विवाह के लिए श्रीराम ने जो शिव धनुष तोड़ा था, उसे पांच हजार लोग खींचकर लाये थे

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सीता का विवाह स्वयंवर पद्धति से नहीं हुआ था। महर्षि वाल्मीकि की रामायण में केवल इस बात का उल्लेख है कि सीता के पिता जनक ने यह घोषणा की थी कि जो कोई शिव धनुष पर बाण का संधान कर लेगा, उसके साथ सीता का विवाह कर दिया जाएगा। समय-समय पर कई राजा आए, किंतु धनुष को कोई हिला भी नहीं सका।

रामायण के बालकांड के 67 वें सर्ग के अनुसार मुनि विश्वामित्र भी राम-लक्ष्मण को लेकर जनकपुर गए और जनक से राम को धनुष दिखाने को कहा। धनुष के आकार को देखकर ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई भी राजा धनुष को हिला भी क्यों नहीं पाया था? रामायण के अनुसार यह धनुष एक विशालकाय लोहे के संदूक में रखा हुआ था। इस संदूक में आठ बड़े-बड़े पहिये लगे हुए थे। उसे पांच हजार मनुष्य किसी तरह ठेलकर लाए थे। इस धनुष का नाम पिनाक था। श्रीराम ने संदूक खोलकर धनुष को देखा और उस पर प्रत्यंचा चढ़ा दी। प्रत्यंचा चढ़ाकर श्रीराम ने जैसे ही धनुष को कान तक खींचा, वैसे ही वह बीच में से टूट गया।

इस बारे में रामचरित मानस में लिखा है –
लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें।
काहुं न लखा देख सबु ठाढ़ें ।
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा।
भरे भुवन धुनि घोर क ठोरा ।।
(रामचरित मानस 1/261/ 4)

तुलसीदास जी कहते हैं कि राम ने धनुष कब उठाया, कब चढ़ाया और कब खींचा, तीनों काम इतनी फुर्ती से किए कि किसी को पता ही नहीं लगा। सबने राम को धनुष खींचे खड़े देखा। उसी क्षण राम ने धनुष को बीच से तोड़ डाला। भयंकर कठोर ध्वनि सब लोकों में छा गई।

बड़ी सीख
शिव धनुष तोडक़र भी राम सहज ही रहे। सफलता की चरम सीमा पर भी विनम्र बने रहना सज्जनों का गुण है।

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