संघ और भाजपा प्रबंधन फेल

0
255

मध्यप्रदेश में आमचुनाव का तीसरा चरण पूरा हो गया। 29 लोकसभा सीटों वाले इस सूबें में 21 उम्मीदवारों के भाग्य ईवीएम में बंद हो गए। अब तक हालात को देखते हुए ऐसा लता है कि इस बार कोई तुरर्म फील गुड में तो नहीं है। जो हालात 2014 में थे वैसी रेड कारपेट जैसे मखमली स्थिति भाजपा के लिए भी नहीं है। भोपाल को ही लें तो चालीस सालों से अजेय रही भाजपा इस बार सन्यासिन प्रज्ञा सिंह राजा दिग्विजय सिंह के सामने परास्त भले ही न दिखी हों परेशान जरूर नजर आईं। कहा जाता है चुनाव मिशन के साथ मैनेजमेंट से भी जीता जाता है। भाजपा और संघ अब तक मिशन के मार्फत ही बढ़त बनाते आए हैं मगर जहां तक मैनेजमेंट की बात है जो बदहाली विधानसभा चुनाव में थी वह लोक सभा चुनाव में भी बद से बदतर होती चली गई। पहले कांग्रेस का नारा था वक्त है बदलाव का।

भाजपा ने इसे बदला और कहा वक्त है बदले का। मगर यह बदला भाजपा अपने ही लोगों से लेती दिखाई दी। बचपन में पहलवानी करते समय अक्सर चित होने पर हार मान ली जाती थी, लेकिन ये सियासत का अखाड़ा है इसमें जमीन पर भले ही पीठ लग जाए पार्टियां और नेता बच्चों की तरह कहते हैं चीं बुलवाओगे तभी हार मानेंगे। अब जमाना चीं बोलने का आ गया है। 23 मई तक तो अखाड़े में चित होने वाले पहलवान भी चीं की प्रतीक्षा में रहेंगे। मध्यप्रदेश में भोपाल लोकसभा सीट सहसे हॉट मानी जा रही है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भाजपा और संध परिवार को नाको चना तो चबबा दिए हैं। मैनेजमेंट के मामले में श्री सिंह ने नए नेताओ के लिए संस्थान की तरह काम किया है। उन्होंने साम, दाम, दंड, भेद, की नीति अपनाते हुए भाजपा दिग्गजों को निष्क्रिय भले ही नहीं किया हो काफी हद तक तटस्थ करने में कामयाबी हासिल की।

राजा ने इस बार साम के साथ दंड देने की धमक भी अपने स्तर पर पैदा की। दूसरी तरफ भाजपा नेताओं की निष्क्रियता का आलम यह रहा कि खराब हालत की खबर सुन दो राष्ट्रीय नेता और मध्यप्रदेश के प्रभारी रहे ओमप्रकाश माथुर के साथ महामंत्री अनिल जैन को भोपाल कैंप कराया। इसके साथ मिस मैनेजमेंट का एक उदाहरण यह भी रहा कि अध्यक्ष अमित शाह को रोड शो भोपाल में कहां होगा इसे लेकर इस कदर अनिश्चितता थी कि जबलपुर से प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को भोपाल आना पड़ा। दूसरी तरफ संघ ने भी पार्टी और हिन्दुत्व के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी साध्वी प्रज्ञा रे विए अपने अनुषांगिक संगठनों को सक्रिय कर पूरी ताकत झोंक दी थी। भाजपा में यह भी कहा जा रहा है अगर विधानसभा चुनाव में मैनेजमेंट ठीक होता तो प्रदेश में सरकार फिर बन जाती। इसके पीछे पार्टी हाईकमान को भी स्थानीय नेता जिम्मेदार मानते हैं।

इसलिए कांग्रेस के वक्त है बदलाव के नारे को हल्के फुल्के मूड में ही सही कहा जा रहा है वक्त है बदले का। प्रेदेश नेतृत्व के अतिविश्वास, अकर्मण्यता के काऱण हालात शुभ संकेत नहीं दे रहे हैं। इससे उपजे असंतोष की आग को संघ से मिशन के तौर पर भेजे गए संगठन मंत्रियों के मिजाज ने और भडक़ा दिया है। इंदौर का एक किस्सा है नरेन्द्र मोदी की सभा के लिए जो बैनर बनाए गए थे उसमें सुमित्रा महाजन और शिवराज सिंह चौहान के फोटो तक नहीं थे। इसके अलावा संगठन मंत्री ने जिन नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी से मिलवाया उनमें इंदौर के नामचीन नेताओं के नाम नहीं थे। संघ से मिशन के तौर पर भेजे गए संगठन मंत्रियों की फेल होने की हांडी में इसे एक चावल की तरह देख सकते हैं। संगठन मंत्री मंहगी गाडिय़ों और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन शैली के काऱण कार्यकर्ताओं में वैसी प्रतिष्ठा और सम्मान नहीं हासिल कर पा रहे हैं जो पुराने संगठन मंत्रियों को मिलता था। कह सकते हैं लोक सभा चुनाव के तीसरे चरण में भाजपा और संघ मैनेजमेंट के साथ मिशन में भी पूर्व की भांति प्रभावी नजर नहीं आ रहा है। नतीजों के लिए तो 23 तक इंतजार करना होगा। वैसे भी चित होने से अब जीत नहीं मिलती इसके लिए ची बुलवाना जरूरी है।

राघवेन्द्र सिंह
लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here