रवि प्रदोष व्रत 26 जून को : व्रत से होगी सुख-सौभाग्य की प्राप्ति

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भगवान् शिवजी की पूजा-अर्चना अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार हर आस्थावान धर्मावलम्बी मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए करते हैं। भगवान शिवजी को तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में देवाधिदेव महादेव माना गया है। इनकी पूजा-अर्चना से जीवन में अलौकिक शान्ति के साथ ही सुख-समृद्धि, खुशहाली बनी रहती है। भगवान शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है, जिनमें प्रदोष व्रत प्रमुख है। चान्द्रमास के दोनों पक्षों में प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है। सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोष बेला कहते हैं। प्रदोष बेला की अवधि दो या तीन घटी मानी गई है, एक घटी 24 मिनट की होती है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि आषाढ़ कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 25 जून, शनिवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 1 बजकर 11 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 26 जून, रविवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 26 मिनट तक रहेगी जिसके फलस्वरूप प्रदोष व्रत 26 जून, रविवार को रखा जाएगा।

प्रदोष व्रत का विधान-ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होना चाहिए। अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के पश्चात् भगवान् शिवजी की प्रसन्नता के लिए प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करके यथासम्भव धुले हुए या स्वच्छ वस्त्र धारण कर प्रदोष काल में श्रद्धा भक्ति व आस्था के साथ भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

भगवान शिवजी को क्या करें अर्पित- भगवान शिवजी का जलाभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, ऋतुफल, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा विशेष लाभदायी होती है।

किस पाठ से होंगे मनोरथ पूर्ण-भगवान् शिवजी की महिमा में प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। इससे मनोकामना की पूर्ति व अभीष्ट की प्राप्ति होती है। यह व्रत महिलाएँ एवं पुरुष दोनों के लिए शुभ फलदायी है। शिवजी की महिमा में रखे जाने वाला प्रदोष व्रत जीवन के समस्त दोषों का शमन करके सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। व्रत के दिन सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान करना चाहिए, साथ ही गरीबों व असहायों की सेवा व सहायता अवश्य करनी चाहिए।

वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ-ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्त्व है। जैसे-रवि प्रदोष-आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष-विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति। अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है। कलियुग में भगवान शिवजी की आराधना के लिए किए जाने वाला प्रदोष व्रत अत्यन्त चमत्कारिक बतलाया है। श्रद्धाभक्ति एवं आस्था के साथ किए गए प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है तथा सौभाग्य में अभिवृद्धि का सुयोग बनता है।

—–ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन

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