लालच की वजह से किसी के भी सुख जीवन में अशांति पनप सकती है। ये एक ऐसी बुराई है जो सबकुछ बर्बाद कर सकती है। इससे बचना चाहिए। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में किसी राजा का सेवक अपने जीवन में बहुत सुखी था। सेवक को राजा सोने की एक मुद्रा रोज देता था। वह बहुत ही ईमानदार था, इस वजह से राजा का प्रिय था। उसकी पत्नी भी बुद्धिमानी से घर चलाती थी। एक दिन महल से घर लौटते समय में सेवक को एक यक्ष मिला। यक्ष ने उससे कहा कि मैं तुम्हारी ईमानदारी और मेहनत से बहुत खुश हूं। इसलिए मैं तुम्हें सोने के सिकों से भरे सात घड़े दे रहा हूं। तुम जब अपने घर पहुंचोगे तो ये सातों घड़े तुम्हें अपने घर में मिल जाएंगे। ये सुनकर सेवक बहुत खुश हुआ। जब वह घर पहुंचा तो उसने पूरी बात पत्नी को बताई। दोनों ने अंदर के कमरे में देखा तो वहां सात घड़े रखे हुए थे। उनमें से 6 घड़े तो सोने के सिकों से पूरे भरे थे, लेकिन एक घड़ा थोड़ा सा खाली था।
एक घड़ा खाली देखकर सेवक क्रोधित हो गया। वह तुरंत ही उस जगह पर गया जहां उसे यक्ष मिला था। सेवक ने यक्ष को पुकारा तो यक्ष वहां प्रकट हो गया। सेवक ने एक घड़ा खाली होने की बात कही तो यक्ष ने कहा कि वह घड़ा तुम भर लेना, वो थोड़ा सा ही खाली है। सेवक इस बात के लिए मान गया। अगले दिन सेवक का जीवन पूरी तरह बदल गया था। अब वह खाली घड़े को भरने के लिए चिंतित रहने लगा। घर में भी कंजूसी करने लगा। कुछ ही दिनों में उसकी सुख-शांति खत्म हो गई थी। वह रोज उसमें एक स्वर्ण मुद्रा डाल रहा था, लेकिन बहुत दिनों के बाद भी वह घड़ा खाली ही था। राजा के सेवक के व्यवहार में परिवर्तन देखा तो वह समझ गए कि सेवक परेशान है। उसने सेवक से परेशानी की वजह पूछी तो सेवक ने पूरी बात बता दी। राजा ने कहा कि तुम अभी वो सातों घड़े उस यक्ष को वापस कर दो, योंकि सातवां घड़ा लालच का है, वह कभी नहीं भरेगा। लालच की वजह से ही तुम्हारा सुखी जीवन अशांत हो गया है। सेवक को राजा की बात समझ आ गई, उसने तुरंत ही सातों घड़े यक्ष को लौटा दिए। इसके बाद उसके जीवन में फिर से सुख-शांति लौट आई।