ये जूता पता नहीं क्या कराकर छोडेगा?

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जूता अगर पैर में ना हो तो शरीर की हालत खस्ता। बाप की नाप का जूता अगर बेटे के पैर में आने लगे तो फिर घर में खुशी के कहने ही क्या? हैसियत के हिसाब से जूते के रेट। हां कई बार सस्ता जूता भी तब गुल खिला जाता है जब वो आम हो और खास पर पड़े।।

जूता फिर विवादों में है। योगी सरकार के फैसले की वजह से और केन्द्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह व मेरठ के सांसद राजेंद्र अग्रवाल सरीखे नेताओं के पहनने के अंदाज के कारण। वैसे भी जूता चर्चा में रहता ही है। किसी नेता की खोपड़ी पर पड़ जाए तो दिन में ही तारे नजर आने लहते हैं। इसका मलाल तो झेल भी लिया जाए लेकिन खोपड़िया पर जूता पड़ने के कराण सारे जहान में जो जलालत होती है वो फिर नेतागिरी करने ही नहीं देती। बाहर भी ताने और घर में भी। जूता अगर पैर में ना हो तो शरीर की हालत खस्ता। बाप की नाप का जूता अगर बेटे के पैर में आने लगे तो फिर घर में खुशी के कहने ही क्या? हैसियत के हिसाब से जूते के रेट। हां कई बार सस्ता जूता भी तब गुल खिला जाता है जब वो आम हो और खास पर पड़े।। पूरे देश में वैसे भी गरीब से अमीर तक ताकत जताने व दूसरों को नीचा दिखाने का जरिया भी जूता ही है। इतने जूते मारूंगा-गंजे हो जाओगे, जीवन भर याद रखोगे। खैर जूते से जुड़ी तमाम कहानियां हैं। कुछ ताकतवर महिला नेताओं के यहां तो कोई जूता पहनकर अंदर जा ही नहीं सकता चाहे वो कोई भी हो? चलो जिसकी जैसी मर्जी-वैसा पहने और मनपसंद इस्तेमाल करे उनकी मर्जी। बात फिलहाल जूते से जुड़ी दो खबरों की।

योगी सरकार को चप्पल से एलर्जी हो गई है, हर वाहन चालक के पैरों में वो जूता देखना चाहती है। अपली अप्रैल से जो चप्पल पहनकर वाहन चलाएगा वो जुर्माना भी खाएगा और ज्यादा जुबान लड़ाई तो जेल तक जाने की नौबत आ सकती है। कार में भी ड्रेस कोड का पालन करना होगा। योगी सरकार तर्क देगी कि जूतों की वजह से चालक ज्यादा सुरक्षित रहता है। तो लाख टके का सवाल यही है कि क्या अब सरकारें हमारे खाने-पीने पहनने के तौर तरीके भी तय करेंगी? चलिए सिखाएं तो भी ठीक है लेकिन यहां तो बंदिशें लगाई जा रही हैं कि ये ना किया तो ये होगा? क्या फैसला करने वालों को ये पता है कि एक सबसे सस्ता जूता कितने का आता है? कभी जेब के पैसे से खरीदा हो तो पता भी चले। खैर देखते हैं ये फैसला किस तरह लागू होता है और कितना। कुछ हो ना हो लेकिन ये तय है कि पुलिस के हाथ में एक और उस्तरा योगी सरकार ने थमा दिया है। अब खाकी वाले ऐसे ही सवाल करते नजर आएंगे-तुम्हारा जूता तो फटा है… सही जूता पैर में क्यों नहीं है? रहा कार चालकों के लिए ड्रेस कोड का तो योगी जी कभी नेतागिरी का भी कोई ड्रेस कोड तय कर दो। या सारे कोड केवल जनता के लिए ही हैं?

बसा टीकरी गांव का शहीद अजय कुमार तमाम यादें सबके जेहन में छोड़ है। मंगलवार को अंतिम संस्कार था, लोकसभा चुनाव सिर पर ना होता तो शायद ही मंत्रियों व नेताओं का वहा जमावड़ा होता लेकिन केन्द्रिय मंत्री सत्यपाल सिंह से लेकर सांसद राजेन्द्र अग्रवाल तक वहां आए। अच्छी बात है। जाना भी चाहिए। लेकिन क्या इतने बड़े दुख के बीच हंसा जा सकता है? जूता पहनकर शोक जताना वाजिब था? छोटे से बड़े कई नेताओं ने वो सारे काम किए जो नहीं किए जाने चाहिए थे। लोगों का दुखी होना और गुस्सा जताना वाजिब था। ये गए थे पार्टी के लिए जगह बनाने उल्टे लोगों को ही नाराज कर आए। बिना जूते निकलना भी पड़ा। अब माफी मांगने की औपचारिकाताएं निभाई जा रही है।

लेखक
डीपीएस पंवार

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