ममता बनर्जी ने 21 जुलाई को हर साल की तरह शहीद दिवस के मौके पर एक बड़ी रैली की। इस रैली को उनकी चुनाव तैयारियों से जोड़ कर देखा जा रहा है। इसमें उन्होंने कुछ बेहद अहम बातें कहीं, जिनका राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी खास महत्व है। ममता बनर्जी ने लोकतंत्र बचाने की अपील की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है और बचाने के लिए उन्होंने यह उपाय सुझाया कि इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन, ईवीएम को छोड़ जाए और बैलेट पेपर से चुनाव हो।
ममता बनर्जी ने कहा कि अमेरिका सहित दुनिया के कई विकसित देशों ने ईवीएम से चुनाव कराए थे पर बाद में उसे छोड़ दिया और बैलेट पेपर से चुनाव कराने लगे। उन्होंने कहा कि वे अब भी हैरान हैं कि भाजपा कैसे जीती। ध्यान रहे पश्चिम बंगाल में भाजपा ने लोकसभा की 18 सीटें जीती हैं। इससे पहले नरेंद्र मोदी की पहली लहर में वह सिर्फ दो सीट जीत पाई थी। ममता बनर्जी पहले इस बात पर हैरानी जता चुकी हैं कि आखिर यह कैसे हुआ कि भाजपा ने जो कहा वह हो गया। भाजपा ने 23 सीट जीतने का दावा किया था और वह 18 पर जीती। बहरहाल, ममता बनर्जी का कहना है कि लोकतंत्र तभी बचेगा, जब ईवीएम की बजाय बैलेट पेपर से चुनाव होगा।
यहीं बात टीडीपी कह रही है, जेडीएस कह रही है, राजद नेता कह रहे हैं और अब कांग्रेस नेता भी कहने लगे हैं। तभी सवाल है कि अगर ईवीएम लोकतंत्र के लिए इतना ही खतरनाक है तो क्यों नहीं विपक्षी पार्टियां ईवीएम से होने वाले चुनाव का बहिष्कार कर रही हैं? वे एकजुट होकर ऐलान कर दें कि अगर ईवीएम से चुनाव होंगे तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। एक बार वे एक ही पार्टी को चुनाव लड़ कर जीतने दें, फिर देखें कि देश में क्या माहौल होता है?
इस पर आगे विचार करने से पहले अभी आई एक ताजा खबर पर विचार करना होगा। इस खबर में बताया गया है कि कोई दस जगहों पर ईवीएम के वोट और वीवीपैट परची का मिलान सही नहीं निकला है। हालांकि इसमें यह भी कहा गया है कि यह संख्या बहुत मामूली है। सबसे ज्यादा अंतर 34 वोट का रहा है, जिससे नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ता है। पर सवाल यह है कि जब चुनाव के तुरंत बाद यह दावा किया गया था कि किसी भी ईवीएम और वीवीपैट के आंकड़े में कोई मिसमैच नहीं हुआ है तो दस वोट या 34 वोट का यह मिसमैच कैसे सामने आया है।
कहा जा रहा है कि मतदान अधिकारी मॉक ड्रिल के वोट डिलीट करना भूल गए थे। ध्यान रहे जो मामले सामने आए हैं उन सबमें ईवीएम में परची के मुकाबले ज्यादा वोट थे। हो सकता है कि आयोग की ओर से जो बात कही जा रही है वह सही हो पर विपक्षी पार्टियां इसी बात की तो शिकायत कर रही हैं कि ईवीएम में पहले से ही ज्यादा वोट होते हैं बाद में उसमें कुछ वोट जोड़ दिए जाते हैं। यह विपक्ष का अंदाजा है, आरोप है पर ऐसा कोई भी आरोप अगर सही साबित होता है तो यह भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद हिलाने वाला होगा। अगर चुनाव प्रक्रिया पर लोगों का संदेह बढ़ा तो यह भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए बहुत खतरनाक होगा, यह बात पक्ष और विपक्ष दोनों को ध्यान में रखनी होगी।
लोकसभा चुनाव से पहले तो कांग्रेस के नेता ईवीएम पर संदेह करते ही थे चुनाव के बाद वे नई बातें कहने लगे हैं। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि इजराइल और रूस के समर्थन से भाजपा चुनाव जीती। दो साल पहले इस तरह की बातें अमेरिकी चुनाव को लेकर हो रही थीं।
डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद विपक्षी पार्टियों ने कहा कि रूस ने चुनाव प्रक्रिया में छेड़छाड़ की है। इसके लिए जांच कमेटी भी बनी। पर बाद में कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। हालांकि विपक्षी पार्टियों का संदेह पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। उसी तरह भारत में कहा जा रहा है कि विदेशी ताकतें चुनाव प्रक्रिया में दखल दे रही हैं और इससे छेड़छाड़ कर रही हैं। यह और भी गंभीर बात है। अगर दुनिया की ताकतें अपने मनमाफिक सरकार बनाने के लिए सचमुच छेड़छाड़ करने लगें तो लोकतंत्र और भारत की संवैधानिक व्यवस्था मजाक बन कर रह जाएगी। ध्यान रहे विपक्षी पार्टियां आने वाले दिनों में इसका प्रचार और करेंगी।
जब विपक्षी पार्टियों से कहा जाता है कि राज्यों के चुनाव में वे कैसे जीते या लोकसभा चुनाव में ही केरल या तमिलनाडु में कांग्रेस कैसे जीती या पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी 23 सीटों पर कैसे जीती? तो उनका जवाब होता है कि छेड़छाड़ सारी सीटों पर नहीं की जाती है। वे यह भी कहते हैं कि राज्यों में जान बूझकर नतीजों से छेड़छाड़ नहीं की जाती है ताकि ईवीएम पर भरोसा बने। और जब विपक्षी पार्टियां जीत कर ईवीएम पर भरोसा करने लगती हैं तो बाद में उनकी सरकार तोड़ फोड़ कर गिरा दी जाती है।
तभी सवाल है कि इसका क्या उपाय है? विपक्षी पार्टियों का कहना है कि बैलेट पेपर से चुनाव हो तो सारे संदेह खत्म हो जाएंगे। पर अगर सरकार इसके लिए तैयार नहीं होती है तो विपक्ष क्या करे? इसका एक ही उपाय है। अगर विपक्ष को संदेह है तो ईवीएम से जीती हुई विपक्षी पार्टियों की सरकारों को इस्तीफा देना चाहिए। और यह ऐलान करना चाहिए कि जब तक बैलेट से चुनाव नहीं होंगे, तब तक वे चुनाव नहीं लड़ेंगी। इसके साथ ही विपक्ष को जनता के बीच जाकर इस बारे में उन्हें तथ्यों के साथ जागरूक करना होगा।
शशांक राय
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…