योग निंद्रा: चार माह के लिए पाताल में चले गए हैं भगवान विष्ण

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आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में चले गए हैं।चातुर्मास की शुरुआत हो गई है। पुराणों का कहना है कि इन दिनों भगवान विष्णु, राजा बलि के द्वार पर रहते हैं और इस दिन से चार महीने (चातुर्मास) बाद कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को वापस जागेंगे। अब 4 महीने बाद यानी 15 नवंबर को कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि पर विशेष पूजा पाठ के साथ भगवान को जगाया जाएगा। इस दिन को देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। भगवान विष्णु के जागने के बाद इस दिन से मांगलिक कामों की शुरुआत हो जाएगी। वामन पुराण के मुताबिक, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी। भगवान ने पहले पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरा पग बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर रखने को कहा। इस तरह दान से प्रसन्न होकर भगवान ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में निवास करें। तब भगवान ने बलि की भक्ति देखते हुए चार महीने तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं।

खास पर्व: 22 को तीज पूजा, 23 को आषाढ़ी पूर्णिमा, 24 को गुरु पूर्णिमा और 25 जुलाई से सावन महीने की शुरुआत होगी। इस बार सावन महीने में 4 सोमवार के साथ 2 प्रदोष और मासिक शिवरात्रि व्रत भी रहेगा। ये शिव भक्तों के लिए शुभ संकेत भी है। देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। इस मान्यता के कारण लगभग चार महीने बाद देवउठनी एकादशी (15 नवंबर) तक सभी मांगलिक काम नहीं होंगे, लेकिन जप, तप, दान, व्रत, हवन आदि जारी रहेंगे।

गुरु पूर्णिमा: गुरु पूर्णिमा पर्व 24 जुलाई को मनाया जाएगा। सोशल डिस्टेंसिंग और कोरोना संक्रमण से बचाव के कारण इस बार कई जगहों पर गुरु और शिष्यों के बीच दूरी रहेगी। ऐसे में गुरु के चित्र की पूजा, मानसिक नमस्कार और संचार साधनों की मदद से गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाना चाहिए। गुरु पूर्णिमा के साथ ही चातुर्मास के अनुष्ठानों का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा। गुरु पूजा के अगले ही दिन से शिव आराधना शुरू हो जाती है। दो

प्रदोष व्रत: ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि सावन में चार सोमवार और दो प्रदोष व्रत रहेंगे। इसके अलावा कई विशेष शुभ योग भी आएंगे। ऐसी मान्यता है कि इस माह में किए गए सोमवार के व्रत का फल बहुत जल्दी मिलता है। लेकिन महामारी के संक्रमण से बचने के लिए घर पर ही भगवान शिव की पूजा की जा सकती है। डॉ. मिश्र का कहना है कि घर पर की गई पूजा का फल मंदिर में की गई पूजा के बराबर ही मिलता है। इसलिए घर में उपलध चीजों से ही पूजा करनी चाहिए।

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