मोदी सौंपे तब योग्य गडकरी या…

0
245

अगले चुनाव की घोषणा हो चुकी है लेकिन असली सवाल यह है कि अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा ? 2014 के चुनाव के पहले शायद मैंने ही सबसे पहले यह लिखना और बोलना शुरु किया था कि भारत का अगला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होगा। सारे देश में घूम-घूमकर मैंने और बाबा रामदेव ने लाखों-करोड़ों लोगों को संबोधित किया। मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करवाने के लिए मुझे संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से भी आग्रह करना पड़ा।

इस कारण कुछ वरिष्ठ मित्रों की अप्रियता भी मुझे झेलनी पड़ी लेकिन क्या अब 2019 में भी मैं वही चाहूंगा, जो मैं 2014 में चाहता था ? नहीं, बिल्कुल नहीं। इसका कारण स्वयं मोदी ही हैं। जिन्हें जनता ने प्रधानमंत्री के पद पर बैठाया, वे कुल मिलाकर प्रचारमंत्री ही साबित हुए। उन्होंने अपने प्रचार के खातिर देश के करोड़ों-अरबों रु. खर्च कर दिए। विदेश-यात्राओं और विज्ञापनबाजी में अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों को मात कर दिया। उन्होंने दर्जनों सराहनीय अभियान घोषित किए लेकिन सबके सब जुमलेबाजी बनकर रह गए।

पार्टी के अन्य नेताओं और साधारण कार्यकर्ताओं को बुहार कर एक कोने में सरका दिया और नौकरशाहों के दम पर पांच साल काट दिए। देश के सच्चे नेता बनने की बजाय नौकरशाहों के नौकर बन गए। नौकरशाहों ने हां में हां मिलाई और आपको सर्वज्ञजी बना दिया। नेता और जनता के बीच का दोतरफा संवाद शुरु ही नहीं हुआ। सिर्फ भाषण ही भाषण हुए। एक भी पत्रकार-परिषद नहीं हुई। एक दिन भी जनता दरबार नहीं लगा। भाजपा और संघ भी दरी के नीचे सरका दिए गए। वे स्वयं की सेवा करने वाले ‘स्वयंसेवक’ बन गए।

विचारधारा की जगह व्यक्तिधारा चल पड़ी। राम मंदिर को अदालत के मत्थे मढ़ दिया। कश्मीर और धारा 370 अधर में लटक गए। नोटबंदी, जीएसटी, रफाल-सौदा जैसे अपूर्व काम सरकार ने हाथ में लिये जरुर लेकिन मंदबुद्धि, अनुभवहीनता और अहंकार के कारण उनके नतीजे भी उल्टे पड़ गए। अर्थव्यवस्था और रोजगार का मामला भी डांवाडोल है। किसानों, अनुसूचितों और गरीबों को अब चुनाव के डर के मारे कुछ राहत जरुर मिली है लेकिन कुछ पता नहीं कि वह वोटों में तब्दील होगी या नहीं? पुलवामा के बाद जैसा कि मेरा आग्रह रहा, आतंकवाद के गढ़ पर सीधा हमला हो, वह हुआ लेकिन 350 आतंकियों के मारे जाने के झूठ ने सरकार की इज्जत पैंदे में बिठा दी।

इसी के दम पर चुनाव जीतने की कोशिश में मोदी को लेने के देने पड़ सकते हैं। हो सकता है कि भारत की भोली जनता इसी कागज की नाव पर सवार हो जाए। वह यदि हो जाए और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी पार्टी बनकर उभरे तो भी मोदी को चाहिए कि वह खुद को अपने ‘मार्गदर्शक मंडल’ में शामिल कर लें और प्रधानमंत्री की कमान अपने से कहीं अधिक योग्य नितीन गडकरी, राजनाथसिंह या सुषमा स्वराज के हाथों में सौंप दें।

   डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here