भाराजस्थान-कांग्रेस के दोनों गुटों—— गहलोत और सचिन— में सुलह तो हो गई है लेकिन जैसी कि कहावत है कि ‘काणी के ब्याह में सौ—सौ जोखम’ हैं। यदि दोनों में सुलह हो गई है तो कांग्रेस हायकमान ने तीन सदस्यों की कमेटी किसलिए बनाई है ? यह कमेटी क्या सचिन पायलट को दुबारा प्रदेशाध्यक्ष और उप-मुख्यमंत्री बनवाने की सलाह देगी ? यदि नहीं तो क्या सचिन को गहलोत के बोझ तले दबना नहीं पड़ेगा, जिसे मैंने पहले जीते-जी मर जाना कहा था। यों भी मुझे पता चला है कि सचिन गुट के 18 में से लगभग 10 सदस्य अपनी विधानसभा की सदस्यता खत्म होने से डरे हुए थे। 14 अगस्त को होनेवाले शक्ति-परीक्षण में यदि सचिन गुट कांग्रेस के विरुद्ध वोट करता या व्हिप के बावजूद गैर-हाजिर रहता तो उसकी सदस्यता ही खत्म हो जाती और फिर उप-चुनाव में पता नहीं कौन जीतता और कौन हारता।
क्यों भी सचिन गुट के बिना भी गहलोत को बहुमत का समर्थन तो मिलना ही था। अब सचिन अपने गुट के कितने लोगों को अपने साथ रख पाएंगे, यह देखना है। गालिब के शेर को सचिन अब उल्टा पढ़े तो वह उन पर बिल्कुल फिट बैठेगा। ‘बड़े बे-आबरु होकर तेरे कूचे में हम फिर घुस आए।’ सचिन-गुट ने अपनी नादानी के कारण अपनी इज्जत तो गिराई ही, साथ में भाजपा की इज्जत भी वह ले बैठा। भाजपा भी दो हिस्सों में बंटी दिखी। पैसों के लेन-देन की खबरें चाहे झूठी ही हों लेकिन जनता ने उन्हें सच माना। इस नौटंकी के कारण विधानपालिका का मान घटा और न्यायपालिका का हस्तक्षेप बढ़ा।
कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर भी सवाल उठे। वह इस बात का झूठा श्रेय ले सकती है कि उसने राजस्थान-कांग्रेस के दोनों गुटों में सुलह करवा दी लेकिन यह है— मजबूरी का नाम राहुल गांधी। इस नेतृत्व में इतना दम कहां रह गया है कि वह गलत को गलत कह सके और सही को सही? पंजाब-कांग्रेस पर भी संकट के बादल घिर रहे हैं। यदि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इसी तरह लकवाग्रस्त रहा तो पता नहीं कांग्रेस— शासित राज्यों में कितनी स्थिरता रह पाएगी। राजस्थान में भाजपा फिर से कुछ नए सचिन पायलट खड़े कर दे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कांग्रेस नेतृत्व की कंगाली पता नहीं, क्या-क्या गुल खिलाएगी।
डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार)