नागरिकता कानून पर भाजपा ने अपना पक्ष सफलतापूर्वक साबित कर दिया है। भले भाजपा के नेता और प्रधानमंत्री से लेकर केंद्र सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि इस कानून में किसी की नागरिकता लेने का प्रावधान नहीं है, पर भाजपा के समर्थक वहीं सुन रहे हैं, जो उनके कानों को अच्छा लग रहा है। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि यह नागरिकता लेने का नहीं देने का कानून है पर देश भर के भाजपा समर्थक और अधिकांश बहुसंख्यक सुन रहे हैं कि यह कानून हिंदुओं को नागरिकता देगा और मुसलमानों की नागरिकता ले लेगा। तकनीकी और कानूनी रूप से यह सही नहीं है पर किसी को व्यक्तिगत रूप से किसी नियम की व्याख्या करने से तो नहीं रोका जा सकता है!
सो, भाजपा समर्थकों की व्याख्या है कि यह कानून हिंदुओं को नागरिकता देगा और मुसलमानों की ले लेगा। नागरिकता ले लेगा से उनका मतलब है कि अब तक भारत में घुसपैठियों को जो सुविधाएं मिलती रही थीं वह नहीं मिलेंगी। उनको या तो देश से निकाला जाएगा या डिटेंशन सेंटरों में कैदियों की तरह रखा जाएगा। भाजपा समर्थकों को यह बात इसलिए भी समझ में आ रही है क्योंकि इस कानून का विरोध आमतौर पर मुसलमानों द्वारा किया जा रहा है। असम व पूर्वोत्तर के राज्यों को छोड़ दें तो इस कानून का सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम समुदाय की ओर से ही हो रहा है।
इसका सबूत विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोली से मारे गए लोगों की सूची से मिल जाएगा। घायल हुए लोगों की सूची भी इसकी गवाही देगी। उत्तर प्रदेश में जिन प्रदर्शनकारियों से राज्य सरकार मुआवजा वसूल रही है उनकी सूची से भी इसका पता चल जाएगा। अखबारों में लेख लिखने वालों, सोशल मीडिया में सक्रियता के साथ नागरिकता कानून का विरोध करने वालों और जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि प्रदर्शनों में शामिल होने वाले लोगों का पहनावा भी बता दे रहा है कि विरोध प्रदर्शन में कौन शामिल हो रहा है। बची खुची कसर मीडिया की खबरों से पूरी हो जा रही है, जिसमें हर जगह यहीं लिखा जा रहा है कि नागरिकता कानून के विरोध में मुस्लिम समुदाय ने प्रदर्शन किया।
सो, भाजपा के समर्थकों के मन में कानून को लेकर कोई संशय नहीं है। वे इसके टेक्स्ट, सब टेक्स्ट और काउंटर टेक्स्ट को भी बहुत सहजता से समझ रहे हैं। मोदी और शाह ने इस कानून के जरिए अपने समर्थकों को जो समझाने का प्रयास किया उसे वे समझ गए हैं। सोशल मीडिया में उनका प्रचार है कि ‘एक बिल से सब बिल से निकल कर बिलबिलाए हुए हैं’। यह प्रचार अपने आप में भाजपा के एजेंडे को पूरा करता है।
इसीलिए कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को साबित करना है कि यह कानून सिर्फ मुस्लिम विरोधी नहीं है या इसके विरोध में हो रहे प्रदर्शनों में सिर्फ मुस्लिम शामिल नहीं हैं। फिलहाल इसका कोई रोडमैप कांग्रेस, लेफ्ट और दूसरी विपक्षी पार्टियों के पास नहीं दिख रहा है। ऐसा होने के दो कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि नागरिकता कानून में कहा गया है कि पड़ोस के मुस्लिम बहुल देशों से प्रताड़ित होकर जो अल्पसंख्यक भारत आएंगे उनको नागरिकता दी जाएगी। इसमें सारा जोर इस बात पर है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदुओं को भारत की नागरिकता मिलेगी। इसमें ज्यादातर बहुसंख्यकों को दिक्कत नहीं दिखाई दे रही है। दूसरा कारण यह है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी अभी आया नहीं है।
सो, भले बौद्धिक लोग समझाएं कि नागरिकता कानून आ गया है तो एनआरसी भी आएगी ही पर आम आदमी उसके साथ कनेक्ट नहीं कर पा रहा है। जो चीज अभी आई नहीं है, उसके बारे में सोच कर विरोध करने की प्रकृति भारत के लोगों की नहीं रही है। अभी जो विरोध हो रहा है वह भी नागरिकता कानून का ही हो रहा है। इसलिए विपक्ष को ज्यादा मुश्किल हो रही है। वे बहुसंख्यक हिंदू समाज को समझा नहीं पा रहे हैं कि इससे उनका जीवन भी प्रभावित होगा। तभी वे सहज, स्वाभाविक रूप से बाहर निकल कर विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा नहीं बन रहे हैं। उनमें किसी किस्म का आक्रोश नहीं दिख रहा है।
एक तरफ तो विपक्ष तर्कसंगत तरीके से बहुसंख्यक समाज को यह नहीं समझा पा रहा है कि नागरिकता कानून और नागरिक रजिस्टर से उनका जीवन भी प्रभावित होगा तो दूसरी ओर उनका जीवन जिन बातों से प्रभावित हो रहा है उसे नागरिकता के चक्कर में विपक्ष ने छोड़ रखा है। आम आदमी का जीवन आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई से प्रभावित हो रहा है। पर विपक्ष उसे छोड़ कर नागरिकता के पीछे पड़ा है। संविधान बचाने की रैली कर रहा है। एक पुरानी कहावत है कि एक बच्चा भूख से रो रहा था तो उसके पिता ने उसे उठा कर अलमारी के ऊपर रख दिया और फिर वह बच्चा अलमारी से उतरने के लिए रोने लगा, भूख भूल गया। ऐसा ही कुछ नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने किया है। देश के लोग मंदी, बेरोजगारी, महंगाई, काम धंधे की चिंता में रो रहे थे तो उन्होंने नागरिकता का मुद्दा थमा दिया। अब सब लोग नागरिकता का झुनझुना बजा रहे हैं और अंततः भाजपा का एजेंडा पूरा कर रहे हैं।
अजीत द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं