संसद नहीं चलने देने का इंतजाम

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संसद के हर सत्र से पहले सरकार या भारतीय जनता पार्टी कुछ न कुछ ऐसा कर देती है, जिससे संसद में हंगामा शुरू हो जाता है और कामकाज नहीं हो पाता है। संसद बाधित होती है तो सरकार आराम से बिना बहस के अपने कामकाज पूरा करा लेती है। बिना चर्चा, संशोधन या कटौती के सरकार के बिल पास हो जाते हैं। यह एक डिजाइन है, जिसे संसद के हर सत्र के दौरान देखा जा सकता है। जैसे अभी संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने वाला है तो सरकार ने कोरोना वायरस की महामारी के बहाने प्रश्न काल स्थगित कर दिया है। सरकार के सुझाव पर संसद के दोनों सदनों के सचिवालय ने प्रश्न काल और साथ साथ शून्य काल भी स्थगित करने का फैसला किया। इस सत्र में कोई गैर सरकारी विधेयक भी नहीं लाया जा सकेगा।

इस फैसले के साथ ही समूचा विपक्ष नाराज हो गया है और आंदोलन के मूड में आ गया दिख रहा है। रूस के यात्रा पर रवाना होने से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल आदि पार्टियों के नेताओं से बात की। इससे यह भी पता चलता है कि भाजपा और सरकार दोनों के पास ले-देकर सहमति बनाने वाले नेता अकेले राजनाथ सिंह ही हैं। सरकार के संसदीय कार्य मंत्री सिर्फ कोरम पूरा करने के लिए रखे गए दिख रहे हैं। बहरहाल, विपक्ष इस समय सरकार की कोई बात सुनने के मूड में नहीं है। इसका सीधा मतलब है कि पहले दिन से संसद में टकराव होगा। दोनों सदनों में विपक्षी पार्टियां इसे मुद्दा बनाएंगी। इस किस्म का टकराव या गतिरोध सरकार को सूट करता है। अन्यथा कोई कारण नहीं था कि चार घंटे रोजाना की कार्यवाही में एक घंटे का प्रश्न काल न रखा जाए।

याद करें संसद के पिछले सत्र में कैसे भाजपा ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस के अंदर तोड़-फोड़ शुरू की थी और विधायकों को भगा कर बेंगलुरू पहुंचाया गया था। संसद का बजट सत्र चल रहा था और भाजपा का यह खेल चल रहा था। इसे लेकर कांग्रेस और विपक्ष की दूसरी पार्टियों के नेता भी सदन के अंदर आंदोलन करते रहे, लोकतंत्र की हत्या के आरोप लगाते रहे, वाकआउट करते रहे और सरकार अपना काम करती रही। जब इससे भी काम नहीं बना तो कोरोना वायरस को बहाना बनाया गया और बिना किसी खास चर्चा के ही बजट पास करके संसद सत्र बीच में ही समाप्त कर दिया गया।
सोचें, उस समय पूरे देश में पांच-सात सौ केसेज थे, तब उसका खतरा दिखा कर बजट पर विस्तार से चर्चा कराने, विपक्ष के संशोधन प्रस्ताव को सुनने और जवाब देने की बजाय, उसे पास कर दिया गया और एक हफ्ते पहले ही उधर मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और इधर दिल्ली में सत्र का समापन हो गया।

इस बार भी यही तैयारियां हैं। सरकार हर मोर्चे पर विफल है। बेरोजगारी, महंगाई, जीडीपी जैसे तमाम मसलों पर सरकार घिरी हुई है लिहाजा वो सवालों से बचना चाहती है। सरकार की मजबूती विपक्ष की दिकत के कारण भी है। विपक्ष बिखरा हुआ रहता है और मजबूत नहीं है तो लिहाजा सरकार को हर मसले पर संसद में निपटने में सहूलियत रहती है। मानसून सत्र में विपक्ष गरजेगा जरूर लेकिन बरसेगा कितना ये आने वाला समय बता ही देगा। लेकिन संसद में सरकार इस बार ज्यादा घिरी रहेगी ये तय है। प्रश्नकाल न होने से बचाव का रास्ता तो खोज ही लिया गया है। बोलकर नहीं लिखकर पूछो तो सरकार बताएगी। लेकिन बोलने को जनता सुनती है..लिखने का किसे पता?या लिखा?

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