोविड प्रभावित परिवारों को मुआवजा देने की स्कीम बनाने पर जोर दिया है? उनका क्या जो कोविड से गांव में घरों में मर गए, लेकिन न उनके मृत्यु प्रमाणपत्र बने, न ही पंजीकृत हुआ कि उनकी मौत कोविड से हुई?
- कोविड के बाद बना पीएम केयर फंड दानदाताओं या उनसे मिली राशि की जानकारी देने से इनकार करता रहा है। उसका दावा है कि यह सूचना के अधिकार के तहत नहीं आता। यह अस्पष्टता परेशान करने वाली है क्योंकि यह फंड नागरिकों की मदद के लिए बना था और उन्हें ही यह जानकारी नहीं दी जा रही कि इसकी राशि कहां खर्च हुई।
- कोविड से जंग में वैज्ञानिक समुदाय को भी फंडिग देकर सशक्त करना जरूरी था। लेकिन भारत में पर्याप्त जीनोम सीक्वेंसिंग नहीं हो सकी। इसलिए क्या सरकार बता सकती है कि उसने वायरस और उसके वैरिएंट की जानकारी जुटाने के लिए मेडिकल रिसर्च में कितना निवेश किया?
- महामारी में कई नौकरियां गईं। चूंकि सरकार कई विश्वसनीय संस्थानों के बेरोजगारी के आंकड़े स्वीकार नहीं कर ही, तो श्रम एवं रोजगार मंत्रालय महामारी के दौरान गई नौकरियों का सही आकंड़ा सामने क्यों नहीं लाता?
- केंद्र कई मौजूदा सेस को हटाकर, राज्यों से भी पेट्रोल-डीजल पर लग रहे टैक्स कम करने की बात क्यों नहीं करता? बेशक संसद इस पर चर्चा शुरू कर सकती है, जिसे जीएसटी काउंसिल में आगे बढ़ाकर, ताकि ईंधन को अधिक तर्कसंगत और टिकाऊ कर व्यवस्था का हिस्सा बनाया सकें।
- आखिर में एक आसान सवाल: क्या भारत संभावित तीसरी लहर के लिए तैयार है? और भगवान न करे, आगे भी ऐसा होता रहा तो कौन जिम्मेदार होगा?
राजदीप सरदेसाई
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)