राजनाथ सिंह : भूल-चूक लेनी-देनी

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नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जैसे ही अमित शाह का नाम आया, मैंने तत्काल कहा था कि अब अमित भाई उप-प्रधानमंत्री की हैसियत वाले हो जाएंगे। वे राजनाथसिंह की जगह नं. 2 बन जाएंगे। कल वही हुआ। सरकार ने मंत्रिमंडल की जिन आठ कमेटियों की घोषणा की, उन सबकी सब में अमित शाह का पहला नाम था लेकिन राजनाथसिंह का नाम सिर्फ दो कमेटियों में था। एक सुरक्षा की और दूसरी आर्थिक मामलों की। जो दो सबसे महत्वपूर्ण कमेटियां मानी जाती हैं याने राजनीतिक मामलों और संसदीय मामलों की, उनमें राजनाथसिंह का नाम गायब था। इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि प्रधानमंत्री की गैर-हाजिरी में इन कमेटियों की अध्यक्षता राजनाथ नहीं, अमित शाह करेंगे याने अब यह नहीं कहा जा सकता था कि राजनाथ का नंबर दूसरा है या तीसरा है या उससे भी नीचे है।

इस खबर के आते ही यह अफवाह भी फैलने लगी कि राजनाथ नाराज हो गए हैं और वे इस्तीफे की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन मोदी ने काफी समझदारी दिखाई। इसके पहले कि यह मामला तूल पकड़ता, सरकार ने घोषणा कर दी कि राजनाथसिंह को दो नहीं, अन्य चार कमेटियों में भी शामिल कर लिया गया है। भूल-चूक लेनी-देनी। लेकिन अभी भी यह सवाल बना हुआ है कि प्रधानमंत्री के बाद इन कमेटियों की अध्यक्षता कौन करेगा ? यह संतोष का विषय है कि जैसे ही किसी असंतोष के भड़कने की संभावना दिखाई पड़ती है, यह सरकार तुरंत सुधार कर लेती है, जैसे कि उसने हिंदी के प्रश्न पर तमिलनाडु के आगे तत्काल घुटने टेक दिए।

यों तो किसी मंत्री की हैसियत सरकार में क्या होगी, यह तय करना प्रधानमंत्री के हाथ में ही होता है लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथसिंह के साथ जो कुछ हुआ है, वह यह डर पैदा करता है कि यह सरकार कहीं ‘भाई-भाई प्रायवेट लिमिटेड कंपनी’ न बन जाए। अभी तो मोदी की अप्रत्याशित विजय के कारण भाजपा के विरोधियो की भी बोलती बंद है लेकिन सरकार का यही ढर्रा बना रहा तो इसकी तीव्र प्रतिक्रिया बाहर और अंदर दोनों जगह होगी। देश की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है। भाषणों और नारों से लोगों का पेट नहीं भरेगा। यदि भाजपा और सरकार में आंतरिक समरसता नहीं होगी तो पांच साल चैन से निकालना मुश्किल हो जाएंगे।

डॉ वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, ये उनके निजी विचार हैं

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