कमलनाथ ने एक साक्षात्कार के दौरान मोदी जी की चौकीदारी पर प्रश्न उठाया-मोदी जी किसके चौकीदार हैं? साथ ही कई क्षेत्रों का उल्लेख भी खुद ही कर दिया-किसानों के चौकीदार, युवाओं के चौकीदार या शौचालयों के चौकीदार? तोताराम इस बात से दुखी था कि मोदी जी को शौचालयों का चौकीदार कहा गया। बोला-मास्टर, संसार में राजनीति हमेशा रही है और रहेगी। लोग आते-डाते रहेंगे लेकि समाज में इंसानी रिश्तों और आपसी व्यवहार की मर्यादा को गिराना कहां तक उचित है? कभी चाय वाला तो कभी चौकीदार।
हमने कहा – तोताराम क्या किया जा सकता है? कमलनाथ देश के सबसे धनवान पांच सांसदों में एक है। कमल हैं तो लक्ष्मी को तो आना ही था। भाजपा के चुनाव चिन्ह ‘कमल’ पर तो उनका अपने जन्म के सन 1946 से ही कब्जा है। और तो और ये तो देश का प्रधानमंत्री तय करने वाले राज्य के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ के जन्म के पहले से ही ‘नाथ’ भी हैं। वैसे तुझे ज्यादा चिंतिति होने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह केवल शब्दों की लड़ाई है और शब्दों की लड़ाई में मोदी जी को कोई नहीं सकता। तिस पर कमलनाथ द्वारा सुझाए गए विकल्पों में से मोदी जी ने शौचालच की चौकीदारी का जो विकल्प चुना है, वह उनकी बड़ी दूरदर्शी सोच को बताता है।
बोला कैसे? हमने कहा – युवा खुला रहना चाहते हैं, उन्हें चौकीदारी पंसद नहीं। किसान की चौकीदारी में बड़ा झंझट है। किसान दिन-रात काम में लगा रहता है। कमाई का कोई ठिकाना नहीं। ऊपर से पता नहीं, अब आत्महत्या करने की नौबत आ जाए। शौचालय की चौकीदारी का काम सबसे बढ़िया है। तोताराम ने फिर पूछा -कैसे? हमने कहा – कभी सुलभ शौचालय के चौकीदार को देखा है? मजे से बैठा बीड़ी पीता रहता है। अंदर जाकर किसी को दस्त आए या नहीं लेकिन वह तो घुसने से पहले की पूरी फीस ले लेता है। कल्पना कर, तेरी जेब में दो ही रुपये हों और तुझे बड़े जोर की हाजत हो रही हो। शौचालय का चौकीदार अचानक अपनी मर्जी से रेट दो रुपये की जगह दस रुपए कर दे तो?
उस पर मनमाने ढंग से 28 फीसदी जीएसटी भी लगा दे तो? बाद में तू भले ही उपभोक्ता अदालत में चले जाना ‘जागो ग्राहक जागो’ गाते रहना लेकिन एक बार तो तेरा पायजामा खराब हो ही जाएगा। वैसे शौचालय भी रसोई से कम महत्वपूर्ण नहीं है। शौच नहीं जाओंगे तो खाओंगे क्या? मतलब चौशालय नहीं तो रसोई का भी कोई भविष्य नहीं। यह भी सैसी हो पहेली है जैसी कि पहले मुर्गी हुई या अंडा? बोला – वैसे तो यह बात ठीक है कि मोदी जी ने शौचालय को देवालय की ऊंचाई पर स्थापित कर दिया है। भले ही देशभक्ति पर दो राय हो सकती है लेकिन शौचालय की महत्ता पर दो राय नहीं हो सकती। हमने कहा-तभी जब अकबर ने बीरबल से दुनिया के सबसे बड़े सुख के बारे में पूछा था तो बीरबल ने कहा था- जहांपनाह, वक्त पर हाजत का रफा गो जाना मतलब कि जब दस्त की हाजत हो उस समय ढंग का शौचालय मिल जाना। बोला – तब को यह भी हो सकता है कि जेटली जी अगले बजट में हवाई यात्रा फ्री करके प्लेन में शौच जाने का शुक्ल ही किराए से दुगुना कर दें और बेचारे यात्री पायजाम खराब होने के डर से देने भी लए जाएं।
रमेश जोशी
लेखक व्यंगकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं