विधानसभा चुनाव : महाराष्ट्र और हरियाणा में क्या होगा?

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अब से ठीक एक महीने बाद महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव होंगे। इन दोनों राज्यों में पहली बार भाजपा के मुख्यमंत्री पांच साल पहले बने थे। पिछले पांच वर्षों में इन राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्रियों क्रमशः देवेंद्र फडनवीस और मनोहर खट्टर ने अपनी छवि इतनी साफ-सुथरी और सेवाभावी बनाई है कि उनकी जीत या यों कहें कि उनकी वापसी सुनिश्चित है। लेकिन इतना काफी नहीं है।

इस बार इन दोनों राज्यों में भाजपा की प्रचंड विजय की संभावना है। ऐसी विजय की संभावना है, जैसी पहले किसी भी राज्य में अब तक नहीं हुई है। इसके कई कारण हैं। पहला कारण है, केंद्र की भाजपा सरकार का पहले 100 दिनों में जबर्दस्त जलवा बनना। यह बना है, कश्मीर के पूर्ण विलय से, बालाकोट के हमले से, तीन तलाक के तलाक से और अन्तरराष्ट्रीय छवि के चमकने से ! इस राष्ट्रीय सफलता का प्रभाव इन प्रांतीय चुनावों पर पड़े बिना नहीं रहेगा।

दूसरा, महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस की दुर्गति या यों कहें कि संपूर्ण विपक्ष की इतनी दुर्गति हो रही है, जितनी अन्य प्रांतों में कम ही हो रही है। प्रमुख विरोधी दलों के दिग्गज अपनी पार्टियां छोड़-छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। वे भाजपा के टिकिट भी मांग रहे हैं। क्यों मांग रहे हैं ? क्योंकि वे हवा के रुख को पहचान गए हैं।

तीसरा, विपक्ष के दल कोई संयुक्त मोर्चा भी भाजपा के खिलाफ ठीक से खड़ा नहीं कर पा रहे हैं। यदि वे सब एकजुट हो जाएं तो भाजपा के लिए प्रचंड बहुमत पाना आसान नहीं होगा लेकिन आज राजनीतिक वातावरण ऐसा है कि सब एकजुट हो जाएं तो भी वे भाजपा को नहीं हरा सकते। हरियाणा की 90 सीटों में से 2014 में भाजपा को 47, इनलो को 19 और कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दसों सीटें जीत ली थीं।

इस हिसाब से अब इस विधानसभा चुनाव में विपक्ष सिर्फ 20-25 सीटों तक सिमट जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। महाराष्ट्र में 2014 में भाजपा और शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। भाजपा को 122 और शिवसेना को 63 और कांग्रेस को सिर्फ 42 सीटें मिली थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 48 सीटों में से भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने 41 सीटें जीत ली थीं। तो सोचिए अब यदि इन दोनों गठबंधनों- भाजपा+शिवसेना और कांग्रेस+ एनसीपी में टक्कर होगी तो क्या होगा ?

महाराष्ट्र की 288 सीटों में से कम से कम 200 सीटें तो भाजपा-गठबंधन के हाथ लगेंगी ही। वे सवा दो सौ या ढाई सौ भी हो जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। इन दोनों राज्यों में होनेवाले चुनाव भाजपा को मुगालते में भी डाल सकते हैं। यह असंभव नहीं कि इनमें मिलनेवाली अपूर्व विजय भाजपा सरकार को अर्थ-व्यवस्था की गिरावट के प्रति लापरवाह बना दे।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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